सुप्रीम कोर्ट ने 4 दोषियों की समयपूर्व रिहाई के निर्देश के अनुपालन में देरी के लिए उत्तर प्रदेश राज्य पर जुर्माना लगाया

Update: 2023-08-02 05:59 GMT

Supreme Court

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश राज्य को उन सभी चार व्यक्तियों को 10,000/- रुपये का जुर्माना अदा करने को कहा, जिनकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित समय से पहले रिहाई में राज्य द्वारा देरी की गई।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने यह कहते हुए जुर्माना लगाया कि दोषियों की रिहाई में लंबी देरी के लिए अधिकारियों की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल 2023 को चार दोषियों को समय से पहले रिहा करने का निर्देश दिया था, जिन्होंने तीन लोगों की हत्या के लिए 20 साल से अधिक समय जेल में बिताया। कोर्ट ने यह फैसला इस आधार पर दिया कि कि वे अधिक उम्र के हैं। साथ ही कोर्ट ने कैदियों की लंबी अवधि की कैद को ध्यान में रखा। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें आदेश की तारीख से 2 सप्ताह के भीतर रिहा करने का निर्देश दिया था।

कोर्ट ने 21 अप्रैल, 2023 के अपने आदेश में कहा था,

“हमारी सुविचारित राय है कि याचिकाकर्ता इस आदेश की तारीख से दो सप्ताह की अवधि के भीतर उत्तर प्रदेश कैदियों की रिहाई पर परिवीक्षा अधिनियम, 1938 की धारा 2 के संदर्भ में परिवीक्षा पर रिहा होने के हकदार हैं। प्रतिवादी राज्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ सार्वजनिक सुरक्षा को संतुलित करने के लिए ऐसी शर्तें लगाने के लिए स्वतंत्र होगा जो वह उचित समझे।''

हालांकि, अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करने में विफल रहे और उनके खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू की गई। मंगलवार को जब मामला कोर्ट के सामने आया तो अनुपालन हलफनामा दायर किया गया, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ताओं को रिहा कर दिया गया। हालांकि न्यायालय ने कहा कि इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि न्यायालय के आदेश के अनुपालन में देरी क्यों हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

“अनुपालन हलफनामे में इतनी लंबी देरी के लिए बिल्कुल कोई स्पष्टीकरण नहीं है। हम यहां ध्यान दे सकते हैं कि उत्तरदाताओं ने समय विस्तार की मंजूरी के लिए इस न्यायालय में आवेदन नहीं किया।

कोर्ट ने अवमानना याचिका बंद करते हुए अपने आदेश में कहा,

हालांकि अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत उत्तरदाताओं के खिलाफ कोई और कार्रवाई शुरू करने लायक नहीं है, हम उत्तर प्रदेश राज्य को एक अवधि के भीतर प्रत्येक याचिकाकर्ता को 10,000/- रुपये (दस हजार रुपये) के जुर्माने का भुगतान करने का निर्देश देते हैं।

अधिकारियों द्वारा कैदियों की परिवीक्षा पर रिहाई के लिए उत्तर प्रदेश परिवीक्षा नियम-1938 के नियम 4 सपठित परिवीक्षा अधिनियम, 1938 के तहत उनकी रिहाई की प्रार्थना खारिज करने के बाद याचिकाकर्ताओं ने समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ताओं को निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 आर/डब्ल्यू 149 के तहत दोषी ठहराया, जिसके लिए उन्हें आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें आईपीसी की धारा 307 सपठित धारा 149 के तहत भी दोषी ठहराया गया, जिसके लिए उन्हें 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें आईपीसी की धारा 148 के तहत दो साल के कठोर कारावास की सजा भी सुनाई गई। ट्रायल कोर्ट के आदेश की बाद में हाईकोर्ट ने पुष्टि की।

याचिकाकर्ताओं ने इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि वे पहले ही 24 से 26 साल के बीच जेल में रह चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी समयपूर्व रिहाई का आदेश देते समय उनकी बढ़ती उम्र को भी ध्यान में रखा।

सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल के अपने आदेश में कहा,

“मौजूदा मामले में हमने याचिकाकर्ताओं को 24 से 25 साल के बीच कैद की लंबी अवधि के अलावा इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता अधिक उम्र के हैं। याचिकाकर्ता नंबर 1 और 2 लगभग 63 वर्ष के हैं, याचिकाकर्ता नंबर 3 की उम्र 81 साल है और याचिकाकर्ता नंबर 4 की उम्र 54 साल है।”

केस टाइटल: महेंद्र बनाम राजेश कुमार सिंह, अवमानना याचिका (सिविल) नंबर 1034/2023, रिट याचिका (आपराधिक) नंबर 173/2022

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