सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश मामले में उमर खालिद की जमानत याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जेएनयू के स्टूडेंट एक्टिविस्ट उमर खालिद की जमानत याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया, जिस पर फरवरी 2020 में भारत की राजधानी में भड़की सांप्रदायिक हिंसा की बड़ी साजिश में कथित संलिप्तता के लिए यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है। खालिद सितंबर 2020 से सलाखों के पीछे है और अपने मुकदमे का इंतजार कर रहा है।
जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ पिछले साल खालिद को जमानत देने से इनकार करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली खालिद की याचिका पर विचार कर रही थी।
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष खालिद के लिए पेश हुए।
पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के मार्च 2022 के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें उन्हें जमानत देने से इनकार किया गया था।
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने पाया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 तक आयोजित विभिन्न "षड्यंत्रकारी बैठकों" के माध्यम से 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की ओर बढ़ रहे थे, जिनमें से कुछ जिसमें खालिद भी शामिल थे।
आदेश में हाईकोर्ट ने खालिद द्वारा फरवरी 2020 में अमरावती में दिए गए भाषण में "इंकलाबली सलाम" (क्रांतिकारी सलामी) और "क्रांतिकारी इस्तिकबाल" (क्रांतिकारी स्वागत) शब्दों के इस्तेमाल को भी गंभीरता से लिया और इसे भड़काऊ भाषण माना।
अदालत ने कहा,
"क्रांति अपने आप में हमेशा रक्तहीन नहीं होती है, यही कारण है कि इसे उपसर्ग के साथ विरोधाभासी रूप से प्रयोग किया जाता है- 'रक्तहीन' क्रांति। इसलिए जब हम अभिव्यक्ति 'क्रांति' का उपयोग करते हैं तो यह जरूरी नहीं है कि यह रक्तहीन हो।"
मामले की सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने खालिद से प्रधानमंत्री के खिलाफ "जुमला" शब्द का इस्तेमाल करने पर भी सवाल किया और टिप्पणी की कि आलोचना के लिए "लक्ष्मण रेखा" होनी चाहिए।
दो हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट की अन्य खंडपीठ ने मामले में सह-अभियुक्त आसिफ इकबाल तन्हा, नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, जो छात्र नेता भी हैं, उनको जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा की गई चुनौती को खारिज कर दिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के स्कॉलर और रिसर्चर खालिद, 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक दंगों के मामले से संबंधित बड़े षड्यंत्र मामले के आरोपियों में से एक हैं। पिंजरा तोड़ की सदस्य देवांगना कलिता और नताशा नरवाल, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट आसिफ इकबाल तन्हा और स्टूडेंट एक्टिविस्ट गुलफिशा फातिमा सहित 59 अन्य लोगों के साथ उन्हें आरोपी बनाया गया।
इस मामले में चार्जशीट किए गए अन्य लोगों में पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान, आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन, कार्यकर्ता खालिद सैफी, शादाब अहमद, तसलीम अहमद, मोहम्मद सलीम खान और अतहर खान शामिल हैं।
खालिद और जेएनयू के स्टूडेंट शारजील इमाम मामले में चार्जशीट किए जाने वाले अंतिम व्यक्ति थे। जरगर, कलिता, नरवाल, तन्हा और जहां को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की खंडपीठ ने पिछले साल कलिता, नरवाल और तनहा को जमानत दी थी।
खालिद पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13, 16, 17 और 18, शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज किया गया।
केस टाइटल- उमर खालिद बनाम दिल्ली राज्य एनसीटी | डायरी नंबर 14476/2023