सुप्रीम कोर्ट राज्य बार काउंसिलों द्वारा वसूली जाने वाली 'अत्यधिक' एनरोलमेंट फीस की वैधता की जांच करेगा

Update: 2023-04-10 06:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस रिट याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें अलग-अलग राज्य बार काउंसिलों द्वारा अलग-अलग एनरोलमेंट फीस वसूले जाने को चुनौती दी गई।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने यह कहते हुए कि यह "महत्वपूर्ण मुद्दा" है, गौरव कुमार द्वारा दायर रिट याचिका पर केंद्र सरकार, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और सभी राज्य बार काउंसिलों को नोटिस जारी किया।

पार्टी-इन-पर्सन के रूप में उपस्थित हुए याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि एनरोलमेंट फीस लेना एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 24 का उल्लंघन है और बीसीआई का यह कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि अत्यधिक एनरोलमेंट फीस नहीं लिया जाए।

उन्होंने एनरोलमेंट फीस की गैर-समान प्रकृति का चित्रण करते हुए दिखाया कि ओडिशा में यह 42,000 रुपये की सीमा में है, जबकि केरल में यह 20,000 रुपये की सीमा में है।

बेंच ने नोटिस जारी करते हुए दर्ज किया कि याचिकाकर्ता का कहना है कि यह युवा इच्छुक वकीलों को प्रभावित करता है, जिनके पास संसाधन नहीं हैं।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अखिल भारतीय बार परीक्षा को बरकरार रखते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि एनरोलमेंट फीस "दमनकारी" न हो जाए।

जस्टिस एसके कौल के नेतृत्व वाली संविधान पीठ के फैसले ने निर्णय (बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम बोनी फोई लॉ कॉलेज और अन्य) में कहा था,

"हमारे पास इस दलील से उत्पन्न होने वाली चेतावनी भी है कि विभिन्न राज्य बार काउंसिल एनरोलमेंट के लिए अलग-अलग फीस ले रहे हैं। यह कुछ ऐसा है जिस पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ध्यान देने की आवश्यकता है, जो यह देखने के लिए शक्तियों से रहित नहीं है कि समान पैटर्न होना चाहिए और बार में शामिल होने वाले युवा छात्रों के लिए फीस दमनकारी नहीं होना चाहिए।"

हाल ही में, केरल हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें केरल बार काउंसिल को कुछ याचिकाकर्ताओं से एनरोलमेंट फीस के रूप में 750 रुपये से अधिक फीस लेने से रोक दिया गया, जिन्होंने फीस को चुनौती दी थी।

केस टाइटल: गौरव कुमार बनाम भारत संघ | डब्ल्यूपी (सी) नंबर 352/2023

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