BREAKING | उन्नाव रेप केस में कुलदीप सेंगर की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई

Update: 2025-12-29 07:26 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाई, जिसमें उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सज़ा निलंबित कर दी गई थी और उन्नाव रेप केस में दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील लंबित रहने के दौरान उन्हें जमानत दे दी गई थी।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिय (सीजेआई) सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने यह आदेश पारित किया। हालांकि, इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था, जिसमें सेंगर की सज़ा निलंबित कर दी गई थी और दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील लंबित रहने के दौरान उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

अदालत ने आदेश दिया,

"हम पाते हैं कि कानून के महत्वपूर्ण सवाल हैं। नोटिस जारी करें। आमतौर पर, जब किसी दोषी/विचाराधीन कैदी को ट्रायल कोर्ट/हाईकोर्ट के आदेश के तहत जमानत पर रिहा किया जाता है तो इस अदालत को ऐसे व्यक्ति को सुने बिना ऐसे आदेश पर रोक नहीं लगानी चाहिए। हालांकि, प्रतिवादी को IPC की धारा 304 भाग 2 के तहत एक अन्य मामले में दोषी ठहराया गया और उस मामले में वह हिरासत में है। हम विशेष तथ्यों को देखते हुए विवादित आदेश के संचालन पर रोक लगाते हैं। प्रतिवादी को विवादित आदेश के तहत हिरासत से रिहा नहीं किया जाएगा। पीड़िता को अलग से SLP दायर करने का कानूनी अधिकार है। उसे इस अदालत से अनुमति की आवश्यकता नहीं है। यदि उसे मुफ्त कानूनी सहायता की आवश्यकता है तो सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करेगी। वह अपने वकील के माध्यम से भी अपनी अपील दायर कर सकती है।"

बेंच दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी - एक, CBI द्वारा दायर, और दूसरी, वकीलों अंजले पटेल और पूजा शिल्पकार द्वारा, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई। विवादित फैसले पर रोक लगाते हुए उसने सेंगर को याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था।

CBI की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट ने यह मानने में गलती की कि POCSO Act के तहत गंभीर अपराध के प्रावधान लागू नहीं होते, क्योंकि सेंगर को लोक सेवक नहीं माना जा सकता। उन्होंने तर्क दिया कि POCSO Act के तहत अपराध भेदक यौन हमले और गंभीर भेदक यौन हमले की अवधारणा के इर्द-गिर्द संरचित हैं। यह गंभीरता तब उत्पन्न होती है जब अपराधी बच्चे पर हावी स्थिति में होता है।

मेहता ने कहा कि "लोक सेवक" शब्द POCSO Act में परिभाषित नहीं है। इसलिए इसे संदर्भ के अनुसार समझा जाना चाहिए। उनके अनुसार, POCSO Act के मकसद से एक पब्लिक सर्वेंट का मतलब ऐसा व्यक्ति होगा, जो बच्चे के संबंध में एक प्रभावशाली स्थिति में है। उस स्थिति का गलत इस्तेमाल करने पर गंभीर अपराध के प्रावधान लागू होंगे। उन्होंने तर्क दिया कि सेंगर उस समय इलाके में एक शक्तिशाली विधायक होने के नाते, साफ तौर पर ऐसा दबदबा रखते थे।

उन्होंने कहा,

"POCSO Act का असर सबसे ऊपर होगा... इस दोषी को पीड़िता के पिता और कुछ अन्य लोगों की हत्या का भी दोषी ठहराया गया... वह अभी भी जेल में है... वह बाहर नहीं आ पाया... मैं आपके लॉर्डशिप से आदेश पर रोक लगाने का आग्रह करता हूं। हम उस बच्चे के प्रति जवाबदेह हैं जो 15 साल का था!"

चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या CBI का मामला यह था कि एक बार जब पीड़ित नाबालिग होता है तो पब्लिक सर्वेंट होने का कॉन्सेप्ट अप्रासंगिक हो जाता है।

सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि बच्चे पर पेनिट्रेटिव यौन हमला खुद POCSO Act के तहत एक अपराध है। गंभीरता परिस्थितियों पर निर्भर करती है, जैसे कि दबदबे का दुरुपयोग। उन्होंने कहा कि बाद में किए गए संशोधन, जिनसे सज़ा बढ़ाई गई, नए अपराध नहीं बनाते। इसलिए संविधान के अनुच्छेद 20 का उल्लंघन नहीं करते।

सेंगर की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे और एन हरिहरन ने CBI की दलीलों का विरोध किया और तर्क दिया कि POCSO Act के तहत गंभीर अपराधों के मकसद से एक विधायक को पब्लिक सर्वेंट नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि एक दंडात्मक कानून दूसरे कानून से परिभाषाएं तब तक नहीं ले सकता जब तक कि कानून में स्पष्ट रूप से इसका प्रावधान न हो, और IPC में पब्लिक सर्वेंट को परिभाषित करने की अपनी योजना है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ट्रायल के दौरान जो आरोप तय किया गया और जिसका जवाब दिया गया, वह IPC की धारा 376(1) के तहत था।

हालांकि, सीजेआई ने सांसदों/विधायकों को पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा से बाहर रखने पर चिंता जताई।

उन्होंने कहा,

"अगर इस व्याख्या को स्वीकार किया जाता है तो एक कांस्टेबल या पटवारी पब्लिक सर्वेंट होगा लेकिन विधायक/सांसद नहीं होंगे और उन्हें छूट मिल जाएगी।"

जस्टिस माहेश्वरी ने बताया कि हाईकोर्ट ने IPC की धारा 376(2)(i) की प्रयोज्यता की जांच नहीं की, जो अपराध की तारीख को लागू है और नाबालिग के बलात्कार से संबंधित है। बेंच ने कहा कि "पब्लिक सर्वेंट" की परिभाषा और POCSO ढांचे के तहत इसकी प्रासंगिकता से संबंधित कानूनी मुद्दे पर फैसला करने की ज़रूरत है।

यह मानते हुए कि विचार के लिए कानून के सवाल उठते हैं, कोर्ट ने CBI की याचिका पर नोटिस जारी किया, जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया। साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी।

सीजेआई ने कहा,

"इस मामले पर विचार करने की ज़रूरत है। हम ऑर्डर पर रोक लगाने के पक्ष में हैं। सामान्य सिद्धांत यह है कि एक बार जब किसी को रिहा कर दिया जाता है, तो उसकी बात सुनी जाएगी। लेकिन यहाँ, वह अभी भी हिरासत में है (एक अलग मामले में)।"

Case Title:

(1) CBI v. Kuldeep Singh Sengar, SLP(Crl) 21367/2025

(2) Anjale Patel and Anr. v. Central Bureau of Investigation and Anr., Diary No. 75128-2025

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