'स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत पेंशन आवश्यक प्रमाण से ही प्राप्त की जा सकती है, किसी अन्य तरीके से नहीं': सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-02-23 15:34 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत पेंशन आवश्यक प्रमाण (प्रूफ) से ही प्राप्त की जा सकती है और इसके अलावा किसी अन्य तरीके से पेंशन नहीं प्राप्त किया जा सकता है।

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी की बेंच ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को अलग रखा, जिसमें स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत ए. अलागम पेरुमल कोन को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन देने का आदेश दिया गया था। पीठ ने कहा कि, "जब कोई विशेष पेंशन योजना के तहत दावा किया जाता है, जब तक कि कोई पेंशन देने के लिए पात्रता मानदंड को पूरा नहीं करता है, जैसा कि योजना में उल्लेख किया गया है, कोई भी आवेदक इस तरह के पेंशन का दावा नहीं कर सकता है। "

पेरूमल ने 10.04.1997 को स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत पेंशन देने के लिए आवेदन दिया था, जिसे वर्ष 2004 में प्राधिकरण ने खारिज कर दिया था। इसके बाद, 29.08.2017 को उसने फिर से स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत पेंशन देने के लिए आवेदन भेजा, जिसमें कहा गया था कि वह भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 05.01.1944 से 05.07.1944 तक छह महीने से अधिक समय तक जेल में रहा था। जब यह आवेदन लंबित था, उसने उसी समय मद्रास उच्च न्यायालय का भी रुख किया।

उच्च न्यायालय ने यह प्रमाणित करते हुए कहा कि एक अनुमोदित प्रमाणकर्ता द्वारा जारी किया गया प्रमाण पत्र पेंशन पाने के लिए पर्याप्त है, केंद्र द्वारा स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत पेंशन देने और उपयुक्त आदेश पारित करने के निर्देश देकर याचिका का निस्तारण किया। इससे नाराज होकर केंद्र ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

शीर्ष अदालत ने पाया कि उच्च न्यायालय ने नोटिस जारी किए बिना ही याचिका का निपटारा कर दिया, जो की सही नहीं है। रिट याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन करने के लिए जवाबी हलफनामा दायर करने का अवसर दिया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा कि,

"प्रमाण की पर्याप्तता के संबंध में, योजना में उन दस्तावेजों का उल्लेख किया गया है जो आवेदन के साथ आवश्यक हैं। दावेदार मानदंड पूरा करता है या नहीं, यह सक्षम अधिकारी का काम है कि वह इसकी जांच करे। आवेदन पर विचार करने से पहले ही सक्षम प्राधिकारी द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्तियों के माध्यम से उच्च न्यायालय को पेंशन के अनुदान के लिए कोई निर्देश जारी नहीं करना चाहिए था।"

अदालत ने कहा कि, डब्लू. बी. स्वतंत्रता सेनानियों का संगठन बनाम भारत संघ मामले में कहा गया था कि जब सक्षम समिति ने विचार किया और यह माना कि आवेदन आवश्यक दस्तावेजों के साथ सबमिट नहीं किया गया है। इसलिए आवेदन को खारिज कर दिया गया था। इसमें न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता उसी और ऐसे निष्कर्षों को विकृत या अनुचित नहीं कहा जा सकता है। इसके अलावा, भारत संघ बनाम बिकाश आर. भौमिक और अन्य मामले में न्यायालय ने माना था कि 1980 के स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत पेंशन, आवश्यक प्रमाण (प्रूफ) से ही प्राप्त की जा सकती है और इसके अलावा किसी अन्य तरीके से पेंशन नहीं प्राप्त किया जा सकता है।

अपील की अनुमति देते हुए कोर्ट ने कहा कि,

"यह सच हो सकता है कि पहला प्रति उत्तरदाता को राज्य द्वारा प्रस्तुत योजना के तहत पेंशन मिल रही है, लेकिन इसके साथ ही 1980 के स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत पेंशन का दावा करने के लिए पहले प्रतिसाददाता को आवश्यक सबूत प्रस्तुत करना होगा। जब किसी विशेष योजना के तहत दावा किया जाता है, जब तक कि कोई पेंशन के लिए पात्रता मानदंड को पूरा नहीं करता है, जैसा कि योजना में उल्लेख किया गया है, तो कोई भी आवेदक ऐसे पेंशन का दावा नहीं कर सकता है। कोई आवेदक 1980 के स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के तहत पेंशन पाने का हकदार है या नहीं, यह एक ऐसा मामला है जिसे प्रस्तुत तथ्यों और दस्तावेजी साक्ष्यों के माध्यम से तय करना उचित होगा।"

केस: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम ए. अलागम पेरुमल कोन [Civil Appeal No.680 of 2021]

कोरम: जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी

Citation: LL 2021 SC 107

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