गैर-पक्ष का दायर जवाबी हलफनामा क्यों स्वीकार किया गया: सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर को रजिस्ट्रार (न्यायिक) से स्पष्टीकरण मांगा कि कैसे एक पक्ष (इस मामले में शिकायतकर्ता) जवाबी हलफनामा दायर करने में सक्षम था, जबकि अदालत ने उसके पक्षकार बनने के आवेदन को अनुमति नहीं दी थी।
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के 17 मई के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के साथ 34 और धारा 323 और 326 के तहत अपराधों के लिए याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत खारिज कर दी गई थी।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की अवकाश पीठ ने 7 जून को 17 फरवरी की एफआईआर नंबर 07/2024 के संबंध में याचिकाकर्ता को अंतरिम अग्रिम जमानत दी थी।
14 नवंबर को मामले की सुनवाई हुई तो अदालत को बताया गया कि शिकायतकर्ता द्वारा जवाबी हलफनामा दायर किया गया। अदालत को बताया गया कि शिकायतकर्ता को पक्षकार बनाने की मांग करने वाले आवेदन को अदालत ने अनुमति नहीं दी।
इस पर, अदालत ने टिप्पणी की:
"रजिस्ट्री को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया जाता है कि प्रस्तावित प्रतिवादी शिकायतकर्ता, जो पक्षकार नहीं है, उसससे इस तरह के जवाबी हलफनामे को कैसे स्वीकार किया जा सकता है।"
दो सप्ताह बाद मामले को सूचीबद्ध करते हुए अदालत ने अपने अंतरिम आदेश को अगली सुनवाई तक बढ़ा दिया।
केस टाइटल: हरमनप्रीत सिंह बनाम पंजाब राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 7862/2024