केरल सरकार ने कथित माओवादियों के खिलाफ यूएपीए आरोपों को बहाल करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

Update: 2022-07-27 05:09 GMT

केरल राज्य ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124A, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम और राजद्रोह के आरोपों के आरोपी कथित माओवादी नेता रूपेश को आरोप मुक्त करने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस सी. जयचंद्रन की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने रूपेश को आरोपमुक्त कर दिया था, जिसने कथित तौर पर प्रतिबंधित माओवादी संगठन के सदस्यों के साथ वायनाड जिले की आदिवासी कॉलोनियों में "राजद्रोही लेखन" वाले पर्चे वितरित किए थे।

हाईकोर्ट ने 17 मार्च, 2022 के आदेश में यह भी माना कि प्राधिकरण की सिफारिश प्राप्त होने की तारीख से छह महीने के बाद यूएपीए के तहत दी गई मंजूरी वैध मंजूरी नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका में राज्य ने तर्क दिया कि यूएपीए (मंजूरी नियमावली की सिफारिश) 2008 के नियम 3 और 4 के तहत समय की शर्त केवल प्रकृति में निर्देशिका है।

याचिका में आगे कहा गया कि पुलिस रिपोर्ट पर मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लिया गया, इसलिए सीआरपीसी की धारा 460 (ई) पूरी तरह से लागू की और कार्यवाही में अनियमितता पूरी कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगी।

याचिका में कहा गया,

"सख्त निर्माण के नियम को अव्यावहारिक तरीके से लागू नहीं किया जा सकता जिससे क़ानून ही निरर्थक न बन जाए। दूसरे शब्दों में दंडात्मक क़ानून या विशेष दंड क़ानून के सख्त निर्माण का नियम के सभी प्रावधानों को इस तरह से लागू करने का इरादा नहीं है कि पेचीदा मामलों में वे व्यावहारिक रूप से बेकार हो जाएं और इस तरह यूए (पी) ए का पूरा उद्देश्य विफल हो जाता है।"

राजद्रोह के अपराध के संबंध में हाईकोर्ट ने माना कि विशेष क़ानून के तहत अपराधों के अलावा किसी भी अपराध के लिए अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने की निर्दिष्ट अदालत की शक्ति का प्रयोग केवल विशेष क़ानून के तहत किसी भी अपराध के लिए किए गए मुकदमे में ही किया जा सकता है। इसलिए, जब यूएपीए के तहत अपराधों का संज्ञान वैध मंजूरी के अभाव में अधिकार क्षेत्र के बिना माना जाता है तो आईपीसी के तहत किसी भी अपराध में विशेष न्यायालय द्वारा वैध परीक्षण किए जाने का कोई सवाल ही नहीं है।

इन आधारों पर आईपीसी और यूएपीए के तहत सत्र न्यायालय द्वारा लिया गया संज्ञान रद्द कर दिया गया और हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक पुनर्विचार याचिकाओं को तदनुसार अनुमति दी गई।

हाईकोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए केरल राज्य ने यह भी कहा कि आरोपी गंभीर अपराध में शामिल हैं और यदि उसे तकनीकी आधार पर अभियोजन से बचने की अनुमति दी जाती है तो उसके अपराध को न दोहराने का कोई आश्वासन नहीं होगा।

याचिका में कहा गया,

"अपराधों के खिलाफ संज्ञान लिया गया है, अपराधी के खिलाफ नहीं। साथ ही अपराधी के खिलाफ दी गई मंजूरी दी गी न कि अपराधों के खिलाफ। मंजूरी आदेश पारित करने में कोई भी अनियमितता या त्रुटि अपराधों और पूरी आपराधिक कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगी।"

याचिका एओआर हर्षद वी हमीद द्वारा दायर की गई।

केस टाइटल: केरल राज्य बनाम रूपेश

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