सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिटेशन मामले में उसके समक्ष याचिका दायर करने को लेकर वादी पर लगाया 50 हजार रुपये का जुर्माना

Update: 2020-11-04 04:53 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता (आर्बिटेशन) मामले में उसके समक्ष याचिका दायर करने के लिए एक वादी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।

न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने मेसर्स वेद प्रकाश मित्तल की ओर से दायर एसएलपी खारिज करते हुए कहा,

"हमने 'दीप इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड एवं अन्य (2019) एससीसी ऑनलाइन एससी 1602' तथा कुछ अन्य मामलों में कहा था कि हमने आर्बिटेशन मामलों में रिट कोर्ट के दरवाजा खटखटाने वाले याचिकाकर्ताओं से नाराजगी जतायी है और इस मामले में भी हम एक बार फिर यही कह सकते हैं। यह भी ऐसा ही एक मामला है।"

इस केस में, मेसर्स वेद प्रकाश मित्तल ने किरोड़ीमल कॉलेज के प्राचार्य के खिलाफ दो करोड़ 59 लाख 95 हजार 243 रुपये की रिकवरी के लिए एक मुकदमा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर किया था। चूंकि संबंधित करार में आर्बिटेशन क्लॉज भी शामिल था, इसलिए हाईकोर्ट ने इस विवाद के निपटारे के लिए आर्बिटेटर नियुक्त कर दिया था। मेसर्स वेद प्रकाश मित्तल ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) के जरिये चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने हाल ही में एक अन्य विशेष अनुमति याचिका को जुर्माना लगाकर खारिज कर दिया था और कहा था कि मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 16 के तहत खारिज की गयी याचिका को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत तभी सुना जा सकता है जब संबंधित आदेश में दुराग्रह हो, जिसमें अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र की व्यापक कमी नजर आती हो।

कोर्ट ने उस मामले में कहा था,

"दुर्भाग्यवश पार्टियां दीप इंडस्ट्रीज लिमिटेड मामले में हमारे फैसले की अभिव्यक्ति का इस्तेमाल उन मामलों के लिए भी अनुच्छेद 227 के तहत रिट कोर्ट जाने को लेकर करते हैं जिसमें अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र की स्पष्ट कमी नजर नहीं आती है। यह मामला भी उसी में से एक है। वर्णित आधार पर रिट याचिका को खारिज करने के बजाय, हाईकोर्ट को दीप इंडस्ट्रीज लिमिटेड मामले में हमारे फैसले का उल्लेख करना चाहिए था और अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका को इस आधार पर खारिज करना चाहिए था कि संबंधित आदेश में कोई दुराग्रह नजर नहीं आता है, जिससे अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र की स्पष्ट कमी नजर आये। हाईकोर्ट को भारी जुर्माना लगाकर इस तरह की याचिका दायर किये जाने को हतोत्साहित करना चाहिए था। हाईकोर्ट ने दोनों में से कुछ भी नहीं किया।"

केस का नाम : मेसर्स वेद प्रकाश मित्तल एवं सन्स बनाम प्रिंसिपल, किरोड़ीमल कॉलेज

केस नंबर : एसएलपी (सिविल) नंबर 11883 / 2020

कोरम : न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी

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