सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम के खिलाफ रिट याचिका खारिज की

Update: 2025-09-16 04:59 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल के कोंटाई रहमानिया हाई मदरसा की प्रबंध समिति द्वारा दायर रिट याचिका को जुर्माने के साथ खारिज किया। इस याचिका में पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 को बरकरार रखने वाले अपने 2020 के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई थी।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि याचिका "पूरी तरह से गलत धारणा" वाली है और याचिकाकर्ता पर ₹1,00,000 का जुर्माना लगाया।

अदालत ने कहा,

"रिट याचिका पूरी तरह से गलत धारणा वाली है। इसलिए इसे ₹1,00,000 के जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है।"

याचिकाकर्ता ने वसंत दुपारे बनाम भारत संघ मामले में हाल ही में दिए गए फैसले के आलोक में अदालत से अपने 2020 के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था।

उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मौलिक अधिकारों के निरंतर उल्लंघन को रोकने के लिए अपने अंतिम आदेशों को पुनः खोलने हेतु अनुच्छेद 32 का प्रयोग किया जा सकता है। अदालत ने मृत्युदंड की सजा पाए अपराधी को अनुच्छेद 32 के तहत सजा के मुद्दे को मनोज बनाम मध्य प्रदेश राज्य के बाद के फैसले पर विचार करते हुए पुनः खोलने की अनुमति दी, जिसमें कम करने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखने का प्रावधान है। हालांकि, अदालत ने आगाह किया कि अनुच्छेद 32 समाप्त हो चुके मामलों को पुनः खोलने का नियमित साधन नहीं बन सकता।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह सिद्धांत मदरसा सेवा आयोग मामले पर भी लागू होना चाहिए।

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि दुपारे का फैसला मृत्युदंड से जुड़े एक मामले में है, जहां याचिका में पहले की बरी या दोषसिद्धि की पुनर्विचार की मांग नहीं की गई। अदालत ने कहा कि दुपारे का फैसला मदरसा सेवा आयोग मामले पर लागू नहीं हो सकता, जिस पर 1966 के नरेश मिराजकर बनाम महाराष्ट्र राज्य के संविधान पीठ के फैसले द्वारा रोक लगाई गई।

नरेश मिराजकर मामले में सुप्रीम कोर्ट की नौ-जजों की पीठ ने कहा कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए सक्षम न्यायालयों के न्यायिक आदेशों को अनुच्छेद 32 के तहत सीधे चुनौती नहीं दी जा सकती है और उचित उपाय अपील या पुनर्विचार में निहित है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा,

"उक्त निर्णय पर विचार करने के बाद हमारा दृढ़ मत है कि इस न्यायालय ने अनुच्छेद 32 के तहत उस याचिका पर इस आधार पर विचार किया कि यह मृत्युदंड का मामला है और दोषसिद्धि से बरी करने के पूर्व के आदेश की पुनर्विचार का अनुरोध नहीं किया गया। यह निर्णय वर्तमान प्रकृति के ऐसे मामले पर लागू नहीं होगा, जो नरेश मिराजकर मामले में इस अदालत की संविधान पीठ के निर्णय के आलोक में वर्जित है।"

याचिकाकर्ता द्वारा चुनौती दिए गए 2020 के निर्णय ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 की संवैधानिकता बरकरार रखी थी। इस अधिनियम ने मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आयोग का गठन किया। कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2015 में इस अधिनियम को इस आधार पर असंवैधानिक घोषित कर दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 30 का उल्लंघन करता है, जो अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के अधिकारों की रक्षा करता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षकों की नियुक्ति का पूर्ण और बिना शर्त अधिकार नहीं है। TMA पाई फाउंडेशन मामले और अन्य निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि शैक्षिक उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय हित में बनाए गए नियम अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक संस्थानों पर समान रूप से लागू हो सकते हैं। इसने यह भी कहा कि धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षकों के चयन में व्यापक स्वतंत्रता हो सकती है। हालांकि, धर्मनिरपेक्ष विषय पढ़ाने वाले संस्थानों को उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए योग्यता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

2020 के निर्णय में निष्कर्ष निकाला गया कि आयोग अधिनियम के प्रावधान, जिनमें धारा 8, 10, 11 और 12 शामिल हैं, अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते हैं। इसने माना कि आयोग द्वारा शिक्षकों का चयन और नामांकन राष्ट्रीय और अल्पसंख्यक दोनों हितों को संतुष्ट करता है। इसलिए असंवैधानिक नहीं है।

वर्तमान याचिका में तर्क दिया गया कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं, क्योंकि ये शिक्षकों के चयन और सिफारिश का अधिकार प्रबंधन के बजाय आयोग को सौंपते हैं। याचिकाकर्ताओं ने पहले के वृहद पीठ के फैसलों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि शिक्षकों के चयन और नियुक्ति का अधिकार अल्पसंख्यक संस्थानों के प्रशासन के अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है।

उन्होंने दावा किया कि 2020 के फैसले ने इन वृहद पीठ के फैसलों को खारिज कर दिया या उनकी अनदेखी की और अदालत से मामले को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ के समक्ष रखने का अनुरोध किया।

Case Title – The Managing Committee, Contai Rahamania High Madrasah v. State of West Bengal

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