‘अनावश्यक रूप से गर्भाशय निकालने’ के मामलों से जुड़ी एक PIL सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। याचिका में कहा गया कि इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी परदीवाला की बेंच ने याचिका पर सुनवाई की। और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे ‘अनावश्यक रूप से गर्भाशय निकालने’ के मामलों पर रोक लगाने के लिए केंद्र के दिशानिर्देशों को तीन महीने के भीतर लागू करें।
याचिका डॉ नरेंद्र गुप्ता ने दायर की थी। इसमें कहा गया कि बिहार, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली कई महिलाओं को अनावश्यक रूप से हिस्टेरेक्टोमी से गुजरने के लिए मजबूर किया जाता है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि विभिन्न स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के तहत सरकार से बीमा की मोटी रकम प्राप्त करने के लिए कई बार गरीब महिलाओं का गर्भाशय अनावश्यक रूप से ऑपरेशन कर निकाल दिया जाता है। इससे न केवल मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ीं बल्कि इन महिलाओं में कैंसर का खतरा भी बढ़ गया।
याचिका के मुताबिक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, और 21 के तहत महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इसके लिए उचित कदम उठाया।
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर-जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया कि ‘अनावश्यक रूप से गर्भाशय निकालने’ पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तैयार किया गया है।
विधि अधिकारी ने कहा कि समस्या से निपटने के लिए कार्य योजना में राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर एक निगरानी समिति के गठन और एक शिकायत पोर्टल की शुरुआत के सुझाव शामिल हैं।
कोर्ट ने आखिरी में कहा कि “चूंकि अब केंद्र सरकार दिशानिर्देश तैयार करने के लिए पर्याप्त कदम उठा चुकी है। हमें याचिका को कायम रखने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। केंद्र सरकार अब दिशानिर्देश के अनुसार आवश्यक कदम उठाएगी।”
इसके साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया गया।