सुप्रीम कोर्ट ने RG Kar मामले में बयान जारी करने पर कपिल सिब्बल के खिलाफ याचिका पर विचार करने से किया इनकार

Update: 2024-11-08 04:28 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट डॉ. आदिश सी अग्रवाल (सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के पूर्व अध्यक्ष) द्वारा दायर आवेदन पर विचार करने से इनकार किया, जिसमें सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल द्वारा SCBA के वर्तमान अध्यक्ष के तौर पर आरजी कर मेडिकल कॉलेज बलात्कार और हत्या मामले के संबंध में बयान जारी करने पर आपत्ति जताई गई थी।

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की पीठ ने अग्रवाल की याचिका वापस ले ली और टिप्पणी की कि कोर्ट SCBA के सभी अध्यक्षों को बार के नेता के तौर पर देखता है। सदस्यों के बीच किसी तरह की गुटबाजी या लड़ाई नहीं होनी चाहिए।

SCBA में चुनावी सुधारों से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान यह आवेदन लिया गया, जिसमें कोर्ट ने पहले SCBA पदों पर महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण का निर्देश दिया था। इस संबंध में कोर्ट को बताया गया कि बार के सदस्यों की ओर से कुछ सुझाव SCBA को भेजे गए। तदनुसार, न्यायालय ने निर्देश दिया कि सभी सुझावों को एकत्रित करके सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए।

इसके बाद अग्रवाल के आवेदन पर विचार किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि आरजी कार मामले में पश्चिम बंगाल राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त सिब्बल ने SCBA के अन्य सदस्यों से परामर्श किए बिना बयान जारी किया। हालांकि, जस्टिस कांत ने आवेदन को अनुचित मानते हुए उनकी बात बीच में ही रोक दी।

न्यायाधीश ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि सिब्बल ने केवल यही गलती की कि वह अग्रवाल को एक कप कॉफी पर नहीं ले गए।

सिब्बल ने भी उनकी बात में शामिल होते हुए कहा,

"मैं उन्हें और भी कॉफी देने को तैयार हूं।"

जब अग्रवाल ने जोर दिया तो जस्टिस कांत ने कहा कि न्यायालय SCBA के अध्यक्षों (वर्तमान और पूर्व) को बार के नेता के रूप में देखता है और सदस्यों को गुटबाजी/झगड़े में शामिल नहीं होना चाहिए।

"हमारे लिए मिस्टर कपिल सिब्बल, आप, मिस्टर पारेख, आप सभी बार के नेता हैं। आप बार के स्तंभ और ताकत हैं। इसलिए जब हम सुधारों की बात करते हैं तो हम आप लोगों की ओर देखते हैं।"

इस बिंदु पर अग्रवाल ने अनुरोध किया कि सिब्बल से स्पष्ट रूप से कहा जाए कि वह इस तरह का आचरण (परामर्श के बिना प्रस्ताव पारित करना) नहीं दोहराएंगे, अन्यथा SCBA का लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि SCBA के सदस्यों ने इस मुद्दे को उठाया, लेकिन सिब्बल ने इसे नहीं उठाया।

जस्टिस कांत ने इसका जवाब देते हुए कहा,

"मिस्टर सिब्बल न केवल सीनियर सांसद हैं, बल्कि एक सीनियर एडवोकेट भी हैं। वह जानते हैं कि बार के लिए और बार के कल्याण और लाभ के लिए क्या किया जाना चाहिए। वह अपनी जिम्मेदारियों को जानते हैं।"

आवेदन किस बारे में था?

अग्रवाल ने SCBA अध्यक्ष के रूप में सिब्बल द्वारा 21.08.2024 को पारित किए गए प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए आवेदन दायर किया, जिसमें उन्होंने "घटना को अस्वस्थता का लक्षण बताया।"

प्रस्ताव में कहा गया:

"सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) माननीय चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा देश में व्याप्त अव्यवस्था और अस्पतालों में महिला ट्रेनी और अन्य महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा पर व्यक्त की गई चिंता की गहराई से सराहना करता है। SCBA इन चिंताओं को दूर करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए ऐतिहासिक कदमों का समर्थन करता है, विशेष रूप से ऐसी बर्बर घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए प्रोटोकॉल के साथ-साथ नीतिगत ढांचा तैयार करने के लिए उठाए गए कदमों का।

आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में जो कुछ हुआ, वह अस्वस्थता का लक्षण है। अब जब जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी गई तो हमें विश्वास है कि न्याय होगा और आरोपियों को उचित सजा मिलेगी। SCBA न्यायालय की चिंता के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है। आशा करता है तथा प्रार्थना करता है कि देश भर में हुई ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।"

अग्रवाला ने दावा किया कि सिब्बल ने कार्यकारी समिति की कोई वर्चुअल/फिजिकल बैठक किए बिना SCBA के लेटरहेड पर बयान जारी किया। इस तरह यह बयान SCBA नियमों के विपरीत है। इसलिए अमान्य है।

आवेदन में उल्लेख किया गया कि 22.08.2024 को SCBA कार्यकारी समिति के 21 निर्वाचित सदस्यों में से 11 ने सिब्बल को एक पत्र लिखकर बयान पर कड़ी आपत्ति जताई।

अग्रवाला का मामला यह था कि सिब्बल ने न्यायालय और जांच को प्रभावित करने के लिए कथित तौर पर प्रस्ताव जारी किया। इस तरह उन्होंने SCBA की विश्वसनीयता और अखंडता को कमजोर किया।

"मिस्टर अग्रवाल ने कहा कि सिब्बल ने SCBA के लेटरहेड पर बयान जारी किया, लेकिन कार्यकारी समिति की कोई वर्चुअल/फिजिकल बैठक नहीं की। इस तरह यह बयान SCBA नियमों के विपरीत है। इसलिए अमान्य है।

आवेदन में उल्लेख किया गया कि 22.08.2024 को SCBA कार्यकारी समिति के 21 निर्वाचित सदस्यों में से 11 ने सिब्बल को एक पत्र लिखकर बयान पर कड़ी आपत्ति जताई।

अग्रवाला का कहना था कि सिब्बल ने न्यायालय और जांच को प्रभावित करने के लिए प्रस्ताव जारी किया। इस तरह उन्होंने SCBA की विश्वसनीयता और अखंडता को कमजोर किया।

पूर्व SCBA अध्यक्ष ने कहा,

"मिस्टर अग्रवाल ने कहा कि सिब्बल ने SCBA के लेटरहेड पर बयान जारी किया, लेकिन कार्यकारी समिति की कोई वर्चुअल/फिजिकल बैठक नहीं की। यह बयान SCBA के नियमों के विपरीत है। इसलिए अमान्य है। SCBA के अध्यक्ष कपिल सिब्बल, आर. जी. कार मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, कोलकाता से संबंधित मामलों में पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। साथ ही वह घटना की गंभीरता को कम करने के लिए अपने पद का उपयोग कर रहे हैं और देश के बहुत संवेदनशील मुद्दों पर कथित प्रस्ताव को व्यक्तिगत रूप से जारी करके हितों के टकराव को प्रदर्शित किया।"

अग्रवाल ने आगे उल्लेख किया कि 23. 08.2024 को उन्होंने सिब्बल को पत्र लिखा, जिसमें उनसे प्रस्ताव वापस लेने का आग्रह किया गया। इस पत्र में कहा गया कि यदि सिब्बल ने प्रस्ताव वापस नहीं लिया और 72 घंटों के भीतर सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगी तो अग्रवाल और अन्य SCBA सदस्य उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए बाध्य होंगे (उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने के लिए)। चूंकि सिब्बल ने पत्र के आगे कोई कार्रवाई नहीं की, इसलिए अग्रवाल ने कहा कि वे अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं। हालांकि, SCBA अध्यक्ष के खिलाफ विशेष आम बैठक के समक्ष एक वैध प्रतिनिधित्व रखने में सक्षम होने के लिए न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 04.03.2024 के आदेश का अनुपालन करना होगा।

उन्होंने प्रस्तुत किया कि दिनांक 04.03.2024 के आदेश के बाद SCBA की एक नई मतदाता सूची तैयार की गई। इस प्रकार, इस बारे में अस्पष्टता थी कि प्रतिनिधित्व पर हस्ताक्षर करने के लिए कौन पात्र होगा। तदनुसार, आवेदन में न्यायालय के दिनांक 04.03.2024 के आदेश के स्पष्टीकरण की मांग की गई।

संदर्भ के लिए, दिनांक 04.03.2024 का आदेश इस प्रकार है:

"हम प्रथम दृष्टया संतुष्ट हैं कि वे सभी सदस्य जो SCBA नियमों के नियम 18 के अनुसार चुनाव लड़ने और मतदान करने के पात्र हैं, वे इन नियमों के नियम 22 के तहत बुलाई जाने वाली विशेष आम बैठक में आमंत्रित किए जाने और भाग लेने के पात्र होंगे"।

केस टाइटल: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम बी.डी. कौशिक, डायरी नंबर 13992-2023

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