सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक दस्तावेजों के बिना सिंगल मदर्स के बच्चों को OBC सर्टिफिकेट जारी करने के लिए दिशा-निर्देशों पर विचार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सिंगल मदर्स के बच्चों को OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) सर्टिफिकेट प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने का प्रस्ताव रखा, जिससे पैतृक पक्ष से दस्तावेजों पर जोर दिए बिना इसे जारी किया जा सके।
जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और इसे 22 जुलाई को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
आदेश ने उठाए गए मुद्दे को इस प्रकार संक्षेप में प्रस्तुत किया,
"वर्तमान याचिका सिंगल मदर्स के बच्चों को OBC सर्टिफिकेट जारी करने के बारे में महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है, जहां मां OBC कैटेगरी से संबंधित है। याचिकाकर्ता का दावा है कि सर्टिफिकेट सिंगल मदर के पास मौजूद सर्टिफिकेट के आधार पर जारी किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि वर्तमान दिशा-निर्देश किसी भी पैतृक रक्त संबंधी को जारी किए गए OBC सर्टिफिकेट को आधार मानते हुए ऐसा प्रतीत होता है। याचिकाकर्ता के अनुसार, इससे सिंगल मदर्स को गंभीर कठिनाई होती है।"
जस्टिस विश्वनाथन ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि संबंधित मुद्दा महत्वपूर्ण है। कुछ पहलुओं को सुलझाने के बाद दिशा-निर्देश निर्धारित किए जाएंगे।
जज ने सवाल किया,
"मान लीजिए कि एक तलाकशुदा मां है तो उसे पिता के पीछे क्यों पड़ना चाहिए?"
फरवरी, 2025 में याचिका पर नोटिस जारी किया गया था, जिसमें दिल्ली सरकार के साथ-साथ भारत संघ से भी जवाब मांगा गया था।
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान भारत संघ और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने रमेशभाई दाभाई नायका बनाम गुजरात राज्य [2012 (3) एससीसी 400] के फैसले की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने आग्रह किया कि न्यायालय को OBC के संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करने पड़ सकते हैं।
बता दें, टाइटल वाले मामले ने केवल एक माता-पिता से पैदा हुए बच्चे की जाति की स्थिति का मुद्दा उठाया, जिनमें से केवल एक अनुसूचित जाति का सदस्य है। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे बच्चे की जाति की स्थिति प्रत्येक मामले के तथ्यों (जिस परिवेश में उनका पालन-पोषण हुआ, सहित) पर निर्भर करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2012 के फैसले में कहा था,
"अंतरजातीय विवाह या आदिवासी और गैर-आदिवासी के बीच विवाह में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बच्चे की जाति पिता की है। यह अनुमान उस स्थिति में अधिक मजबूत हो सकता है, जब अंतरजातीय विवाह या आदिवासी और गैर-आदिवासी के बीच विवाह में पति अगड़ी जाति का हो। लेकिन किसी भी तरह से यह अनुमान निर्णायक या अखंडनीय नहीं है। ऐसे विवाह से उत्पन्न बच्चे के लिए यह सबूत पेश करना खुला है कि उसका पालन-पोषण उसकी मां ने किया, जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित है। अगड़ी जाति के पिता का बेटा होने के कारण उसे जीवन में कोई लाभकारी शुरुआत नहीं मिली, बल्कि इसके विपरीत उसे अपनी मां के समुदाय के किसी अन्य सदस्य की तरह ही अभाव, अपमान और दिव्यांगता का सामना करना पड़ा। इसके अतिरिक्त, उसे हमेशा उस समुदाय का सदस्य माना जाता है, जिससे उसकी मां संबंधित है, न केवल उस समुदाय द्वारा, बल्कि समुदाय के बाहर के लोगों द्वारा भी।"
पक्षकारों की दलीलों पर विचार करते हुए और सीजेआई बीआर गवई के आदेशों के अधीन इस मामले को 22 जुलाई को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया। न्यायालय ने कहा कि ऐसे राज्य जो अपना रुख रिकॉर्ड पर लाना चाहते हैं, उन्हें ऐसा करने की स्वतंत्रता होगी।
जस्टिस विश्वनाथन ने पक्षकारों से कहा,
"आपको देखना होगा और कहना होगा कि अगर एकल मां ने अंतरजातीय विवाह किया तो क्या होगा। अगर अंतरजातीय विवाह हुआ तो समस्या उत्पन्न होगी। उन्होंने SC/ST के लिए इसे हल कर दिया...उन्होंने कहा कि अगर मां SC/ST है और पिता नहीं है तो क्या होगा...वे अभी भी कहते हैं कि अगर बच्चे का पालन-पोषण मां के आसपास होता है तो आप लाभ से इनकार नहीं कर सकते...इसी तरह इस मामले की अंतिम सुनवाई में उन मुद्दों को सुलझाया जाना चाहिए..."
जस्टिस विश्वनाथन ने यह भी कहा कि क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू रहेगी, क्योंकि यह आय पर लागू है।
Case Title: SANTOSH KUMARI Versus GOVERNMENT OF NCT OF DELHI AND ORS., W.P.(C) No. 55/2025