आपराधिक पृष्ठभूमि पर झूठा हलफनामा दाखिल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश पुलिस की खिंचाई की, अधिकारियों को तलब किया
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश पुलिस की ज़मानत याचिका का विरोध करते हुए झूठा हलफनामा दाखिल करने और एक ऐसे अभियुक्त के नाम पर कई आपराधिक मामले दर्ज करने के लिए कड़ी आलोचना की, जो इन मामलों में शामिल ही नहीं था।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि राज्य के पहले हलफनामे में दावा किया गया कि याचिकाकर्ता के "आठ अन्य आपराधिक पृष्ठभूमि" हैं। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि इनमें से चार मामलों में, जिनमें से एक IPC की धारा 376 के तहत दर्ज है, याचिकाकर्ता अभियुक्त भी नहीं था।
जब मामले की सुनवाई शुरू हुई तो राज्य ने गलती स्वीकार करते हुए दावा किया कि यह गड़बड़ी इसलिए हुई क्योंकि याचिकाकर्ता और उसके पिता के नाम एक जैसे थे और जानकारी "कंप्यूटर जनित" थी।
खंडपीठ ने इस स्पष्टीकरण को सिरे से खारिज करते हुए कहा:
"हम प्राधिकरण की ओर से लिए गए इस रुख को सिरे से खारिज करते हैं।"
इसे ज़मानत के लिए उपयुक्त मामला पाते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता अनवर हुसैन को ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन ज़मानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।
अपने समक्ष दिए गए झूठे बयानों को विशेष रूप से एक नागरिक की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले मामले में गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (प्रभारी अधिकारी) मिस्टर दिशेष अग्रवाल और संबंधित पुलिस थाने के थाना प्रभारी मिस्टर इंद्रमणि पटेल को कारण बताओ नोटिस जारी किया।
कोर्ट ने दोनों अधिकारियों और गलत हलफनामा तैयार करने में शामिल अन्य सभी लोगों को 25 नवंबर, 2025 को पीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने और उस तिथि से कम से कम दो दिन पहले अपना स्पष्टीकरण दाखिल करने का निर्देश दिया।
इस मामले की अगली सुनवाई 25 नवंबर, 2025 को होगी।