सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए डीआरटी के पीठासीन अधिकारी चंडीगढ़ को फटकार लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने 12 मई को डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) चंडीगढ़ के पीठासीन अधिकारी को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर करने के लिए फटकार लगाई। डीआरटी के पीठासीन अधिकारी ने यह आरोप लगाते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि हाईकोर्ट ने उनकी विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को प्रभावित करते हुए उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट डीआरटी के वकीलों द्वारा पीठासीन अधिकारी के खिलाफ उठाई गई शिकायतों पर गौर कर रहा है और यह कि हाईकोर्ट ने केवल डीआरटी अध्यक्ष के समक्ष लंबित मामले की स्थिति के बारे में निर्देश मांगे है। इसलिए इस स्तर पर डीआरटी के पीठासीन अधिकारी को सुप्रीम कोर्ट में "जल्दबाज़ी" नहीं करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने "बड़ी नाराजगी" के साथ याचिका खारिज करते हुए कहा,
"यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ट्रिब्यूनल के सदस्य होने के नाते याचिकाकर्ता ने वर्तमान विशेष अनुमति याचिका दायर की। जब बार एसोसिएशन के सदस्यों ने कुछ शिकायतों के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जो पहले याचिकाकर्ता के खिलाफ भी उठाई गई और जब हाईकोर्ट उसी पर विचार कर रहा और हाईकोर्ट ने देखा कि अधिकरण की ओर से वकील आवश्यक हो याचिकाकर्ता के खिलाफ उठाई गई शिकायतें किस स्तर पर अध्यक्ष, डीआरएटी के समक्ष लंबित हैं। इस निर्देश पर याचिकाकर्ता को वर्तमान विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से इस न्यायालय में नहीं जाना चाहिए। हम अपनी भारी नाराजगी के साथ वर्तमान विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं। विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।"
पीठासीन अधिकारी और डीआरटी वकीलों के बीच मनमुटाव का इतिहास रहा है।
डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन ने अक्टूबर, 2022 में रिट याचिका दायर कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसी पीठासीन अधिकारी ने वित्तीय संस्थानों और उधारकर्ताओं दोनों के लिए पेश होने वाले वकीलों को परेशान किया। उक्त अधिकारी के विरोध में 26 अक्टूबर, 2022 को बार एसोसिएशन भी हड़ताल पर चला गया और उक्त पीठासीन अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने से परहेज किया।
हालांकि हाईकोर्ट ने हड़ताल पर जाने के लिए बार एसोसिएशन के आचरण की निंदा की, लेकिन उसने उसके समक्ष लंबित मामलों की 'थोक बिक्री' को रोकने के लिए अंतरिम आदेश पारित किया। अधिकारी के खिलाफ 'गंभीर आरोप' और बार एसोसिएशन के साथ उनके 'गंभीर रूप से तनावपूर्ण' संबंधों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 30 नवंबर, 2022 तक उनके सामने लंबित किसी भी मामले में किसी भी प्रतिकूल आदेश को पारित करने पर रोक लगा दी।
हाईकोर्ट के उस निर्देश को चुनौती देते हुए संबंधित पीठासीन अधिकारी एम.एम. धोनचक ने पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एसएलपी दायर की। उन्होंने तर्क दिया कि यह सुस्थापित कानून है कि बार एसोसिएशन को अपनी बैठक में न्यायाधीश के आचरण पर चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं है।
इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि वकील हड़ताल/बहिष्कार का सहारा नहीं ले सकते और एक बार एसोसिएशन कोर्ट के काम के हड़ताल/बहिष्कार का समर्थन करने के लिए प्रस्ताव पारित नहीं कर सकता।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि एक जिला न्यायाधीश के रूप में उनकी वर्षों की सेवा के बाद उनकी ईमानदार न्यायाधीश होने की प्रतिष्ठा है और हाईकोर्ट के आदेश से यह संदेश जाता है कि न्यायिक अधिकारियों को उनके द्वारा अपनाई गई "आर्म-ट्विस्टिंग" रणनीति बार के अधीन होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 02.12.2022 को पाया कि न्यायिक सदस्य को न्यायिक मामलों से फिर से प्रशिक्षित करने का आदेश कानून में टिकाऊ नहीं है। उसी के मद्देनजर, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित किया और धोनचक को योग्यता के आधार पर सुनवाई के लिए आगे बढ़ने की अनुमति दी। यह सलाह दी गई कि न्याय वितरण प्रणाली का हिस्सा होने के कारण बार और बेंच दोनों ही सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर, 2022 को डीआरटी के अध्यक्ष को स्वतंत्र रूप से उचित निर्णय लेने के लिए कहते हुए मामले का निस्तारण कर दिया।
बाद में हाईकोर्ट के समक्ष पीठासीन अधिकारी द्वारा देरी के आधार पर आवेदन खारिज करने पर आलोचनात्मक टिप्पणी की और कहा कि इस तरह का रवैया लोगों के प्रति अधिकारी की असंवेदनशीलता को दर्शाता है, विशेष रूप से उन लोगों के संबंध में जो COVID-19 महामारी के कारण बकाया लोन का सामना कर रहे है। सुप्रीम कोर्ट के दिनांक 12.12.2022 के निर्देश के मद्देनजर ऐसे कितने आवेदनों को बहाल किया गया और कितने लंबित हैं, इसके निर्देश मांगे गए।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कार्यवाही डीआरटी बार एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड सिद्धार्थ बत्रा ने एडवोकेट रिदम कत्याल के साथ किया।
केस टाइटल: एमएम धोनचक बनाम डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन व अन्य, एसएलपी नंबर 7926/2023
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