तमिलनाडु में 11 विधायकों की अयोग्यता पर फिर सुप्रीम कोर्ट में DMK, 15 दिन बाद सुनवाई
द्रविड़ मुनेत्र कषगम यानी द्रमुक ( DMK) ने तमिलनाडु में 2017 में हुए विश्वास मत में मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी के खिलाफ मतदान करने वाले उप मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम समेत AIDMK के 11 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के लिए स्पीकर को कार्यवाही करने के निर्देश देने के लिए एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
मंगलवार को देश के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई 15 दिनों के लिए टाल दी।वैसे विधानसभा स्पीकर ने कुछ विधायकों को नोटिस भी जारी किया है।
दरअसल 14 फरवरी को इसी तरह की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई बंद कर दी थी।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा था कि स्पीकर ने कार्यवाही शुरू कर दी है और वो कानून के मुताबिक कार्यवाही करेंगे । सुनवाई में तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल ने पीठ को बताया था कि तीन साल पुराने इस मामले में विधानसभा स्पीकर ने सभी 11 विधायकों को नोटिस जारी किया है इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई बंद कर दी। चार फरवरी को हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने विधानसभा स्पीकर पर सवाल उठाए थे।
तमिलनाडु के उप मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम और 10 अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता के मामले में मुख्य न्यायाधीश ने स्पीकर से पूछा था कि आखिर वो अयोग्यता पर कब फैसला करेंगे। पीठ ने पूछा था कि पिछले तीन वर्षों में 11 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई। कोर्ट ने कहा था कि यह देरी अनावश्यक थी और 3 साल की इस देरी से बचना चाहिए था । एक स्पीकर 3 साल तक ऐसी याचिकाओं पर नहीं बैठ सकता । स्पीकर इन चीजों को अनिश्चित काल तक अपने डेस्क पर नहीं रहने दे सकता ।
पीठ ने स्पीकर को ये बताने को कहा था कि वो इस मामले में वो कब तक फैसला लेंगे।द्रमुक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मणिपुर के एक मंत्री के मामले में शीर्ष अदालत के हालिया फैसले का जिक्र किया था, जिसमें विधानसभा अध्यक्ष को चार हफ्ते के भीतर राज्य के वन मंत्री टी श्यामकुमार की अयोग्यता संबंधी याचिका पर फैसला लेने का निर्देश दिया गया था । उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्पीकर को तीन महीने में अयोग्यता पर फैसला लेना चाहिए ।तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल ने पीठ को बताया था कि चूंकि यह मुद्दा चुनाव आयोग के समक्ष लंबित था और बाद में आयोग ने OPS समूह को एक अलग समूह के रूप में मान्यता दी। उन्होंने कहा कि बाद में OPS ग्रुप का EPS ग्रुप में विलय हो गया।
उन्होंने यह भी कहा था कि यह मुद्दा अदालत के समक्ष लंबित है और इसलिए, स्पीकर फैसला नहीं कर सकते। OPS की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट को इस याचिका पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि अयोग्यता के लिए याचिका में कोई दलील नहीं दी गई थी। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सवाल किया था कि दल बदल करने वाले विधायकों की अयोग्यता के सवाल पर अदालतों को क्यों विचार करना चाहिए, जबकि संविधान ने यह अधिकार विधान सभा अध्यक्ष को दिया है। दरअसल मद्रास हाईकोर्ट ने अप्रैल 2018 में विधायकों को अयोग्य करने की मांग करने वाली DMK की याचिका खारिज कर दी थी याचिकाकर्ता ने पिछले साल विधानसभा में के पलानीस्वामी सरकार के खिलाफ मतदान करने वाले पन्नीरसेलवम और 10 अन्य विधायकों को दल बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने का अनुरोध किया है ।