राज्य बार काउंसिलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एडवोकेट शेहला चौधरी द्वारा दायर एक याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें भारत भर की सभी राज्य बार काउंसिलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने की मांग की गई। इसमें रोटेशन के आधार पर कम से कम एक पदाधिकारी का पद भी शामिल है।
याचिका में कहा गया,
"भारतीय संविधान में लैंगिक समानता का सिद्धांत इसकी प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्यों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में निहित है। राज्य बार काउंसिलों की सदस्य न होने वाली महिला वकीलों की अनुपस्थिति में महिला वकील कानूनी पेशे में सार्थक योगदान देने के अवसरों से वंचित रह जाती हैं।"
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने नोटिस जारी कर मामले की अगली सुनवाई 17 नवंबर, 2025 तय की।
यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय के 2 मई, 2024 के आदेश पर आधारित है, जिसमें कोर्ट ने निर्देश दिया था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की कार्यकारी समिति में एक-तिहाई सीटें, जिसमें एक पदाधिकारी का पद भी शामिल है, महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं।
याचिकाकर्ता ने याचिका में भारत संघ, भारतीय बार परिषद और सभी राज्य बार परिषदों को पक्षकार बनाया है।
याचिका में तर्क दिया गया कि इस तरह के प्रतिनिधित्व का अभाव संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
इसमें आगे कहा गया,
"महिलाओं ने बार-बार कानूनी पेशेवर के रूप में अपनी योग्यता साबित की है। हालांकि, कानूनी पेशे को अभी भी पुरुष प्रधान क्षेत्र माना जाता है, जहां महिला अधिवक्ताओं से संबंधित मुद्दों पर शायद ही कभी विचार किया जाता है और इसका एक कारण राज्य बार परिषदों और बार संघों में महिला वकीलों का नगण्य प्रतिनिधित्व है।"
याचिका में कानूनी पेशे में महिलाओं के ऐतिहासिक संघर्ष का वर्णन किया गया। इस बात पर प्रकाश डाला गया कि महिलाओं को कानूनी पेशे में प्रवेश की औपचारिक अनुमति लीगल प्रैक्टिशनर्स (महिला) अधिनियम, 1923 के लागू होने के बाद ही मिली।
याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि राज्य बार काउंसिलों में निर्वाचित प्रतिनिधियों में महिलाओं की संख्या केवल 2.04% है। सभी काउंसिलों के 441 सदस्यों में से केवल नौ महिलाएं हैं। इसमें इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि कई राज्य बार काउंसिलों - जिनमें गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र और गोवा, पंजाब और हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की बार काउंसिलें शामिल हैं - में कोई भी महिला सदस्य नहीं है।
याचिका में तर्क दिया गया कि राज्य बार काउंसिलों में महिलाओं का अत्यधिक कम प्रतिनिधित्व कानूनी पेशे में नीति-निर्माण को सीधे प्रभावित करता है और महिला वकीलों के सामने आने वाले मुद्दों का समाधान करने में इन वैधानिक निकायों की क्षमता को बाधित करता है।
याचिका में कहा गया,
"वकीलों के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा के लिए महिला वकीलों सहित सभी अधिवक्ताओं के सामने आने वाले मुद्दों की गहन समझ होना आवश्यक है, जिन्हें अपने पुरुष सहयोगियों से अलग कुछ मुद्दों का सामना करना पड़ता है। राज्य बार काउंसिल में किसी भी महिला प्रतिनिधित्व के अभाव में महिला वकीलों से संबंधित चिंताओं के समाधान में गंभीर बाधा उत्पन्न होती है; जिससे महिला वकीलों के लिए अपने कल्याण से संबंधित मुद्दे उठाने का कोई रास्ता नहीं बचता।"
इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि अनुच्छेद 15(3) द्वारा सशक्त राज्य महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है और संसद एवं राज्य विधानसभाओं, पंचायती राज संस्थाओं, नगर पालिकाओं और सहकारी समितियों में महिलाओं के लिए पहले से ही इसी तरह के आरक्षण मौजूद हैं।
इसमें आगे कहा गया,
"एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 3(23)[h] राज्य बार काउंसिलों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली को रेखांकित करती है। विधानों में प्रयुक्त आनुपातिक प्रतिनिधित्व शब्द को वकीलों के गैर-प्रतिनिधित्व वर्ग को शामिल करने की आवश्यकता के रूप में समझा जाना चाहिए।"
याचिका में सभी राज्य बार काउंसिलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का निर्देश देने की मांग की गई, जिसमें रोटेशन के आधार पर कम से कम एक पदाधिकारी का पद भी शामिल है।
यह याचिका एडवोकेट मोहम्मद अनस चौधरी और आलिया ज़ैद द्वारा तैयार की गई और एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अंसार अहमद चौधरी के माध्यम से दायर की गई। याचिकाकर्ता की ओर से डॉ. चारु माथुर ने बहस की।
Case Title – Shehla Chaudhary v. Union of India