सुप्रीम कोर्ट ने बौद्धों के लिए अलग पर्सनल लॉ की मांग वाली याचिका लॉ कमीशन को भेजी
सुप्रीम कोर्ट ने बौद्ध समुदाय के लिए अलग पर्सनल लॉ की मांग वाली याचिका को लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया के विचार के लिए भेज दिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच बौद्ध पर्सनल लॉ एक्शन कमेटी की तरफ से फाइल की गई एक PIL पर सुनवाई कर रही थी।
कमेटी ने बौद्ध समुदाय के लिए अलग पर्सनल लॉ की मांग की थी।
खास बात यह है कि सिख, जैन और बौद्ध समुदाय अभी हिंदू मैरिज एक्ट, 1955; हिंदू सक्सेशन एक्ट, 1956; हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956 और हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 जैसे हिंदू पर्सनल लॉ के तहत आते हैं।
सीजेआई ने बताया कि हालांकि कोर्ट संसद को कॉन्स्टिट्यूशनल अमेंडमेंट करने के लिए ऐसा मैंडेमस जारी नहीं कर सकता, लेकिन वह मामले को लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया (LCI) के विचार के लिए रीडायरेक्ट कर सकता है।
सीजेआई ने याचिकाकर्ता से कहा,
"कोर्ट संविधान में बदलाव का निर्देश देने की स्थिति में नहीं है। हालांकि, लॉ कमीशन को पार्लियामेंट को सुझाव देने हैं। हम लॉ कमीशन से रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि वह आपको सुनने का मौका दे।"
खास बात यह है कि बेंच ने बताया कि इस विषय पर LCI पहले से ही यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) पर 21वीं LCI रिपोर्ट के तहत विचार कर रहा था।
इस पर विचार करते हुए मामले में दखल देने से इनकार करते हुए उसने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता की याचिका को इस मुद्दे पर पूरी तरह से विचार करने के लिए LCI को भेजा जाए। उसने LCI से यह भी रिक्वेस्ट की कि वह याचिकाकर्ता के प्रतिनिधि को उनका रुख समझने के लिए बुलाए।
ऑर्डर के महत्वपूर्ण हिस्से में लिखा:
"सबसे बड़ी एक्सपर्ट बॉडी- लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया पूरी तरह से देख सकता है और उसी हिसाब से सुझाव दे सकता है। LCI को पेंडिंग मामले को जल्दी सुलझाने में मदद करने के लिए हम इस रिट पिटीशन को पिटीशनर की तरफ से LCI के सामने पेशी मानकर उसका निपटारा करना सही समझते हैं। रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता द्वारा रिकॉर्ड पर लाए गए मटीरियल पर विचार करने के लिए पेपरबुक का पूरा सेट LCI को भेजा जाए।"
आगे कहा गया,
"हम LCI से यह भी रिक्वेस्ट करते हैं, अगर वह सही समझे, तो पिटीशनर के रिप्रेजेंटेटिव को बुलाए और इस मामले पर उनका नज़रिया जाने; इससे बेशक लॉ कमीशन को अपना नज़रिया बनाने में अच्छी मदद मिलेगी।"
Case Details : BUDDHIST PERSONAL LAW ACTION COMMITTEE Versus UNION OF INDIA AND ORS.| W.P.(C) No. 1138/2025