1988 रोड रेज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को बढ़ाकर एक साल के कारावास में बदला
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कांग्रेस नेता और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सदस्य नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को 1988 के रोड रेज हादसे में सजा को बढ़ाकर एक साल के कारावास में बदल दिया है। इस हादसे में गुरनाम सिंह नाम के व्यक्ति की मौत हो गई थी।
कोर्ट ने 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पीड़ित गुरनाम सिंह के परिवार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त फैसले ने मामले में नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को 3 साल के कारावास से घटाकर 1000 रुपये कर दिया था।
जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने सजा के मुद्दे पर पुनर्विचार याचिका की अनुमति देने का फैसला सुनाया।
जस्टिस कौल ने फैसले के ऑपरेटिव भाग को पढ़ा,
"हमने सजा के मुद्दे पर पुनर्विचार आवेदन की अनुमति दी है। लगाए गए जुर्माने के अलावा हम प्रतिवादी नंबर एक (सिद्धू) को एक साल के कारावास की सजा देते हैं।"
जस्टिस जे चेलमेश्वर (सेवानिवृत्त होने के पहले से) और जस्टिस एसके कौल की खंडपीठ ने मई 2018 में माना था कि सिद्धू का अपराध भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 भाग II के तहत दंडनीय "हत्या की श्रेणी में नहीं आने वाला अपराध" नहीं होगा। इसके बजाय उन्हें आईपीसी धारा 323 के तहत "स्वेच्छा से चोट पहुंचाने" के अपराध के लिए दोषी पाया गया।
जस्टिस चेलमेश्वर ने फैसले में कहा था,
"रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री हमें एकमात्र संभावित निष्कर्ष पर ले जाती है कि हम इस तक पहुंच सकते हैं कि पहले आरोपी ने आईपीसी की धारा 323 के तहत गुरनाम सिंह को स्वेच्छा से चोट पहुंचाई।"
2006 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने उन्हें आईपीसी की धारा 304-II के तहत दोषी ठहराया और उन्हें तीन साल कैद की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट के निष्कर्षों को उलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मृत्यु का कारण निश्चित नहीं है और इसलिए अपराधी हत्या की सजा को कायम नहीं रखा जा सकता। यह निष्कर्ष निकालने के लिए हाईकोर्ट ने पाया गया कि मृत्यु का कारण सबड्यूरल हैमरेज था न कि कार्डियक अरेस्ट।
जस्टिस चेलमेश्वर द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया था,
"... हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष कि गुरनाम सिंह की मृत्यु सबड्यूरल हेमरेज के कारण हुई, कार्डियक अरेस्ट से नहीं। हमारी राय में रिकॉर्ड पर किसी सबूत पर आधारित नहीं है और शुद्ध अनुमान है। इसलिए, हमें यह मुश्किल लगता है। पहले आरोपी की दोषसिद्धि को बनाए रखना और उसे खारिज करना। क्योंकि एक व्यक्ति को गैर इरादतन हत्या का दोषी घोषित करने के लिए आवश्यक मूल तथ्य यह है कि आरोपी न मौत का कारण बना, लेकिन जैसा कि ऊपर देखा गया कि गुरनाम सिंह की मौत के कारण पर मेडिकल साक्ष्य में बिल्कुल अनिश्चिता है।"
सिद्धू की सजा कम करने वाले 2018 के फैसले को चुनौती देते हुए पीड़ित परिवार ने पुनर्विचार याचिका दायर की। पीठ ने पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं के लिए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा और सिद्धू के लिए सीनियर एडवोकेट डॉ एएम सिंघवी को सुनने के बाद 25 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
यह घटना 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला के ट्रैफिक जंक्शन पर हुई, जब वाहनों के सही रास्ते को लेकर हुए विवाद के कारण सिद्धू ने मृतक को अपने वाहन से खींच लिया और उस पर मुट्ठियों से वार किया।