सुप्रीम कोर्ट ने विवादित वक्फ भूमि को अतिक्रमण के रूप में गैर-अधिसूचित करने पर लगाई रोक

Update: 2025-09-15 09:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के उन प्रावधानों पर रोक लगाई, जो सरकार को विवादित वक्फ संपत्तियों को सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के रूप में गैर-अधिसूचित करने का अधिकार देते हैं।

हालांकि, अदालत ने अधिनियम की धारा 3सी के उन प्रावधानों पर रोक नहीं लगाई, जो सरकार के एक नामित अधिकारी (जो कलेक्टर के पद से ऊपर का होता है) को यह जांच करने की अनुमति देते हैं कि क्या वक्फ संपत्ति सरकारी भूमि पर स्थित है। अदालत ने अधिनियम की धारा 3सी(2) के उस प्रावधान पर रोक लगाई, जिसके अनुसार विवादित संपत्ति को तब तक वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा, जब तक कि सरकारी अधिकारी जांच पूरी नहीं कर लेता।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने कहा:

"हमारा मानना ​​है कि ऐसा प्रावधान, जिसके तहत नामित अधिकारी द्वारा किसी संपत्ति के सरकारी संपत्ति होने या न होने की जांच किए जाने से पहले और नामित अधिकारी द्वारा राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने से पहले ही यह प्रावधान किया जाता है कि ऐसी संपत्ति को अंतरिम अवधि में वक्फ संपत्ति नहीं माना जा सकता, कम से कम प्रथम दृष्टया मनमाना है। यदि किसी संपत्ति की पहचान पहले से ही वक्फ संपत्ति के रूप में की गई या उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया गया है तो इस प्रश्न का निर्धारण किए बिना कि ऐसी संपत्ति सरकारी संपत्ति है या नहीं, उक्त संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं मानना, हमारे प्रथम दृष्टया विचार से, मनमाना है।"

अदालत ने धारा 3सी(3) और 3सी(4) का भी उल्लेख किया, जिसमें यह प्रावधान है कि यदि नामित अधिकारी ने रिपोर्ट दी कि वक्फ भूमि सरकारी संपत्ति है तो राजस्व अभिलेखों और वक्फ बोर्ड के अभिलेखों को सही किया जाना चाहिए।

नामित अधिकारी द्वारा जांच की अनुमति देने वाले प्रावधानों को बरकरार रखते हुए न्यायालय ने कहा कि स्वामित्व का अंतिम निर्धारण न्यायिक प्राधिकारी पर छोड़ दिया जाना चाहिए, न कि राजस्व अधिकारी पर।

अदालत ने कहा,

"शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए राजस्व अधिकारी को संपत्ति के स्वामित्व के निर्धारण का कार्य नहीं सौंपा जा सकता। हालांकि, हमने प्रथम दृष्टया संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा 3सी(1) और 3सी(2) के प्रावधानों को बरकरार रखा। फिर भी हम पाते हैं कि किसी संपत्ति के स्वामित्व के निर्धारण का प्रश्न, जिसे राजस्व अधिकारी को सौंपा गया, हमारे संविधान में निहित शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के अनुरूप नहीं होगा। हमारी सुविचारित राय में संपत्ति के स्वामित्व के निर्धारण के प्रश्न का समाधान न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्राधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए।"

अदालत ने कहा कि धारा 83 में "वक्फ या वक्फ संपत्ति से संबंधित किसी भी विवाद, प्रश्न या अन्य मामले के निर्धारण के लिए" वक्फ ट्रिब्यूनल के गठन का प्रावधान है। ट्रिब्यूनल के निर्णयों को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

अतः, जब तक ट्रिब्यूनल या हाईकोर्ट द्वारा स्वामित्व के प्रश्न का अंतिम रूप से निर्धारण नहीं हो जाता, तब तक संपत्ति की स्थिति वक्फ भूमि के रूप में बनी रहनी चाहिए। साथ ही अदालत ने आदेश दिया कि अंतिम निर्धारण तक मुतवल्ली तृतीय पक्ष के अधिकार नहीं बना सकते।

अदालत ने इस संबंध में कहा,

अतः, हमारा विचार है कि जांच पूरी होने के बाद राजस्व अभिलेखों में आवश्यक सुधार करने की अनुमति देने वाला प्रावधान और राज्य सरकार को रिपोर्ट प्राप्त होने पर राजस्व अभिलेखों में उचित सुधार करने का निर्देश देने का प्रावधान, प्रथम दृष्टया मनमाना है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। हालांकि, समता को संतुलित करने और मूल्यवान सरकारी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए यह भी आवश्यक है कि ट्रिब्यूनल द्वारा ऐसा निर्धारण होने तक ऐसे वक्फों के मुतवल्ली ऐसी संपत्तियों के संबंध में, जिनके लिए संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा 3सी के अनुसार कार्यवाही शुरू की गई, ट्रिब्यूनल द्वारा अंतिम निर्णय होने तक कोई तृतीय पक्ष अधिकार न बनाएं।"

निर्णय में अदालत ने धारा 3सी(2), धारा 3सी(3) और धारा 3सी(4) के प्रावधानों पर रोक लगाने का आदेश दिया।

अदालत ने आगे आदेश दिया:

"यह निर्देश दिया जाता है कि जब तक संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा 3सी के अनुसार वक्फ संपत्ति के स्वामित्व से संबंधित मुद्दे पर ट्रिब्यूनल द्वारा संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा 83 के तहत शुरू की गई कार्यवाही में अंतिम रूप से निर्णय नहीं हो जाता और ट्रिब्यूनल के अगले आदेशों के अधीन नहीं हो जाता, तब तक न तो वक्फ को संपत्ति से बेदखल किया जाएगा और न ही राजस्व रिकॉर्ड और बोर्ड के रिकॉर्ड में प्रविष्टि प्रभावित होगी। हालांकि, संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा 3सी के तहत जांच शुरू होने पर संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा 83 के तहत ट्रिब्यूनल द्वारा अंतिम निर्धारण तक किसी अपील में हाईकोर्ट के अगले आदेशों के अधीन, ऐसी संपत्तियों के संबंध में कोई तृतीय-पक्ष अधिकार नहीं बनाए जाएंगे।"

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