सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के खिलाफ पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी को लेकर दर्ज सभी एफआईआर में कठोर कार्रवाई करने पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को अंतरिम राहत देते हुए मंगलवार को निर्देश दिया कि 26 मई को टेलीविजन चैनल पर बहस के दौरान पैगंबर मोहम्मद पर उनकी टिप्पणी को लेकर कई राज्यों में दर्ज एफआईआर में उनके खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाए।
कोर्ट ने कहा कि वही राहत भविष्य में किसी भी एफआईआर या शिकायत को कवर करेगी, जो उसी प्रसारण के संबंध में उसके खिलाफ दर्ज की जा सकती है या उस पर विचार किया जा सकता है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने उसकी पिछली याचिका को पुनर्जीवित करने के लिए दायर नए विविध आवेदन पर नोटिस जारी किया।
ध्यान रहे कि इसी पीठ ने 1 जुलाई को शर्मा की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।
शर्मा के वकील सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट के 1 जुलाई के आदेश के बाद उसके जीवन को वास्तविक और गंभीर खतरा सामने आया हैं। जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरों के कारण वह हाईकोर्ट के पास जाने के वैकल्पिक उपाय का लाभ उठाने की स्थिति में नहीं हैं। जैसा कि पहले सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था।
इस दलील पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता शर्मा की सुरक्षा सुनिश्चित करना है ताकि वह कानून के तहत अपने उपचार का लाभ उठा सकें। पीठ ने केंद्र और राज्यों (जहां एफआईआर दर्ज की गई है) को जान से मारने की धमकी से सुरक्षा देने के तौर-तरीकों का पता लगाने के लिए नोटिस जारी किया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा,
"इसका पता लगाने के लिए 10 अगस्त तक प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया जाए। नोटिस के साथ मुख्य रिट याचिका की प्रतियां भी अग्रेषित की जाएं। सरकारी वकीलों के माध्यम से याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता प्रदान की गई। इस बीच अंतरिम उपाय के रूप में यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आक्षेपित एफआईआर या ऐसी एफआईआर/शिकायतों के आधार पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी, जो भविष्य में उसी प्रसारण दिनांक 26.05.2022 के संबंध में दर्ज की जा सकती हैं।"
पैगंबर मोहम्मद पर शर्मा की टिप्पणी को लेकर विभिन्न राज्यों में दर्ज एफआईआर को दिल्ली में स्थानांतरित करने के लिए दायर की गई अपनी वापस ली गई रिट याचिका को पुनर्जीवित करने के लिए शर्मा के आवेदन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उसे यह राहत दी है।
शर्मा ने अंतरिम राहत के तौर पर इन मामलों में गिरफ्तारी पर रोक लगाने की भी मांग की थी। रिट याचिका को फिर से खोलने के लिए दायर विविध आवेदन में शर्मा ने कहा कि 1 जुलाई को अदालत की आलोचनात्मक टिप्पणियों के बाद उसे बलात्कार और मौत की धमकी मिल रही है।
नुपुर शर्मा ने अपनी सार्वजनिक टिप्पणियों के खिलाफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाश पीठ की आलोचनात्मक टिप्पणी के बाद 1 जुलाई को अपनी याचिका वापस ले ली थी, जिसमें पीठ ने कहा था कि "पूरे देश में आग लगा दी।"
शर्मा की रिट याचिका में महाराष्ट्र, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, असम और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में दर्ज एफआईआर को दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर के साथ जोड़ने की मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने कहा कि अपनी याचिका वापस लेने के बाद शर्मा के जीवन पर लगातार बढ़ते खतरे; उसके जीवन के लिए वास्तविक खतरा; शर्मा के लिए अन्य उपचार प्राप्त करना व्यावहारिक रूप से असंभव है।
शर्मा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने कहा कि शर्मा द्वारा 1 जुलाई को अपनी याचिका वापस लेने के बाद उनके जीवन के लिए गंभीर खतरे लगातार बढ़ रहे हैं।
सिंह ने प्रस्तुत किया कि आदेश दिनांक 01.07.2022 के बाद विभिन्न घटनाएं हुई हैं जैसे- (i) अजमेर दरगाह के खादिम का दावा करने वाले सलमान चिश्ती ने याचिकाकर्ता की हत्या के लिए वीडियो प्रसारित किया है और (ii) एक अन्य व्यक्ति ने याचिकाकर्ता को सिर काटने की धमकी देते हुए वीडियो प्रसारित किया।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ और एफआईार दर्ज की गई हैं। यहां तक कि कोलकाता पुलिस ने भी लुकआउट सर्कुलर जारी किया है, जिसके कारण उसे आसन्न गिरफ्तारी की आशंका है।
उन्होंने कहा,
"धमकी जारी है। एफआईआर को रद्द करने के लिए हर जगह जाने पर मुझमें जान का गंभीर खतरा है। यह तथाकथित आपराधिक अपराध और कई एफआईआर का आरोप है। मैं माई लॉर्ड से करती हूं कि खतरा वास्तविक और असली है। अनुच्छेद 21 के तहत मेरे अधिकार दांव पर हैं। माई लॉर्ड धारा 21 के रक्षक हैं।"
जस्टिस कांत ने इस मौके पर कहा कि पीठ का इरादा यह नहीं है कि वह एफआईआर रद्द कराने के लिए सभी हाईकोर्ट में जाएं।
जज ने कहा,
'इस हद तक हम सुधार कर रहे हैं, हमारा इरादा नहीं है कि आपको हर जगह जाना पड़े। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या शर्मा अपनी पसंद के किसी स्थान पर जाने को तैयार हैं।
सिंह ने कहा,
"दिल्ली पहली प्राथमिकी है। जहां भी पहली प्राथमिकी है, वही कानून है।"
जस्टिस कांत ने पूछा,
"क्या आप दिल्ली हाईकोर्ट जाने के इच्छुक होंगे?"
सिंह ने हां में जवाब दिया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने एक जुलाई को शर्मा की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। सुनवाई के दौरान, पीठ ने शर्मा के खिलाफ कड़ी मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि वह "देश में जो हो रहा है उसके लिए जिम्मेदार हैं।"
पीठ ने कहा कि किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता होना गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी करने का लाइसेंस नहीं है। पीठ ने यह भी कहा था कि याचिका "अहंकार की बू आती है कि देश के मजिस्ट्रेट उसके लिए बहुत छोटे हैं।"
इसके आगे पीठ ने कहा कि उसे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बजाय वैकल्पिक उपायों का लाभ उठाना चाहिए। पीठ की आलोचनात्मक टिप्पणी के बाद शर्मा के वकील ने याचिका वापस लेने का फैसला किया।
केस टाइटल : एनवी शर्मा बनाम भारत संघ| एमए 001238 - / 2022 डब्ल्यूपी (सीआरएल) 239/2022 . में