उन्नाव रेप केस में कुलदीप सेंगर की सजा निलंबन की चुनौती पर 29 दिसंबर को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-12-28 03:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट सोमवार (29 दिसंबर) को सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (CBI) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें उन्नाव रेप केस में उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को ज़मानत दी गई थी।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की वेकेशन बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी।

सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई, जिसमें हाईकोर्ट के सेंगर की सज़ा पर रोक लगाने और दोषसिद्धि के खिलाफ अपील लंबित रहने के दौरान उन्हें ज़मानत पर रिहा करने के फैसले को चुनौती दी गई।

हाईकोर्ट ने इस हफ्ते की शुरुआत में ज़मानत देते हुए कहा कि प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफ़ेंसेस एक्ट (POCSO Act) की धारा 5(c) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2) के तहत गंभीर अपराध के प्रावधान सेंगर के मामले में लागू नहीं होते हैं, क्योंकि उन्हें उन प्रावधानों के अर्थ के तहत "सरकारी कर्मचारी" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। इसी आधार पर उसने सज़ा पर रोक लगा दी।

अपनी याचिका में CBI ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के फैसले से प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफ़ेंसेस एक्ट, 2012 के सुरक्षा ढांचे को कमजोर किया गया। साथ ही अपराध की गंभीरता और आजीवन कारावास की सज़ा पर रोक लगाने वाले स्थापित सिद्धांतों को देखते हुए यह कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है।

जांच एजेंसी ने हाई कोर्ट के इस निष्कर्ष पर कड़ी आपत्ति जताई कि POCSO Act की धारा 5(c) के उद्देश्यों के लिए एक विधायक "सरकारी कर्मचारी" की परिभाषा के तहत नहीं आता है। CBI के अनुसार, इस तरह की संकीर्ण और तकनीकी व्याख्या कानून के उद्देश्य को विफल करती है, जो बच्चों को यौन अपराधों से बेहतर सुरक्षा प्रदान करना और अधिकार के दुरुपयोग को एक गंभीर परिस्थिति के रूप में मानना ​​है।

याचिका में तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट नाबालिग के यौन उत्पीड़न से जुड़े मामले के बावजूद POCSO Act की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या करने में विफल रहा। इसमें कहा गया कि POCSO Act एक विशेष कल्याणकारी कानून है और इसके प्रावधानों की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए जो संसद द्वारा इच्छित सुरक्षा उपायों को प्रतिबंधित करने के बजाय आगे बढ़ाए।

सज़ा पर रोक लगाने के तर्क को चुनौती देते हुए CBI ने कहा कि नाबालिग के बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों से जुड़े मामलों में आजीवन कारावास की सज़ा निलंबित करने का आधार केवल लंबी कैद नहीं हो सकती है। एजेंसी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार यह माना है कि उम्रकैद की सज़ा वाले मामलों में सज़ा को सस्पेंड करना एक अपवाद है, नियम नहीं, और यह सिर्फ़ दुर्लभ और मज़बूत परिस्थितियों में ही दिया जा सकता है।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए इस बात पर ज़ोर दिया गया कि अपराध की गंभीरता, जिस तरह से अपराध किया गया, आरोपी की भूमिका, और पीड़ित और गवाहों को संभावित खतरा जैसे कारकों को सज़ा सस्पेंड करने के खिलाफ़ गंभीरता से देखा जाना चाहिए। इसमें आरोप लगाया गया कि हाईकोर्ट के आदेश में इन पहलुओं पर ठीक से विचार नहीं किया गया।

CBI ने यह तर्क देते हुए पीड़ित की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई कि सेंगर की रिहाई उसके पिछले व्यवहार और उसके प्रभाव को देखते हुए असली खतरा है। उसने चेतावनी दी कि ऐसी परिस्थितियों में एक प्रभावशाली दोषी की सज़ा को सस्पेंड करने से आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास कम होता है और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में एक परेशान करने वाला संदेश जाता है।

सेंगर को 2019 में एक स्पेशल CBI कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में नाबालिग लड़की से रेप के मामले में दोषी ठहराया और उसे उम्रकैद की सज़ा सुनाई। इस मामले ने पूरे देश का ध्यान खींचा था, जिसमें पीड़ित और उसके परिवार ने पूर्व विधायक और उसके साथियों द्वारा लगातार उत्पीड़न और धमकी देने का आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर CBI ने पीड़ित के परिवार के सदस्यों पर हमलों से जुड़े कई संबंधित मामलों की भी जांच की थी।

सेंगर पीड़ित के पिता की गैर इरादतन हत्या से जुड़े एक अलग मामले में 2020 में उसे सुनाई गई 10 साल की सज़ा भी काट रहा है।

Case : CBI v. Kuldeep Singh Sengar | SLP(Crl) 21367/2025

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