सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के लोकल बॉडी चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के लोकल बॉडी चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है।
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने महाराष्ट्र अध्यादेश के खिलाफ दायर रिट याचिकाओं पर आदेश पारित किया, जिसके तहत स्थानीय निकाय चुनावों में 27% ओबीसी कोटा पेश किया गया था। राज्य चुनाव आयोग ने उसे प्रभावी करने के लिए अधिसूचनाएं जारी की थी।
पीठ ने कहा कि 27% ओबीसी कोटा एक आयोग का गठन किए बिना और स्थानीय सरकार के अनुसार प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के बारे में डेटा एकत्र किए बिना लागू नहीं किया जा सकता था।
पीठ ने आदेश में कहा
"स्थानीय सरकार के अनुसार डेटा एकत्र करने के लिए आयोग का गठन किए बिना, यह राज्य चुनाव आयोग की जिम्मेदारी नहीं है कि ओबीसी कैटेगरी के लिए चुनावों मे आरक्षण प्रदान करे। यह पहला कदम है, जिसे किया जाना चाहिए था।"
पीठ ने आदेश दिया कि राज्य चुनाव आयोग को ओबीसी आरक्षण के संबंध में पहले से अधिसूचित चुनाव कार्यक्रम के साथ आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। बाकी चुनाव कार्यक्रम सामान्य वर्ग सहित अन्य आरक्षित सीटों के लिए आगे बढ़ सकते हैं।
पीठ ने यह भी आदेश दिया कि एसईसी मध्यावधि या अन्य आम चुनावों के लिए ओबीसी श्रेणी में आरक्षित सीटों को अगले आदेश तक अधिसूचित नहीं करेगा।
स्थानीय निकाय के लिए नामांकन दाखिल करने की कल आखिरी तारीख है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह और राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े पेश हुए।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि राज्य सरकार स्थानीय निकायों में आरक्षण के संबंध में विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य एलएल 2021 एससी 13 में निर्धारित तिहरें परीक्षणों का पालन किए बिना अध्यादेश लाई।
तिहरे परीक्षण हैं -(1) राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक आयोग की स्थापना; (2) आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अधिकता का भ्रम न हो; और (3) किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के कुल 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।
उल्लेखनीय है कि विकास किशनराव गवली मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मार्च में महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम, 1961 के तहत दिए गए 27% ओबीसी आरक्षण को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि इसके परिणामस्वरूप 50 % आरक्षण की सीमा का उल्लंघन हुआ था।
इस साल सितंबर में राज्य सरकार ने महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम, 1961 और जिला परिषदों, पंचायत समिति और ग्राम पंचायतों के लिए महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम में संशोधन करने के लिए अध्यादेश लाई थी।
किसानराव कुंडलिकराव गवली (पूर्व विधायक और अकोला जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष) और राहुल चेतन रमेश वाघ द्वारा दायर रिट याचिकाओं में इस अध्यादेश और चुनाव अधिसूचना को चुनौती दी गई थी।
इन याचिकाओं पर विचार करते हुए जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अध्यादेश उच्चतम न्यायालय के फैसलों पर को निष्प्रभावी करने के लिए लाया गया था। पीठ ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि 27% ओबीसी आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार है।
याचिका(एं) एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड चंद्र प्रकाश के माध्यम से दायर की गई थीं।