सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग उम्मीदवारों को मेडिकल शिक्षा की अनुमति देने वाले फैसले में दिव्यांग व्यक्तियों की उपलब्धियों की सराहना की
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शारीरिक दिव्यांगता का होना ही किसी उम्मीदवार को मेडिकल शिक्षा से वंचित करने का आधार नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कई ऐसे व्यक्तियों का नाम लिया, जिन्होंने दिव्यांगता के बावजूद महान उपलब्धियां हासिल कीं।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने 40-45% बोलने और भाषा संबंधी विकलांगता वाले स्टूडेंट की MBBS कोर्स करने की याचिका स्वीकार की।
जस्टिस विश्वनाथन द्वारा लिखे गए फैसले में कुछ "भारत के शानदार बेटे और बेटियों" का उल्लेख किया गया, जिन्होंने कठिनाइयों का सामना किया और विकलांगता पर काबू पाकर महान उपलब्धियां हासिल कीं।
जस्टिस विश्वनाथन ने लिखा,
"इससे पहले कि हम विदा लें, हमें याद दिलाना चाहिए कि प्रशंसित भरतनाट्यम नृत्यांगना सुधा चंद्रन, माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाली अरुणिमा सिन्हा, प्रमुख खेल व्यक्तित्व एच. बोनिफेस प्रभु, उद्यमी श्रीकांत बोल्ला और 'इनफिनिट एबिलिटी' के संस्थापक डॉ. सतेंद्र सिंह भारत के उन व्यक्तियों की लंबी और शानदार सूची में से कुछ हैं, जिन्होंने सभी प्रतिकूलताओं का सामना करते हुए असाधारण ऊंचाइयों को छुआ।"
फैसले में कहा गया,
"यदि होमर, मिल्टन, मोजार्ट, बीथोवेन, बायरन और कई अन्य लोगों को अपनी पूरी क्षमता का एहसास करने की अनुमति नहीं दी गई होती तो दुनिया बहुत गरीब होती। प्रतिष्ठित भारतीय मेडिकलक व्यवसायी डॉ. फारुख एराच अदरवाडिया ने अपने क्लासिक कार्य "द फॉरगॉटन आर्ट ऑफ हीलिंग एंड अदर्स एसेज" में अध्याय 'आर्ट एंड मेडिसिन' के तहत उनकी असाधारण प्रतिभा और इसी तरह की परिस्थितियों वाले कई अन्य लोगों की सही ढंग से प्रशंसा की है।"
न्यायालय ने माना कि मात्रात्मक दिव्यांगता अपने आप में बेंचमार्क दिव्यांगता वाले उम्मीदवार को शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन के लिए विचार किए जाने से वंचित नहीं करेगी। यदि दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्ड का मानना है कि मात्रात्मक दिव्यांगता के बावजूद उम्मीदवार संबंधित कोर्स को आगे बढ़ा सकता है तो उम्मीदवार पात्र होगा। उम्मीदवारों का मूल्यांकन करने वाले दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्डों को सकारात्मक रूप से रिकॉर्ड करना चाहिए कि उम्मीदवार की विकलांगता संबंधित कोर्स को आगे बढ़ाने के रास्ते में आएगी या नहीं। दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्डों को इस निष्कर्ष पर पहुंचने की स्थिति में कारण बताना चाहिए कि उम्मीदवार कोर्स को आगे बढ़ाने के लिए पात्र नहीं है।
केस टाइटल: ओमकार रामचंद्र गोंड बनाम भारत संघ और अन्य विशेष अनुमति याचिका (सिविल) डायरी नंबर 39448/2024