'वे 'विक्की डोनर' वाली स्थिति नहीं चाहते': सुप्रीम कोर्ट करेगा स्पर्म डोनर पर एक से अधिक जोड़े को स्पर्म डोनेट करने पर प्रतिबंध की वैधता की जांच
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलशन) एक्ट 2021 के कुछ प्रावधानों और असिस्टेड टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) रूल्स, 2022 के नियमों को चुनौती देते हुए दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।
एक्ट के तहत एक युग्मक बैंक एक से अधिक कमीशनिंग जोड़े को डोनर के स्पर्म या अंडाणु की आपूर्ति नहीं कर सकता। जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि नए अधिनियम और नियमों के प्रावधानों से डोनर स्पर्म के सैंपल के नमूनों की कमी हो जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप उपचार की लागत में वृद्धि होगी। इससे सहायक प्रजनन तकनीकें आम लोगों के लिए अप्रभावी हो जाएंगी।
जनहित याचिका में यह भी बताया गया कि अधिनियम लागू होने से पहले उपचार की प्रति चक्र कीमत 3000 रुपये के करीब थी। लेकिन नए प्रावधानों के साथ यह 20 से 50 गुना तक बढ़ने का अनुमान है, क्योंकि डोनर केवल एक जोड़े को ही डोनेट कर सकता है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।
जस्टिस नागरत्ना ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की,
"वे नहीं चाहते कि यह (स्पर्म डोनेट) व्यापार बन जाए, यही कारण है।"
जस्टिस नागरत्ना ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा,
“वो फिल्म विकी डोनर याद है? वे उस तरह की स्थिति नहीं चाहते।”
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया,
"अगर इसे रद्द नहीं किया गया तो विकी डोनर अवैध हो जाएगा।"
जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि अधिनियम के तहत ओओसाइट (मादा अंडाणु) और शुक्राणु बैंकिंग को क्लब करना तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि दोनों प्रक्रियाओं के लिए अलग-अलग कौशल सेट की आवश्यकता होती है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि शुक्राणु बैंकिंग सरल प्रक्रिया है। इसलिए किफायती है, जबकि ओओसाइट बैंकिंग जटिल और आक्रामक प्रक्रिया है। इसलिए अधिक विस्तृत सेटअप और विशेषज्ञता की आवश्यकता है।
अधिनियम की धारा 27(3) और नियमों के नियम 13(1)(ए) के तहत एक बैंक एक से अधिक कमीशनिंग जोड़े को दाता के शुक्राणु या अंडाणु की आपूर्ति नहीं कर सकता। जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि यह अंडाणुओं के संबंध में तर्कसंगत हो सकता है लेकिन जब शुक्राणु दान की बात आती है तो इसमें कोई योग्यता नहीं है।
जनहित याचिका में यह भी कहा गया कि अधिकांश देश एक से अधिक जोड़े या परिवारों को अपना परिवार शुरू करने के लिए एकल दाता शुक्राणु नमूने का उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
असिस्टेड रिप्रोडेक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 की धारा 27(3), 27(6) और 29 और नियम 13(1)(ए) को चुनौती देते हुए 2015 में स्थापित रजिस्टर्ड कंपनी इंडियन स्पर्म-बैंक एसोसिएशन द्वारा जनहित याचिका दायर की गई है। असिस्टेड रिप्रोडेक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) नियमों के 13(2), 15 और 19 इस आधार पर कि उक्त प्रावधान प्रकृति में मनमाने और भेदभावपूर्ण हैं।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एओआर ध्रुव टम्टा और वकील शलिंदर भटनागर ने किया।
केस टाइटल: इंडियन स्पर्म- बैंक एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य, डब्ल्यूपीसी 1051/2023