निविदा आमंत्रण की शर्तें तब तक न्यायिक जांच का विषय नहीं, जब तक कि वे मनमानी, भेदभाव या दुर्भावनापूर्ण न हों: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-10-03 06:58 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह मानते हुए कि टेंडर आमंत्रण की शर्तें न्यायिक जांच का विषय नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने ग्रुप डी हवाई अड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग एजेंसियों (जीएचए) के चयन के लिए भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की निविदा शर्तों को रद्द कर दिया था।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने एक एडवोकेसी ग्रुप- सेंटर फॉर एविएशन पॉलिसी- जैसे तीसरे पक्ष की शह पर दायर रिट याचिका पर विचार करके एक "गंभीर त्रुटि" की है, जबकि किसी भी जीएचए ने निविदा शर्तों को चुनौती नहीं दी ‌थी।

सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका को लोकस स्टैंडी (भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण बनाम विमानन नीति केंद्र) के आधार पर खारिज कर दिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

"इस मामले में यह प्रशंसनीय नहीं है कि प्रतिवादी संख्या एक, जो एक एनजीओ है, मूल रिट याचिकाकर्ता होने के नाते संबंधित RFPs में निविदा शर्तों के खिलाफ रिट याचिका दायर करने का लोकस स्टैंडी रखता है। प्रतिवादी संख्या एक को "पीड़ित पक्ष" नहीं कहा जा सकता है।"

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेरिट के आधार पर भी हाईकोर्ट को निविदा शर्तों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था। निविदा शर्तों में न्यायिक हस्तक्षेप के सीमित दायरे के संबंध में विभिन्न उदाहरणों का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने कहा, "कानून की स्थापित स्थिति के अनुसार, निविदा आमंत्रण के नियम और शर्तें निविदाकर्ता/निविदा ‌निर्माण प्राधिकारी के अधिकार क्षेत्र का मामला है और न्यायिक जांच के लिए उपलब्‍ध नहीं हैं, जब तक कि वे मनमाना, भेदभावपूर्ण या दुर्भावनापूर्ण ना हो। कानून की निर्धारित स्थिति के अनुसार, निविदा आमंत्रण की शर्तें न्यायिक जांच का विषय नहीं हैं..। सरकार/निविदाकर्ता/निविदा निर्माता प्राधिकरण के पास निविदा की शर्तों को निर्धारित की की स्वतंत्र होना चाहिए।"

पीठ ने कहा,

"अदालत सरकार द्वारा निर्धारित निविदा शर्तों में इसलिए हस्तक्षेप नहीं कर सकती कि उसे लगता है कि निविदा में कुछ अन्य शर्तें उचित, समझदार या तार्किक होतीं।"

एएआई ने दिल्ली हाईकोर्ट के 14 जुलाई, 2021 के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने एनजीओ की उक्त रिट याचिका को स्वीकार कर लिया था और ग्रुप डी-1 के 49 हवाई अड्डों के क्षेत्र-वार उप-वर्गीकरण के निर्णय को रद्द कर दिया था। साथ ही इस शर्त को भी रद्द कर दिया कि अनुसूचित विमानों को जीएचएस प्रदान करने के संबंध में केवल पिछले कार्य अनुभव को ही स्वीकार्य माना जाएगा।

हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि संशोधित न्यूनतम वार्षिक टर्नओवर मानदंड 18 करोड़ रुपये भेदभावपूर्ण और मनमाना है।

सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि एएआई ने हाईकोर्ट के समक्ष संबंधित शर्तों के पीछे के तर्कों को समझाया, "संबंधित खंड/शर्तों को पढ़ने के बाद, जिन्हें हाईकोर्ट द्वारा मनमाना और अवैध माना गया है, हमारी राय है कि इसे मनमाना और/या दुर्भावनापूर्ण और/या पूर्वाग्रह से प्रेरित नहीं कहा जा सकता है। एएआई के पास अपनी शर्तें तय करने और पात्रता मानदंड तय करने का अधिकार है।"

केस टाइटल: भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण बनाम सेंटर फॉर एवियेशन पॉलिसी

साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एससी) 814

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