सुप्रीम कोर्ट में कफ सिरप से बच्चों की मौत की CBI जांच की मांग वाली याचिका खारिज

Update: 2025-10-10 08:26 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (10 अक्टूबर) को मध्य प्रदेश और राजस्थान में दूषित कफ सिरप से बच्चों की मौत की CBI जांच की मांग वाली एक जनहित याचिका खारिज की।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि राज्य इस मामले की जांच करने के लिए सक्षम हैं और वे कार्रवाई कर रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की आदत है कि वह केवल अखबारों की खबरों के आधार पर जनहित याचिका दायर करता है।

चीफ जस्टिस ने पूछा,

"आपने कितनी जनहित याचिकाएं दायर की हैं?"

तिवारी ने जवाब दिया,

"आठ या नौ।"

इसके बाद खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी।

मध्य प्रदेश और राजस्थान में ज़हरीले कफ सिरप के सेवन से बच्चों की हाल ही में हुई मौतों के बाद यह जनहित याचिका दायर की गई।

वकील विशाल तिवारी द्वारा दायर इस याचिका में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) युक्त दूषित कफ सिरप के निर्माण, परीक्षण और वितरण की व्यापक जांच के लिए रिटायर सुप्रीम कोर्ट की अध्यक्षता में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग या विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की गई। ये वही ज़हरीले यौगिक हैं जिनसे पहले भी मौतें हुईं।

इस जनहित याचिका में विभिन्न राज्यों में ज़हरीले कफ सिरप के कारण बच्चों की मौतों से संबंधित सभी लंबित प्राथमिकियों और जांचों को एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को हस्तांतरित करने का निर्देश देने की भी माँग की गई ताकि निष्पक्ष और समन्वित जांच सुनिश्चित की जा सके। इसमें तर्क दिया गया कि कई राज्य-स्तरीय जांचों के परिणामस्वरूप जवाबदेही बिखरी हुई, जिससे ज़हरीले फ़ॉर्मूले उपभोक्ताओं तक बार-बार पहुंच रहे हैं।

जनहित याचिका में अधिकारियों को कोल्ड्रिफ कफ सिरप और श्रीसन फार्मा प्राइवेट लिमिटेड या उसकी संबंधित कंपनियों द्वारा निर्मित किसी भी अन्य उत्पाद के सभी बैचों को "तुरंत वापस लेने, जब्त करने और बिक्री एवं वितरण पर रोक लगाने" का निर्देश देने की भी मांग की गई। याचिकाकर्ता ने मांग की कि इन उत्पादों की आगे बिक्री या निर्यात की अनुमति देने से पहले एनएबीएल-मान्यता प्राप्त लैब द्वारा इनका विष विज्ञान परीक्षण और सत्यापन किया जाए।

Case Details : VISHAL TIWARI Versus UNION OF INDIA AND ORS| W.P.(C) No. 971/2025

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