कई महिला न्यायिक अधिकारियों के पास प्राइवेट वॉशरूम न होना दुर्भाग्यपूर्ण: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के न्यायालय परिसरों और न्यायाधिकरणों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांग व्यक्तियों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए स्वच्छ शौचालय की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा कि क्या इस बारे में कोई डेटा है कि क्या महिला न्यायिक अधिकारियों के पास हाईकोर्ट में प्राइवेट वॉशरूम हैं। यह तब आया जब याचिकाकर्ता एओआर चारु अंबवानी के वकील ने प्रस्तुत किया कि इस न्यायालय के आदेश के अनुसार, देश भर के सभी 25 हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट परिसरों में वॉशरूम के संबंध में हलफनामा दायर किया था। हलफनामों से पता चलता है कि पर्याप्त स्वच्छ शौचालय हैं।
न्यायालय ने संघ की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा कि क्या सभी महिला न्यायिक अधिकारियों के पास उन हाईकोर्ट में प्राइवेट वॉशरूम तक पहुंच है, जहां वे काम कर रही हैं। जब भाटी ने कहा कि यह हलफनामे में शामिल नहीं था। इसलिए इस पर कोई डेटा नहीं है।
जस्टिस पारदीवाला ने इस पर जवाब दिया:
"दुर्भाग्य से नहीं [यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि सभी महिला अधिकारियों के पास निजी शौचालयों तक पहुँच हो]।"
उन्होंने कहा कि गुजरात की युवा महिला न्यायिक अधिकारी ने प्राइवेट वॉशरूम की पहुंच की चिंता को इंगित करते हुए सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था।
उन्होंने कहा:
"जिस न्यायालय में वह तैनात हैं, वहां उनका कोई प्राइवेट वॉशरूम नहीं है। उन्हें सिविल जज से अनुरोध करना होगा कि वह उन्हें अपना वॉशरूम इस्तेमाल करने की अनुमति दें। यह ऐसी चीज़ है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है।"
जस्टिस पारदीवाला ने सुझाव दिया कि इस पहलू को शामिल किया जाना चाहिए। वकील ने बताया कि 8 मई, 2023 के आदेश के अनुसार दायर हलफनामों में गुजरात राज्य के लिए उल्लेख किया गया कि महिला न्यायिक अधिकारियों के लिए वॉशरूम जजों के रूम से जुड़े हैं।
इस याचिका में 8 मई, 2023 के आदेश के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से निम्नलिखित निर्देश मांगे:
(क) पुरुषों, महिलाओं और ट्रांसजेंडरों के लिए शौचालयों की उपलब्धता।
(ख) शौचालयों के रखरखाव के लिए उठाए गए कदम।
(ग) क्या वादियों, वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के लिए अलग-अलग शौचालय की सुविधा उपलब्ध है।
(घ) क्या महिलाओं के शौचालयों में सैनिटरी नैपकिन डिस्पेंसर की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है।
यह कहा गया कि हलफनामे हाईकोर्ट और संबंधित राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में संपूर्ण जिला न्यायपालिका के प्रतिष्ठानों को कवर करेंगे।
अदालत ने अंबवानी को हाईकोर्ट द्वारा दायर हलफनामे के संबंध में कमियों, यदि कोई हो, पर एक नोट दाखिल करने का आदेश दिया। इसने भाटी से यह भी पूछा कि प्रत्येक हाईकोर्ट ने आदेश के संबंध में अपने हलफनामे में क्या कहा और आगे क्या निर्देश पारित करने की आवश्यकता है।
न्यायालय अब 26 नवंबर को इस पर सुनवाई करेगा।
केस टाइटल: राजीब कलिता बनाम भारत संघ और अन्य.डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 538/2023