सुप्रीम कोर्ट ने भारती एयरटेल के खिलाफ कर्मचारी योजना को लेकर 244 करोड़ रुपये के सर्विस टैक्स की याचिका खारिज की

Update: 2025-11-08 15:43 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज कंपनी भारती एयरटेल लिमिटेड के खिलाफ केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर आयुक्त, गुरुग्राम द्वारा दायर लगभग 244 करोड़ रुपये के सर्विस टैक्स की अपील खारिज की। यह विवाद कंपनी की एयरटेल कर्मचारी सेवा योजना (AESS) से संबंधित है, जो अपने कर्मचारियों को मुफ्त या रियायती दूरसंचार सेवाएं प्रदान करती थी।

इस अपील में कस्टम, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT), चंडीगढ़ के 27 जनवरी, 2025 के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें पूरी कर मांग खारिज की गई थी।

जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस के वी विश्वनाथन की खंडपीठ ने न्यायाधिकरण का आदेश बरकरार रखते हुए कहा,

"हमें कस्टम, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT), चंडीगढ़ द्वारा पारित 27.01.2025 के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नहीं मिलता। तदनुसार, अपील खारिज की जाती है।"

यह मामला तब सामने आया, जब कर अधिकारियों ने दावा किया कि भारती एयरटेल ने अक्टूबर, 2004 में शुरू की गई AESS योजना के तहत अपने कर्मचारियों को कर योग्य सेवाएं प्रदान की थीं। इस योजना के तहत कर्मचारियों को मोबाइल और ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए आंतरिक रूप से बिल भेजा जाता था। हालांकि, उन्हें कॉल फ्री अलाउंस (CFA) मिलता था, जो उनके पदनाम के आधार पर मुफ़्त उपयोग की एक निश्चित राशि थी।

राजस्व विभाग ने इन सेवाओं के मूल्य को कर योग्य माना और 23 अप्रैल, 2010 को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें अक्टूबर, 2004 से सितंबर, 2009 की अवधि के लिए ब्याज और जुर्माने सहित 118.7 करोड़ रुपये का सेवा कर मांगा गया। सर्विस टैक्स आयुक्त ने 4 अप्रैल, 2012 के एक आदेश द्वारा मांग की पुष्टि की और एयरटेल पर 125 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया।

अपील में CESTAT ने आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि कोई सेवा कर देय नहीं था क्योंकि कोई वास्तविक मौद्रिक प्रतिफल नहीं था। इसने पाया कि CFA लाभ आंतरिक भत्ते थे, न कि कर्मचारियों से प्राप्त भुगतान। ट्रिब्यूनल ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि कर्मचारी सद्भावना गैर-मौद्रिक प्रतिफल थी और यह माना कि विभाग का अनुमानित आंकड़ों पर आधारित सर्वोत्तम निर्णय आकलन टिकाऊ नहीं था।

इसके बाद राजस्व विभाग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि CFA कर्मचारियों के वेतन पैकेज का हिस्सा था और वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 67 में 18 अप्रैल, 2006 को हुए संशोधन के बाद कर योग्य हो गया, जिसने गैर-मौद्रिक लाभों को कर योग्य सेवाओं के दायरे में ला दिया। इसने यह भी दावा किया कि भारती एयरटेल ने वास्तविक आंकड़ों के बजाय अनुमानों के उपयोग को उचित ठहराते हुए आंकड़े छिपाए।

3 नवंबर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज की और CESTAT के इस विचार को बरकरार रखा कि भारती एयरटेल अपने कर्मचारियों को प्रदान की जाने वाली मुफ्त या रियायती दूरसंचार सेवाओं पर सेवा कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।

Case Title: Commissioner of Central Excise & Service Tax-Commissioner of Central Goods & Service Tax, Gurugram, Haryana vs Bharti Airtel Ltd.

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