सुप्रीम कोर्ट ने राज्य बार काउंसिलों द्वारा ली जाने वाली इनरोलमेंट फीस को चुनौती देने वाली हाईकोर्ट में दायर याचिकाएं अपने पास ट्रांसफर कीं
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य बार काउंसिल द्वारा लिए जाने वाले इनरोलममेंट फीस को चुनौती देने वाली केरल, मद्रास और बॉम्बे के हाईकोर्ट में लंबित याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा दायर ट्रांसफर याचिका को अनुमति देते हुए सोमवार को आदेश पारित किया।
स्थानांतरित किए गए मामलों में केरल हाईकोर्ट, बॉम्बे हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट में राज्य बार काउंसिल के उच्च इनरोलममेंट फीस के मुद्दे से संबंधित अलग-अलग चल रही याचिकाएं शामिल हैं।
केरल हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ केरल को इनरोलममेंट के इच्छुक लॉ ग्रेजुएट से इनरोलममेंटफीस के रूप में केवल 750/- रुपये लेने का निर्देश दिया, जब तक कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया एक समान फीस संरचना पर विचार नहीं करती।
चीफ जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस बसंत बालाजी की खंडपीठ ने यह आदेश इनरोलममेंट फीस को 750 रुपये तक सीमित करने के एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ केरल द्वारा दायर अपील में पारित किया था। याचिकाकर्ताओं ने 15,900 रुपये की अत्यधिक फीस को चुनौती दी।
केरल बार काउंसिल द्वारा 15,900/- रुपये की इनरोलममेंट फीस इस आधार पर लगाया जा रहा है कि एडवोकेट एक्ट की धारा 24(1)(एफ) के तहत 750/- का जुर्माना लगाया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि बार काउंसिल ऑफ केरल द्वारा पारित कोई भी नियम, जो खुद को अधिक फीस लगाने का अधिकार देता है, उसकी शक्तियों के दायरे से बाहर है।
इसके अलावा, मद्रास हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुदुचेरी को पांचवें वर्ष के लॉ स्टूडेंट मणिमारन की याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया, जिसमें लॉ ग्रेजुएट से उसके द्वारा लिए जाने वाली इनरोलममेंट फीस को चुनौती दी गई।
एक्टिंग चीफ जस्टिस टी राजा और जस्टिस भरत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने प्रथम दृष्टया सहमति व्यक्त की कि उक्त राशि अधिक है और याचिका पर नोटिस जारी किया। कोर्ट की ओर से बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया गया।
इसी तरह, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी एक वकील की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें जनवरी 2020 से इनरोलममेंट फीस बढ़ाकर 15,000 रुपये करने के बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (बीसीएमजी) के फैसले को चुनौती दी गई।
ये सभी मामले अब सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित हो गए।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 24(1)(ई) द्वारा निर्धारित फीस से अधिक फीस लेने के लिए राज्य बार काउंसिल पर सवाल उठाया। इस प्रावधान के अनुसार, राज्य बार काउंसिल को देय इनरोलममेंट फीस 600 रुपये होनी चाहिए। इसलिए अदालत ने निर्धारित फीस और विभिन्न राज्यों में ली जाने वाली फीस के बीच पर्याप्त असमानताओं पर आश्चर्य व्यक्त किया।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अखिल भारतीय बार परीक्षा को बरकरार रखते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया से यह सुनिश्चित करने को कहा कि इनरोलममेंट फीस "दमनकारी" न हो जाए।
संविधान पीठ ने कहा था,
"हमारे पास इस दलील से उत्पन्न चेतावनी भी है कि विभिन्न राज्य बार काउंसिल इनरोलमेंट के लिए अलग-अलग फीस ले रहे हैं। यह कुछ ऐसा है जिस पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ध्यान देने की आवश्यकता है, जो यह देखने की शक्तियों से रहित नहीं है कि समान पैटर्न है।
जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले (बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम बोनी फोई लॉ कॉलेज और अन्य) में कहा था कि बार में शामिल होने वाले युवा छात्रों के लिए फीस दमनकारी नहीं बन जाती है।
केस टाइटल: बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम अक्षय एम सिवन टी.पी.(सी) नंबर 1310-1312/2023