सुप्रीम कोर्ट ने महिला वकीलों को पेशेवर चैंबर/केबिन आवंटित करने के लिए समान नीति तैयार करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2025-10-13 07:05 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के विभिन्न कोर्ट्स और बार एसोसिएशनों में महिला वकीलों को पेशेवर चैंबर/केबिन आवंटित करने के लिए समान और लैंगिक-संवेदनशील नीति तैयार करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी किया।

याचिका में भविष्य के आवंटनों में महिला वकीलों के लिए चैंबर या केबिन में आरक्षण या वरीयता देने की मांग की गई। साथ ही यह भी मांग की गई कि सुप्रीम कोर्ट में 25 वर्ष से अधिक का प्रैक्टिस करने वाली और वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की प्रतीक्षा सूची में शामिल महिला वकीलों के लिए चैंबरों का निर्माण कर उन्हें प्राथमिकता से आवंटित किया जाए।

जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।

सुनवाई के दौरान जस्टिस कांत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि चैंबर की अवधारणा को ही समाप्त कर देना चाहिए। इसके बजाय वर्किंग स्टेशन, सामान्य बैठने की जगह और क्लाइंट मीटिंग रूम हो सकते हैं। जज ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट की नई इमारत वकीलों की सभी जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर वकील की दलीलें सुनने के बाद पीठ शुरुआत में महिला वकीलों के लिए आरक्षण' का निर्देश देने के प्रति अनिच्छुक दिखी। खंडपीठ ने यह टिप्पणी की कि महिलाओं ने हर क्षेत्र में, विशेष रूप से न्यायपालिका में अपनी योग्यता के बल पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

जस्टिस कांत ने सवाल किया,

"हमारी न्यायिक सेवा में लगभग 60% अधिकारी महिलाएं हैं। वे वहां किसी आरक्षण के कारण नहीं हैं। उनके लिए कोई वरीयता नहीं है। यह पूरी तरह से योग्यता पर आधारित है। इसीलिए मुझे यह थोड़ा विरोधाभासी लगता है कि आप किसी विशेषाधिकार की मांग क्यों कर रहे हैं? यदि हम चैंबरों के मामले में वरीयता वाला आवंटन देने के बारे में सोचते हैं तो हमें दिव्यांग व्यक्तियों के बारे में भी सोचना चाहिए।"

जवाब में याचिकाकर्ताओं के सीनियर वकील ने बताया कि चैंबर/केबिन का आवंटन एक बुनियादी ढांचागत लाभ है, जिसका योग्यता से कोई लेना-देना नहीं है।

इसके बाद खंडपीठ ने सुझाव दिया कि महिला वकीलों के लिए कोर्ट से जुड़ी क्रेच सुविधाओं पर भी ध्यान केंद्रित किया जा सकता है, क्योंकि पारिवारिक दबाव के कारण कई युवा महिला पेशेवरों को अपना काम छोड़ना पड़ता है।

जस्टिस कांत ने कहा कि महिलाओं की तरह विशेष आवश्यकता वाले वकीलों के लिए भी मांगी गई राहत पर विचार करना पड़ सकता है।

अंततः खंडपीठ ने केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के महासचिव SCBA और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को याचिका पर नोटिस जारी किया।

याचिकाकर्ता स्वयं प्रैक्टिस कर रही महिला वकील हैं। उनका दावा है कि 15 से 25 वर्षों की प्रैक्टिस के बावजूद उन्हें कोई चैंबर या पेशेवर स्थान आवंटित नहीं किया गया और वे SCBA की प्रतीक्षा सूची में हैं।

याचिका में कहा गया कि वर्तमान चैंबर आवंटन योजना महिला वकीलों के लिए किसी भी प्रकार के सकारात्मक कार्रवाई, कोटा या आरक्षण से रहित है। उनका आरोप है कि हाल के आवंटन (सुप्रीम कोर्ट के डी ब्लॉक में जुलाई-अक्टूबर 2024 में 68 क्यूबिकल) में महिला वकीलों को प्राथमिकता नहीं दी गई, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले महिला वकीलों को प्राथमिकता से आवंटन के निर्देश दिए थे।

याचिका में दावा किया गया,

"यह प्रणालीगत बहिष्कार ऐसी प्रक्रियाओं के माध्यम से संचालित होता है, जो देखने में तो तटस्थ हैं लेकिन परिणाम में असमान हैं। ये प्रक्रियाएं महिला वकीलों विशेष रूप से गैर-महानगरीय और सामाजिक रूप से हाशिए के पृष्ठभूमि से आने वाली पहली पीढ़ी की पेशेवरों द्वारा सामना किए जाने वाले संरचनात्मक नुकसानों को ध्यान में रखने में विफल रहती हैं।"

याचिकाकर्ताओं के अनुसार चैंबर/केबिन स्थान के रूप में बुनियादी ढांचे की कमी से महिला वकीलों के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(g) और 21 के तहत मौलिक अधिकारों पर असर पड़ता है।

यह याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) दिव्येश प्रताप सिंह के माध्यम से दायर की गई।

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