"देश में कई दोयम स्तर के कॉलेज हैं, जो चिंताजनक, न्यायपालिका इसे ठीक करने का प्रयास कर रही है": जस्टिस रमना

Update: 2021-04-05 13:35 GMT

"देश में कई दोयम स्तर के कॉलेज हैं, यह बहुत ही चिंताजनक प्रवृत्ति है। न्यायपालिका ने इस पर ध्यान दिया है, और इसे ठीक करने का प्रयास किया जा रहा है।" जस्ट‌िस एनवी रमना ने दामोदरम संजीवय्या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (DSNLU)के 4 थे, 5 वें, 6 वें और 7 वें दीक्षांत समारोह में यह टिप्पणी की।

"हमारे पास देश में 1500 से अधिक लॉ कॉलेज और लॉ स्कूल हैं। 23 नेशनल लॉ यूनिवर्सिट‌ियों समेत इन विश्वविद्यालयों में लगभग 1.50 लाख स्नातक छात्र हैं। यह वास्तव में आश्चर्यजनक संख्या है। यह दर्शाता है कि कानूनी पेशा एक अमीर आदमी का पेशा है, इस धारणा का अंत हो रहा है, और देश के सभी क्षेत्रों से लोग अब इस व्यवसाय में प्रवेश कर रहे हैं क्योंकि अवसर और देश में कानूनी शिक्षा की उपलब्धता बढ़ रही है। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, "मात्रा, गुणवत्ता पर हावी है"।

जस्टिस रमना ने आगे कहा कि देश में कानूनी शिक्षा की बदतर गुणवत्ता के परिणामों में से एक देश में लंब‌ित मामलों विस्फोटक संख्या है। देश में बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं के बावजूद भारत में सभी अदालतों में लगभग 3.8 करोड़ मामले लंबित हैं। इस संख्या को भारत की लगभग 130 करोड़ जनसंख्या के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

रमना ने संबोधन की शुरुआत आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत सरकार के श्रम मंत्री दामोदरम संजीवय्या के संबंध में बात की।

जस्टिस रमना ने कहा कि दामोदरम संजीवय्या के अनुकरणीय जीवन, उनके मूल्यों और राष्ट्र के लोगों के लिए उनकी सेवा से हर कोई सीख सकता है।

जस्टिस रामना ने कहा, "दामोदरम संजीवय्या ईमानदार थे और बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार की जांच के लिए एंटी करप्शन ब्यूरो की स्थापना सहित कई महत्वपूर्ण पहल की। वह एक निस्वार्थ राजनीतिज्ञ थे। वे पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए प्रयासरत थे। "

पहली पीढ़ी के वकील और जीवन संघर्ष पर

ज‌स्ट‌िस रमना ने बताया कि वह अपने परिवार से पहली पीढ़ी के स्नातक थे, और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए थे। कानून के छात्र के रूप में अपने युवा दिनों को याद करते हुए, उन्होंने कहा कि उन्हें याद है कि छात्रों के लिए खुद को शिक्षित करना कितना कठिन था।

शिक्षकों और शैक्षिक संस्थानों की जिम्मेदारी और शैक्षिक प्रणाली का सुधार,

जस्टिस रमना ने आगे कहा कि शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को प्रशिक्षित करना और उन्हें राष्ट्र-निर्माण में भाग लेने के लिए तैयार करना है, जिसकी जिम्मेदारी शिक्षक और संस्थान पर है। उन्होंने कहा कि भारत में शिक्षा प्रणाली वर्तमान में "युवा छात्रों के चरित्र का निर्माण करने के लिए सुसज्जित नहीं है" ताकि एक सामाजिक चेतना और जिम्मेदारी विकसित हो सके।

लॉ स्कूल, लीगल प्रोफेशन और जस्टिस डिलीवरी सिस्टम

जस्टिस रमना ने कहा कि लॉ स्कूल का लक्ष्य लॉ ग्रेजुएट को सामाजिक रूप से प्रासंगिक और तकनीकी रूप से मजबूत बनाना है। उन्होंने कहा युवा कानून स्नातकों को "सोशल इंजीनियर" होना चाहिए क्योंकि कानून को "सामाजिक परिवर्तन का एक साधन" माना जाता है।

उन्होंने कहा कि युवा लॉ स्नातकों के पास वकील, लीगल एग्जीक्यूटिव, आर्बिट्रेटर, मध्यस्थ, सॉलिसिटर और जज जैसे कई रास्ते उपलब्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि लॉ स्टूडेंट्स को बेहतरीन संचार कौशल के साथ स्पष्ट और सटीक तरीके से अपनी बात समझाने में सक्षम होना चाहिए।

भाषण के अंत में जस्टिस रमना ने कहा, "आप इस राष्ट्र के निष्ठावान और एक बहुत समृद्ध परंपरा के संरक्षक हैं। मुझे आशा है कि आप इस समाज को कुछ योगदान देंगे, इस महान राष्ट्र ने आपको बहुत सारे विशेषाधिकार दिए हैं। एक बार फिर, मैं हर एक को बधाई देता हूं और आपके भविष्य के सभी प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं। भगवान आपको आशीर्वाद दे और आगे भी खुशहाल रहें। "

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