पूर्व सैनिक का आरोप- सैन्य अस्पताल में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के बाद एचआईवी-एड्स संक्रमित हुआ; सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल को पर्याप्त इलाज का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली कैंट स्थिति बेस अस्पताल में एड्स के मरीज होने का दावा कर रहे एक पूर्व सैनिक को पर्याप्त इलाज उपलब्ध कराने के लिए निर्देश पारित किया। पूर्व सैनिक ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि कि उसने 10 जुलाई, 2002 को सैन्य अस्पताल में ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराया था, जिससे उसका खून एचआईवी से संक्रमित हो गया।
मरीज ने गुरुवार को कोर्ट के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होकर कहा कि डॉ लाल पैथ लैब्स की रिपोर्ट और नाको के दिशानिर्देशों के मुताबिक वह एड्स से पीड़ित हो गया है। उन्होंने कहा कि उक्त रिपोर्ट के अनुसार उनकी सीडी4 की गिनती 196 है। उन्होंने बेंच को बताया कि 200 से कम सीडी4 होने पर, व्यक्ति को एड्स रोगी घोषित किया जाता है।
"पहले मेरी सीडी4 की गिनती 324 थी, कल 196 थी, 200 से नीचे; इसलिए अब मैं एड्स का मरीज हूं। मेरा इलाज नहीं हो रहा है, मैंने दस्तावेज पेश किए हैं।"
इसके अलावा, उन्होंने शिकायत कि पिछले तीन मौकों पर जब उन्होंने अपनी स्थिति के लिए चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए बेस अस्पताल, दिल्ली कैंट में रिपोर्ट किया, तो उन्हें चिकित्सा सुविधा प्रदान नहीं की गई।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन 2002 में हुआ था, जबकि प्रतिवादी अधिकारियों ने पहली बार 2014 में एचआईवी टेस्ट किया था, जिससे पता चला था कि याचिकाकर्ता एचआईवी पॉजिटिव नहीं था। हालांकि, याचिकाकर्ता ने बताया कि उसी वर्ष एक और टेस्ट किया गया और याचिकाकर्ता को एचआईवी पॉजिटिव पाया गया।
ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारियों का मामला यह है कि यदि ट्रांसफ्यूजन 2002 में हुआ होता तो 2014 में किए गए पहले एचआईवी टेस्ट में वायरस का पता चला होता। हालांकि, एक निश्चित अवधि से अधिक दस्तावेजों को नहीं रखने की नीति के कारण प्रतिवादी प्राधिकारी के पास इस मामले का पूरा रिकॉर्ड नहीं है।
सीजेआई जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह पर्याप्त उपचार के लिए कल (21 अक्टूबर, 2022) चिकित्सा परीक्षण के लिए बेस अस्पताल में रिपोर्ट करें। खंडपीठ ने उन्हें चिकित्सा खर्च संबंधी चालान पेश करने की भी स्वतंत्रता भी दी ताकि सत्यापन के बाद प्रतिवादी अधिकारी उसकी प्रतिपूर्ति कर सकें।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, बेस अस्पताल के डॉक्टरों को उसकी वर्तमान चिकित्सा स्थिति की जांच करनी है और उसे वह चिकित्सा सहायता प्रदान करनी है जिसके वह योग्य है।
आदेश में यह भी कहा गया कि -
"इस पूरे मामले की बेस अस्पताल में चिकित्सकीय जांच की जाए और अगले मौके पर इस अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की जाए।"
पिछले मौके पर प्रतिवादी अधिकारियों को उस व्यक्ति के स्रोत या नाम और विवरण को रिकॉर्ड पर रखने के लिए कहा गया था, जिसके रक्त को ट्रांफ्यूजन के लिए उपयोग किया गया था।
कोर्ट ने पूछा था कि क्या राक्त दाता कभी एचआईवी पॉजिटिव पाया गया था और यदि हां, तो उसका क्या हुआ। अदालत ने अधिकारियों को दाता का परीक्षण करने और अदालत को रिपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया था।
सीजेआई ललित ने कहा, "वे रिपोर्ट आ नहीं रहे हैं।"
सुनवाई के दरमियान सीनियर एडवोकेट विक्रमजीत बनर्जी, एएसजी, ने 'वायरस के स्तर' पर सवाल उठाया था और पीठ को सूचित किया था कि प्रतिवादी अधिकारियों के पास एक 'विपरीत रिपोर्ट' है।
सीजेआई, जस्टिस ललित ने कहा था, "हम इसमें नहीं पड़ रहे हैं।"
अंततः सीनियर एडवोकेट बनर्जी ने पीठ को आश्वासन दिया कि याचिकाकर्ता को उसकी स्थिति के अनुसार हर सुविधा प्रदान की जाएगी और उसका ध्यान रखा जाएगा।
न्याय मित्र सुश्री मीनाक्षी अरोड़ा ने बताया कि इस मामले में न्यायालय की सहायता के लिए एक विशेषज्ञ की नियुक्ति की जा सकती है।
चूंकि सीजेआई कुछ हफ़्ते में पद छोड़ रहे हैं, उन्होंने कहा कि उक्त निर्णय उनके उत्तराधिकारी द्वारा लिया जा सकता है।
"मेरे उत्तराधिकारी को यह तय करने दें।"
याचिकाकर्ता की बिगड़ती सेहत को देखते हुए उसने इस मामले पर जल्द से जल्द फैसला लेने की मांग की।
मामले को अंतिम निस्तारण के लिए 22 नवंबर, 2022 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया है।