सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट डिजिग्नेशन देने के उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

Update: 2022-09-03 06:44 GMT

सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस यू.यू. ललित और जस्टिस रवींद्र भट बेंच ने शुक्रवार को सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन देने के उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी।

याचिका में कहा गया कि उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा बनाई गई स्थायी समिति पक्षपातपूर्ण और अनुचित तरीके से गठित की गई है। इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि कुछ डेजिग्नेट एडवोकेट के पास 20 वर्ष से कम समय की प्रैक्टिस का अनुभव है और उन्हें 20 वर्ष या उससे अधिक अनुभव वाले उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक दिए गए हैं। इसने कुछ उम्मीदवारों के पक्षपात और तर्कहीन पक्ष को दिखाया।

पीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सीनियर एडवोकेट डिजिग्नेशन देने के लिए स्थायी समिति द्वारा अनुशंसित नहीं किए गए लोगों सहित सभी व्यक्तियों का विवरण पूर्ण अदालत के समक्ष रखा गया और याचिका उस पहलू पर गलत है।

कोर्ट ने कहा,

"इस याचिका में मूल शिकायतों में से उड़ीसा एचसी में प्रैक्टिस करने वाले एडवोकेट के डिजग्नेट के संबंध में स्थायी समिति द्वारा की गई सिफारिशों से संबंधित है। संबंधित एडवोकेट के नामों पर विचार करने के बाद स्थायी समिति ने कुछ की सिफारिश की, लेकिन 40 व्यक्तियों को योग्य नहीं पाया। सीनियर एडवोकेट के लिए सिफारिश की जानी है। यह प्रस्तुत किया जाता है कि इन 40 एडवोकेट का विवरण फुल कोर्ट के समक्ष रखा जाना चाहिए। फुल कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाना है जो कि आवश्यकता पूरी नहीं हुई। उड़ीसा हाईकोर्ट के लिए उपस्थित एडवोकेट ने हलफनामे पर ध्यान आकर्षित किया है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि जिन लोगों को नामित करने की सिफारिश नहीं की गई है, उन सभी के नामों पर अंतिम प्रस्ताव पारित होने से पहले फुल कोर्ट द्वारा विचार किया गया है। इन परिस्थितियों में हम इस रिट याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं देखते हैं।"

तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: पतितापबन पांडा बनाम उड़ीसा हाईकोर्ट और अन्य। | डब्ल्यूपी (सी) नंबर 15294/2022

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