सुप्रीम कोर्ट ने जालसाजी मामले में सपा नेता आजम खान और उनके बेटे को जमानत दी

Update: 2021-08-10 09:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला खान को जालसाजी के एक मामले में जमानत दे दी है। शीर्ष न्यायालय ने साथ निर्देश दिया है कि निचली अदालत द्वारा पूर्व का बयान दर्ज करने के बाद उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए, जिसे चार सप्ताह के भीतर किया जाना है।

जस्टिस एएम खानविलकर और ज‌स्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने दोनों नेताओं को जमानत दी है। पीठ 26 नवंबर, 2020 को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा प‌िता-पुत्र की जमानत याचिका खारिज़ करने के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर ये फैसला दिया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गवाहों के साथ छेड़छाड़ की आशंका के कारण दोनों नेताओं की जमानत याचिका खार‌िज़ की थी। 

दोनों नेताओं पर क्या थे आरोप

चुनाव के समय 25 वर्ष से कम उम्र के होने के कारण भारत के संविधान के अनुच्छेद 173 (बी) के तहत विधायक बनने के योग्य नहीं होने के बावजूद, अब्दुल्ला रामपुर के सुआर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए थे। पिता और पुत्र के खिलाफ आरोप था कि बेटे के शैक्षिक प्रमाण पत्र के अनुसार, अब्दुल्ला का जन्म 1 जनवरी 1993 को हुआ था, जबकि उनके जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार उनकी जन्म तिथि 30 सितंबर 1991 थी।

आरोप है कि लखनऊ नगर द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र का मकसद अब्दुल्ला को 2017 के चुनावों में भाग लेने में मदद करना था। उन्हें आधार कार्ड और पैन कार्ड भी 2015 से पहले जारी नहीं किए गए थे।

इसके बाद आजम खान और उनके बेटे मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी आईपीसी और अब्दुल्ला आजम खान के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471 आईपीसी और धारा 12 (1 ए), पासपोर्ट अधिनियम, 1967, के तहत जमानत दर्ज की गई।

हाईकोर्ट ने खारिज की जमानत याचिका

रामपुर से लोकसभा सांसद आजम खान और उनके बेटे मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान की जमानत याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज सुनीत कुमार की एकल पीठ ने 26 नवंबर, 2020 को इस आधार पर खारिज कर दी थी कि यह सार्वजनिक हित में नहीं होगा।

न्यायालय ने कहा कि केवल इस कारण से कि आवेदकों को ऐसे मामले में जमानत दी गई है, जहां जन्मतिथि से जुड़े जाली दस्तावेज हासिल करने का आरोप है, अन्य मामलों में जमानत आवेदनों पर विचार करते समय यांत्रिक रूप से नहीं देखा जा सकता है, हालांकि, मामले की उत्पत्त‌ि जाली जन्मतिथि में निहित है।

कोर्ट ने कहा था, "दिए गए तथ्यों में यह नहीं कहा जा सकता है कि मौजूदा मामला जन्मतिथि के आधार पर बाद के दस्तावेज के कथित सुधार का परिणाम है। मामले में पहले आवेदक द्वारा दूसरे आवेदक को लाभ पहुंचाने के लिए आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, कार्यालय के दुरुपयोग और जाली खरीद में हैस‌ियत के दुरुपयोग का आरोप है।"

अदालत ने आगे राज्य की दलीलों पर ध्यान दिया था कि आवेदकों के आपराधिक इतिहास थे- 1982 से आजम खान के खिलाफ 91 मामले दर्ज किए गए हैं, और उनके बेटे के खिलाफ 44 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से अधिकांश मामले धोखाधड़ी और जालसाजी के हैं।

अदालत ने आगे देखा कि आवेदकों पर डराने-धमकाने का भी आरोप लगाया गया था और इसलिए, निष्कर्ष निकाला गया कि गवाह से छेड़छाड़ हो सकती है। 

कोर्ट ने कहा, " अदालत जमानत याचिकाओं पर विचार करते समय सचेत है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बड़े पैमाने पर सामाजिक / सार्वजनिक हित के साथ तौला और संतुलित किया जाना है, और यह सुनिश्चित करना है कि शक्तिशाली और प्रभावशाली आरोपी व्यक्तियों द्वारा न्याय की प्रक्रिया को बाधित न किया जाए। "

कोर्ट ने राज्य की प्रस्तुतियों को रिकॉर्ड में लिया कि आवेदकों ने जांच और अदालती कार्यवाही में सहयोग नहीं किया, परिणामस्वरूप, उनके खिलाफ जबरदस्ती के उपाय अपनाए गए।

कोर्ट ने कहा, "आरोपी व्यक्तियों की हैसियत और ‌स्थिति, अपराधों की पुनरावृत्ति, और गहरी जड़ें और व्यापक प्रभाव, जिसका आवेदक राज्य के विभिन्न विभागों में इस्तेमाल करते हैं को देखते हुए गवाहों के साथ छेड़छाड़ और खतरे की उचित आशंका है, ‌जिसका उपयोग न्याय की प्रक्रिया को विफल करने के लिए किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में, इस स्तर पर जमानत देना जनहित में नहीं होगा।"

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने 6 मई 2021 को उत्तर प्रदेश सरकार को जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया था।

केस टाइटिल: मोहम्मद आजम खान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य| अपील की विशेष अनुमति (Crl.) No(s).2717/2021

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