सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में 'द केरल स्टोरी' पर लगे प्रतिबंध पर रोक लगाई

Update: 2023-05-18 10:11 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विवादास्पद फिल्म 'द केरला स्टोरी' के प्रदर्शन पर पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से लगाए गए प्रतिबंध पर रोक लगा दी।

कोर्ट ने तमिलनाडु राज्य की ओर से दिए गए बयान को भी दर्ज किया कि राज्य में फिल्म पर कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रतिबंध नहीं है। कोर्ट ने तमिलनाडु राज्य को राज्य में सिनेमाघरों और फिल्म देखने वालों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए जुलाई 2023 में पोस्ट किया।

इन मामलों में फिल्म निर्माता की ओर से पश्चिम बंगाल में फिल्म पर लगे प्रतिबंध और तमिलनाडु में कथित छाया प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिका शामिल है। साथ ही केरल हाईकोर्ट द्वारा फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से इनकार के खिलाफ दायर याचिकाएं भी शामिल हैं। पीठ इस बात पर भी विचार करेगी कि क्या उन्हें यह पता लगाने के लिए फिल्म देखनी चाहिए कि क्या यह आपत्तिजनक है।

अंतरिम आदेश में, पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार का निर्णय प्रथम दृष्टया व्यापकता से ग्रस्त है।

सुनवाई के दरमियान पीठ ने फिल्म में किए गए उस दावे पर भी सवाल उठाया कि केरल की 32,000 महिलाओं को धोखे से इस्लाम ग्रहण कराया गया और आईएसआईएस में भर्ती किया गया।

फिल्म निर्माता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने डिस्क्लेमर में यह स्पष्ट करने पर सहमति व्यक्त की कि "इस सुझाव का समर्थन करने के लिए कोई प्रामाणिक डेटा उपलब्ध नहीं है कि धर्मातरण का आंकड़ा 32000 या कोई अन्य स्थापित आंकड़ा है"।

उन्होंने कहा कि 20 मई को शाम 5 बजे तक डिस्क्लेमर जोड़ा जाएगा। डिस्क्लेमर स्पष्ट करेगा कि फिल्म की विषय वस्तु काल्पनिक है।

पृष्ठभूमि

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 8 मई को "घृणा और हिंसा की किसी भी घटना से बचने और राज्य में शांति बनाए रखने के लिए" फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार ने इसके लिए पश्चिम बंगाल सिनेमा (विनियमन) अधिनियम, 1954 की धारा 6(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग किया था।

इस फैसले के खिलाफ फिल्म निर्माताओं ने संविधान के अनुच्छेद 32 का सहारा लेते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया कि जिस फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने प्रमाणित किया हो, उस पर रोक लगाने की राज्य सरकार के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है।

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि राज्य सरकार फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिए कानून और व्यवस्था के मुद्दों का हवाला नहीं दे सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

याचिकाकर्ताओं ने पश्चिम बंगाल सिनेमा (विनियमन) अधिनियम, 1954 की धारा 6(1) की वैधता को भी इस आधार पर चुनौती दी है कि यह राज्य सरकार को मनमाना और अनिर्देशित अधिकार प्रदान कर रहा है।

तमिलनाडु के संबंध में, याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि राज्य के प्रदर्शकों ने राज्य के अधिकारियों द्वारा अनौपचारिक संदेश के बाद फिल्म को वापस ले लिया।

फिल्म पर आरोप है कि यह धोखाधड़ी के माध्यम से आईएसआईएस में भर्ती की गई महिलाओं की काल्पनिक कहानी को चित्रित करते हुए पूरे मुस्लिम समुदाय और केरल राज्य को कलंकित कर रही है।

5 मई को केरल हाईकोर्ट के जस्टिस एन नागेश और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

कोर्ट ने कहा कि फिल्म ने केवल इतना कहा है कि यह 'सच्ची घटनाओं से प्रेरित' है और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने फिल्म को सार्वजनिक रूप से देखने के लिए प्रमाणित किया है।

पीठ ने फिल्म का ट्रेलर भी देखा और कहा कि इसमें किसी विशेष समुदाय के लिए कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है।

पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं में से किसी ने भी फिल्म नहीं देखी थी और निर्माताओं ने एक डिस्क्लेमर जोड़ा था कि फिल्म घटनाओं का काल्पनिक संस्करण थी।

हालांकि, हाईकोर्ट ने निर्माता की यह दलील भी दर्ज की कि फिल्म का टीज़र, जिसमें दावा किया गया है कि केरल की 32,000 से अधिक महिलाओं को आईएसआईएस में भर्ती किया गया था, को उनके सोशल मीडिया से हटा दिया जाएगा।

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