सुप्रीम कोर्ट ईसाई धर्म अपनाने के कारण महिला को एससी-रिज़र्व्ड पोस्ट के लिए अयोग्य घोषित करने वाले आदेश पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाई, जिसमें पंचायत की महिला अध्यक्ष को आरक्षित पद पर आसीन होने से अयोग्य ठहराए जाने को बरकरार रखा गया था। यह आदेश यह देखते हुए दिया गया था कि उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी करते हुए यह आदेश पारित किया।
हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने प्रतिवादी की उस याचिका पर विचार किया, जिसमें याचिकाकर्ता को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता कन्याकुमारी के थेरूर नगर पंचायत में अनुसूचित जाति (सामान्य) वर्ग के लिए आरक्षित पद पर निर्वाचित हुई थी। प्रतिवादी ने दलील दी कि याचिकाकर्ता का जन्म अनुसूचित जाति वर्ग में हुआ था, लेकिन ईसाई धर्म अपनाने के कारण उसने यह दर्जा खो दिया। इसलिए वह आरक्षण का लाभ नहीं ले सकती।
याचिका का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसने अपना मूल धर्म नहीं छोड़ा है और वह हिंदू बनी हुई है। उसने आगे दलील दी कि वह ईसाई धर्म नहीं मानती है और उसने अपने सामुदायिक प्रमाण पत्र का दुरुपयोग नहीं किया, जैसा कि प्रतिवादी ने आरोप लगाया गया।
विवाह रजिस्टर को देखते हुए हाईकोर्ट की सिंगल जज ने पाया कि बपतिस्मा प्राप्त ईसाइयों के बीच विवाह संपन्न कराने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया, यानी बैन (बपतिस्मा प्राप्त ईसाइयों के बीच विवाह संपन्न कराने की प्रक्रिया) की संख्या तीन बार प्रकाशित की गई। इससे यह भी पता चला कि याचिकाकर्ता का विधिवत बपतिस्मा हुआ था और विवाह के समय उसे चर्च में प्रवेश दिया गया। पीठ ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता का कभी बपतिस्मा न हुआ हो, फिर भी उसे केवल ईसाई ही माना जा सकता है।
पीठ ने आगे टिप्पणी की कि यह मामला एक "शर्मनाक वास्तविकता" है, जिसमें स्थानीय निकाय चुनावों के दौरान सत्तारूढ़ दल द्वारा चुनाव अधिकारियों को महज मोहरा बनाकर पेश किया गया, जिससे पंचायत राज की महान संकल्पना का मखौल बन गया। पीठ ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता, जो धर्म से ईसाई है, उसको अनुसूचित जाति का दर्जा देना संविधान के साथ धोखाधड़ी के अलावा और कुछ नहीं है।
सिंगल बेंच ने आगे कहा कि जब कोई व्यक्ति भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत स्वेच्छा से विवाह करने के लिए प्रस्तुत होता है तो उसके बाद उसे ईसाई माना जाएगा और उसका मूल धर्म स्वतः ही त्याग दिया जाएगा।
इस प्रकार, इसने प्रतिवादी की याचिका स्वीकार की और प्राधिकारियों को याचिकाकर्ता को थेरूर नगर पंचायत के पद से अयोग्य घोषित करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता की अपील पर, एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखा गया।
खंडपीठ ने कहा,
"अपीलकर्ता ईसाई धर्म अपना सकता है और उक्त धर्म का पालन कर सकता है। संविधान का अनुच्छेद 25 ऐसे मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। हालांकि, समस्या तब उत्पन्न होती है, जब बपतिस्मा के बाद व्यक्ति अपनी नई पहचान छुपाता है और संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का आनंद लेने के उद्देश्य से ऐसा दिखावा करता है, मानो उसकी पूर्व स्थिति जारी है।"
पीठ ने आगे कहा,
अपीलकर्ता का तर्क यह नहीं है कि उसने पुनः हिंदू धर्म अपना लिया है। उसका विशिष्ट मामला यह है कि उसने कभी ईसाई धर्म नहीं अपनाया। एडिशनल एडवोकेट जनरल द्वारा ओपन कोर्ट में बपतिस्मा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने से उसका दावा झूठा साबित होता है।"
व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
Case Title: V AMUTHA RANI Versus V IYYAPPAN AND ORS., SLP(C) No. 26877/2025