महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हर सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ नहीं होना चाहिए

Update: 2022-10-12 06:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मौखिक रूप से कहा कि महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड की चिंता वक्फों की सुरक्षा के बारे में होनी चाहिए न कि अन्य सार्वजनिक ट्रस्टों के बारे में।

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ वक्फ सहित 57 एसएलपी के बैच पर विचार करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की,

"वक्फ बोर्ड का सार्वजनिक ट्रस्ट पर अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।"

जुलाई में न्यायालय इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए सहमत हो गया कि क्या इस्लाम को मानने वाले किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित प्रत्येक धर्मार्थ ट्रस्ट अनिवार्य रूप से बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम 1950 और वक्फ अधिनियम, 1995 की रूपरेखा पर वक्फ है।

महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड की ओर से पेश हुए भारत के पूर्व एडवोकेट जनरल और सीनियर एडवोकेट केके वेणुगोपाल ने बड़े पैमाने पर निम्नलिखित प्रस्तुतियां दीं:

1. हाईकोर्ट ने आक्षेपित निर्णय में वक्फ अधिनियम, 1950 के तहत वक्फ के शामिल होने तक सभी मुस्लिम सार्वजनिक ट्रस्टों पर बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 को लागू करने का निर्देश दिया।

2. हाईकोर्ट के लिए यह असंभव है कि वह रजिस्टर्ड वक्फ सहित मुस्लिम पब्लिक ट्रस्टों की निगरानी जारी रखने के लिए चैरिटी कमिश्नर को अधिकार क्षेत्र दे।

3. वक्फ अधिनियम, 1950 में वक्फ की परिभाषा बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 की तुलना में व्यापक है।

4. संविधान के अनुच्छेद 254 के तहत विरोध के सिद्धांत पर वक्फ अधिनियम लोक ट्रस्ट अधिनियम को ओवरराइड करेगा।

यह याद किया जा सकता है कि वेणुगोपाल ने पहले पूर्व सीजेआई एनवी रमाना के समक्ष शिकायत की कि वक्फ बोर्ड ने उन्हें वकील के रूप में हटाने का प्रयास किया (जबकि वह अटॉर्नी जनरल थे) और बोर्ड के खिलाफ अवमानना ​​​​कार्रवाई की मांग की।

वेणुगोपाल ने सुनवाई की शुरुआत में इस बात पर प्रकाश डाला कि वक्फ अधिनियम, 1995 क्यों लागू किया गया।

उन्होंने कहा,

"अधिनियम ने 1954 के अधिनियम को निरस्त कर दिया और वक्फ के बेहतर प्रशासन के लिए अधिनियमित किया गया। अधिनियम वक्फ और वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और पर्यवेक्षण से संबंधित पूर्ण कोड है।"

अधिनियम में वक्फ के सर्वेक्षण कमिश्नर द्वारा अधिनियम के प्रारंभ के दौरान विद्यमान वक्फों के सर्वेक्षण का प्रावधान है। अधिनियम में वक्फ बोर्ड का भी प्रावधान है, जिसका प्राथमिक कर्तव्य सर्वेक्षण कमिश्नर द्वारा तैयार की गई वक्फों की सूची की जांच करना और उसे अधिसूचित करना है। इस अधिनियम ने वक्फ और वक्फ संपत्तियों से संबंधित विवादों का फैसला करने के लिए वक्फ न्यायाधिकरण भी स्थापित किया।

सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा,

"संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं, इस मुद्दे को निपटाने के लिए अधिनियम के तहत प्राधिकरण स्थापित किए गए हैं ..... इसलिए पहले बोर्ड द्वारा पहचान की जाएगी। यदि बोर्ड का निर्णय विवादित है तो सिविल कोर्ट द्वारा पहचान की जाएगी।"

यह भी बताया गया कि वक्फ का बहुत बड़ा वर्ग वक्फ की परिभाषा के अनुसार बॉम्बे ट्रस्ट एक्ट, 1950 की परिभाषा में शामिल नहीं है, वक्फ एक्ट, 1954 से अलग है।

हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड के गठन को इस आधार पर रद्द कर दिया कि राज्य सरकार द्वारा बोर्ड के गठन की तारीख को राज्य में मौजूद शिया या सुन्नी वक्फों की संख्या के बारे में कोई सर्वेक्षण रिपोर्ट नहीं है।

कोर्ट ने कहा,

"हाईकोर्ट के अनुसार पहले सर्वेक्षण रिपोर्ट को पूरा करना होगा उसके बाद ही वक्फ बोर्ड को शामिल किया जा सकता है। 90% राज्यों में सर्वेक्षण रिपोर्ट अभी तक पूरी नहीं हुई।"

वेणुगोपाल ने न्यायालय को यह भी बताया कि वक्फ बोर्ड वक्फ के सर्वेक्षण कमिश्नर की रिपोर्ट पर निर्भर नहीं है। यह वक्फ बोर्ड की स्थापना के लिए कोई मिसाल नहीं है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण केवल उन विषयों की पहचान करने की प्रक्रिया है जिन्हें वक्फ बोर्ड द्वारा नियंत्रित और पर्यवेक्षण किया जाएगा।

उन्होंने अधिनियम की धारा 5 के माध्यम से बेंच को भी लिया, जिसमें राज्य सरकार को वक्फ के सर्वेक्षण कमिश्नर की रिपोर्ट को बोर्ड को अग्रेषित करने की आवश्यकता होती है, जिसे वक्फ की सूची के रूप में रिपोर्ट की जांच और प्रकाशित करना आवश्यक है।

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि जब तक सर्वेक्षण पूरा नहीं हो जाता और वक्फ बोर्ड का गठन नहीं हो जाता, तब तक बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 के प्रावधान सभी मुस्लिम पब्लिक ट्रस्टों पर लागू होते रहेंगे।

यह प्रस्तुत किया गया कि हाईकोर्ट यह मानने में विफल रहा कि वक्फ अधिनियम, विशेष अधिनियम होने के कारण सामान्य प्रकृति के राज्य विधान पर प्रबल होगा।

वेणुगोपाल ने वक्फ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए याचिकाकर्ता द्वारा प्रकाशित 'वक्फों की सूची' को हाईकोर्ट द्वारा रद्द करने पर भी आपत्ति जताई। सीनियर एडवोकेट ने कहा कि यह संयुक्त संसदीय समिति की 9वीं रिपोर्ट को गलत तरीके से पढ़ने के कारण है।

उन्होंने कहा,

"जेपीसी ने पाया कि वक्फ को शामिल किया गया। इसे राज्य द्वारा स्वीकार किया गया। सूची में जो कुछ भी दिखाया गया है, उन्हें सार्वजनिक ट्रस्ट के रूप में नहीं माना जा सकता है। चाहे आप इसे अलग कर दें और इसे पुनर्स्थापित करें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रथम दृष्टया ये वक्फ हैं। चैरिटी कमिश्नर (बॉम्बे ट्रस्ट्स एक्ट के तहत) के पास मामले से निपटने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्हें इसे बोर्ड और ट्रिब्यूनल (वक्फ एक्ट के तहत) पर छोड़ देना चाहिए।"

वेणुगोपाल ने बताया कि इन वक्फों को स्थानांतरित करने के लिए सहमत होना चैरिटी कमिश्नर के लिए पूरी तरह से अवैध है।

वेणुगोपाल ने बोर्ड के सदस्यों के माध्यम से भी कोर्ट का रुख किया।

उन्होंने कहा,

"गैर-मुस्लिम सदस्य अयोग्य है। बोर्ड के सदस्यों को मुस्लिम होना चाहिए और 25 वर्ष से अधिक होना चाहिए।"

फिर बेंच ने पूछा,

"कानूनी आवश्यकता क्या है ... मूल रूप से यह है कि अध्यक्ष आपस में से चुना जाएगा। ऐसा कोई कानून नहीं है ... क्या आधार है कि हाईकोर्ट कहता है कि वर्तमान में केवल दो सदस्य हैं? .. हम पर बोर्ड की संरचना का प्रश्न हैं।"

वेणुगोपाल ने तब वक्फ अधिनियम की धारा 22 पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि रिक्तियां अदालत की कार्यवाही को अमान्य नहीं करेंगी।

उन्होंने याचिकाकर्ता के 'वक्फों की सूची' में गलत तरीके से शामिल किए जाने पर भी दलील दी। वक्फ अधिनियम में वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष मुकदमा दायर करने का प्रावधान है, अगर वक्फ बोर्ड द्वारा तैयार की गई सूची में वक्फ को गलत तरीके से शामिल करने के संबंध में वक्फ के मुतवल्ली या किसी इच्छुक व्यक्ति को शिकायत है। उत्तरदाताओं ने वैधानिक उपाय का लाभ उठाने के लिए दायर किया और सीधे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

सुनवाई के आकार के रूप में बेंच ने कहा कि चूंकि कई याचिकाकर्ता हैं, इसलिए बेहतर होगा कि याचिकाओं की संख्या में स्पष्टता हो और बताए जाए कि प्रत्येक में क्या प्रार्थना की गई है।

बेंच ने कहा,

"वक्फ बोर्ड के संविधान, निगमन और चैरिटी कमिश्नर की अधिसूचना को चुनौती देने वाली कौन सी रिट याचिकाएं हैं? हमें तथ्यों की स्पष्टता की आवश्यकता है। 57 याचिकाएं हैं।"

कोर्ट ने आदेश में हाईकोर्ट के चार निष्कर्षों को भी देखा।

कोर्ट ने कहा,

"... वक्फ का समावेश, बोर्ड के सदस्यों की वर्तमान संख्या दो है, वह सर्वेक्षण रिपोर्ट खराब है, अंतिम पैरा दो है, जो बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम पर बोलता है। ये ऐसे निष्कर्ष हैं जिनसे हमें निपटना है।"

हाईकोर्ट के आदेश पर विचार करते हुए बेंच ने कहा कि सार्वजनिक ट्रस्ट बड़ा सर्कल है।

कोर्ट ने कहा,

"बड़े सम्मान के साथ जनता के विश्वास का बड़ा सर्कल है, वक्फ छोटा है। प्रत्येक सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ होने की आवश्यकता नहीं है। यह केवल रजिस्ट्रेशन का मामला नहीं है। यह पब्लिक ट्रस्ट एक्ट से वक्फ के तहत एक शासन में बदलाव है।"

सुनवाई आज भी जारी रहेगी।

पृष्ठभूमि

हाईकोर्ट के जस्टिस डीके देशमुख और जस्टिस अनूप मोहता की पीठ ने आक्षेपित आदेश में महाराष्ट्र राज्य द्वारा जारी उस सर्कुलर को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा उसने वक्फ बोर्ड का गठन किया, जो वक्फ अधिनियम के तहत राज्य में सभी मुस्लिम धार्मिक ट्रस्टों और वक्फ के तहत आने वाली संपत्तियों की अधिसूचना का प्रशासन करता है।

पीठ ने चैरिटी कमिश्नर को रजिस्टर्ड वक्फ सहित मुस्लिम पब्लिक ट्रस्टों की निगरानी जारी रखने का भी निर्देश दिया और राज्यों को ऐसे कदम उठाने की स्वतंत्रता भी दी जो पब्लिक ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर्ड नहीं है। इसने राज्य को सौंपी गई 2002 की सर्वेक्षण रिपोर्ट को भी शून्य घोषित किया।

जस्टिस अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 29 नवंबर, 2011 को हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें बोर्ड को "दोषपूर्ण" मानते हुए भंग कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई, 2012 को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में उन सभी लोगों को वक्फ संपत्तियों को अलग करने और/या इस न्यायालय के समक्ष लंबित कार्यवाही के दौरान वक्फ संपत्तियों को भारित करने से रोक दिया।

अदालत ने आगे आदेश दिया,

"वक्फ संपत्तियों के संबंध में मुसलमानों द्वारा बनाए गए ट्रस्टों से अलग चैरिटी कमिश्नर, मुंबई सहित सभी संबंधित वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में किसी भी व्यक्ति को अपने प्रबंधन के तहत किसी भी संपत्ति को भारित या अलग करने की अनुमति नहीं देंगे।"

केस टाइटल: महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ वक्फ बनाम शेख यूसुफ भाई चावला और अन्य। अपील करने के लिए विशेष अनुमति (सी) नंबर- 31288-31290/2011

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