सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय सेना के एक कैप्टन की देश वापसी की मांग को लेकर दायर याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने 23 साल से अधिक समय से पाकिस्तानी जेल में बंद कैप्टन संजीत भट्टाचार्जी की रिहाई को लेकर केंद्र सरकार से तत्काल निर्देश मांगने की माँग को लेकर दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है। यह याचिका कैप्टन संजीत भट्टाचार्जी की माँ द्वारा दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने विदेश मंत्रालय के राजनयिक चैनल के माध्यम से उनके मामले में हस्तक्षेप करने के लिए मानवीय आधार पर तत्काल सरकार के हस्तक्षेप की मांग की है।
सीजेआई बोबडे, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम की तीन-न्यायाधीश पीठ के समक्ष शुक्रवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील सौरभ मिश्रा पेश हुए।
बेंच ने नोटिस जारी करते हुए एडवोकेट सौरभ मिश्रा से यह भी पूछा कि क्या यह संभव है कि कोर्ट को एक सूची प्रदान की जाए, क्योंकि उन्हें सूचित किया गया है कि एक से अधिक लोग इस प्रकार की स्थिति का सामना कर रहे हैं।
इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने एक सूची बनाने के लिए सहमति व्यक्त की।
याचिकाकर्ता के अनुसार, उसका बेटा एक भारतीय सेना अधिकारी है, जो पिछले 23 साल से 9 महीने से पाकिस्तान की किसी अज्ञात जेल में है। उसके खिलाफ कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई है, लेकिन सरकार द्वारा उसकी रिहाई के लिए कोई उचित कदम नहीं उठाया गया है।
याचिकाकर्ता अपने बेटे की ओर से सरकार से उचित दिशा-निर्देश मांग रही हैं ताकि उसकी तलाश के लिए तत्काल कदम उठाए जा सकें और पाकिस्तान की जेल से भारतीय सेना के अधिकारी को रिहा करया जा सके। वह पाकिस्तान की किसी अज्ञात जेल में है। इसलिए प्रतिवादी द्वारा उसकी रिहाई के लिए यह दोहराया जाता है कि इसका परिणाम घोर उल्लंघन के रूप में सामने आया है।
याचिकाकर्ता विदेश मंत्रालय के राजनयिक चैनल और सरकार के प्रतिनिधित्व के माध्यम से सरकार के हस्तक्षेप की भी मांग कर रही हैं। इस मामले में भारत की ओर से याचिकाकर्ता के बेटे की रिहाई के लिए आवश्यक कार्रवाई की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि विदेश मंत्रालय के राजनयिक चैनल के माध्यम से और तत्काल मानवीय आधार पर उनके मामले में हस्तक्षेप किया जाए।
याचिकाकर्ता के अनुसार, बीते 23 वर्षों की अवधि में उनके बेटे को उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष अपने मामले को बताने या अपने परिवार के सदस्यों के साथ बात करने की अनुमति देने का कोई अवसर नहीं दिया गया है। इस तरह उन्हें संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार से वंचित कर दिया गया है।
इसलिए अनुच्छेद 20 और 22 के तहत उनके बेटे के मौलिक अधिकार का उल्लंघन पाकिस्तान की जेल में अवैध रूप से हिरासत में रहने के कारण किया गया है, खासकर उसके खिलाफ दर्ज किसी भी मामले की अनुपस्थिति में।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के बेटे यानी कैप्टन संजीत भट्टाचार्जी 19 अप्रैल 1997 के दिन अपने ड्यूटी समय के दौरान कच्छ गुजरात और पाकिस्तान के रण में संयुक्त सीमा पर रात के समय अन्य सदस्यों के साथ गश्त के लिए निकला थे। हालाँकि, अगले दिन यानी 20 अप्रैल, 1997 को याचिकाकर्ता के बेटे और प्लाटून के एक अन्य सदस्य लांस नायक राम बहादुर थापा के बिना पलटन के केवल पंद्रह (15) सदस्य वापस आ पाए थे। यह निर्धारित किया गया था कि याचिकाकर्ता का बेटा और दूसरा व्यक्ति गश्त के समय संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गया था।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि याचिकाकर्ता के बेटे सहित भारत के प्रत्येक नागरिक के जीवन के अधिकार की रक्षा करना और मौलिक अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित करना और उनकी शीघ्र रिहाई के लिए उचित उपाय करना भारत सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सौरभ मिश्रा ने याचिका दायर की है।