विदेशी आरोपियों द्वारा फर्जी ज़मानती देने की बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित, जमानत सत्यापन की राष्ट्रीय प्रणाली बनाने की मांग

Update: 2025-11-19 07:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में नारकोटिक्स मामलों में विदेशी आरोपियों द्वारा फर्जी ज़मानतदार प्रस्तुत कर ज़मानत लेकर फरार होने की चिंताजनक प्रवृत्ति पर कड़ी टिप्पणी की।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की खंडपीठ एक ऐसे मामले से रूबरू हुई, जिसमें NDPS Act के तहत पकड़े गए नाइजीरियाई आरोपी को ज़मानत ऐसी ज़मानतदारी पर मिली जो बाद में पूरी तरह फर्जी पाई गई।

अदालत ने सवाल उठाया कि क्या ट्रायल कोर्टों के लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा तैयार किया गया ज़मानती सत्यापन मॉड्यूल प्रभावी ढंग से काम कर रहा है। अदालत ने कहा कि देशभर में ज़मानतदारों की पहचान सत्यापित करने की प्रणाली की व्यापक समीक्षा आवश्यक है।

खंडपीठ ने टिप्पणी की,

“कुछ राज्यों में ज़मानतदारों द्वारा प्रतिरूपण की समस्या व्यापक दिख रही है। यह जांचना ज़रूरी है कि NIC का ज़मानती सत्यापन मॉड्यूल संचालित हो रहा है या नहीं तथा ज़मानतदारों की प्रामाणिकता जांचने के लिए और क्या तंत्र उपलब्ध हैं।”

अदालत ने इस मामले में यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (UIDAI) को भी पक्षकार बनाया, जिससे संकेत मिलता है कि ज़मानत सत्यापन प्रक्रिया को आधार-लिंक्ड प्रणाली से सुदृढ़ करने पर विचार हो सकता है।

यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश से उत्पन्न हुआ, जहां 4.9 किलो हेरोइन बरामदगी के मामले में गिरफ्तार नाइजीरियाई नागरिक को मई 2025 में “लंबी कारावधि” के आधार पर ज़मानत दी गई। यह DRI द्वारा दर्ज मामला था।

बाद में सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत आदेश पर रोक लगा दी, लेकिन तब तक आरोपी लापता हो चुका था। महाराष्ट्र पुलिस की खोज और लुकआउट नोटिस के बावजूद उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।

कार्यवाही के दौरान DRI ने हलफनामा दाख़िल कर बताया कि आरोपी द्वारा दिया गया ज़मानतदार महज़ बनावटी पहचान थी दिए गए पते का कोई अस्तित्व नहीं बताए गए नियोक्ता ने संबंधित व्यक्ति को पहचानने से इनकार किया बैंक विवरण फर्जी निकले और यहां तक कि दिए गए पैन व आधार नंबर भी किसी वास्तविक व्यक्ति से मेल नहीं खाते थे।

DRI ने यह भी खुलासा किया कि NCB की जांच वाले 38 मामलों और DRI की जांच वाले 9 मामलों में नाइजीरिया व नेपाल के कई विदेशी आरोपी इसी तरह फर्जी ज़मानतदार देकर फ़रार हो चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर समस्या को देखते हुए मुंबई के एडिशनल सेशन जज वी.एम. सुंदाले से कहा कि वे वर्तमान मामले में ज़मानतदार स्वीकार करने की प्रक्रिया पर विस्तृत रिपोर्ट दें विशेष रूप से यह कि उन्होंने वैधानिक आवश्यकताओं के पालन के लिए क्या कदम उठाए। यह रिपोर्ट दो सप्ताह के भीतर दाखिल करनी होगी।

मामले की अगली सुनवाई 17 दिसंबर, 2025 को निर्धारित है।

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