सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम बापू केस पर हार्पर कॉलिन्स की किताब 'गनिंग फॉर द गॉडमैन' के प्रकाशन की अनुमति देने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट के उस अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें हार्पर कॉलिन्स की किताब 'गनिंग फॉर द गॉडमैन' के प्रकाशन की अनुमति दी गई थी, जो आसाराम बापू के खिलाफ आपराधिक मामले पर आधारित है।
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने संचिता गुप्ता द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसे नाबालिग से बलात्कार से संबंधित एक मामले में स्वयंभू धर्मगुरु के सहयोगी के रूप में दोषी ठहराया गया था। इस मामले में उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
सितंबर 2020 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जिला न्यायालय द्वारा पारित एक एक- पक्षीय निषेधाज्ञा को हटा दिया था, जिसमें यह कहा गया था कि सार्वजनिक डोमेन में निष्पक्ष चर्चा जो तथ्यों पर आधारित है और दुर्भावनापूर्ण नहीं है, वह बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षित है।
सुप्रीम कोर्ट के सामने , गुप्ता के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि निचली अदालत के आदेश को " महीन आधार" पर रद्द किया गया था और सवालों के घेरे में आई किताब ने उनके मुव्वकिल की प्रतिष्ठा पर हमला किया क्योंकि यह कहती है कि वह आसाराम के लिए लड़कियों की खरीद में शामिल थी ।
शीर्ष अदालत ने पाया कि इन आपत्तियों को उच्च न्यायालय के आदेश में दर्ज नहीं किया गया था और याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय के समक्ष इस शिकायत को उठाना चाहिए था।
पीठ ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा और निर्देश दिया, "क्या आपने हाईकोर्ट के समक्ष शिकायत की है जो यहां कहां जा रहा है?- आप प्रासंगिक बिंदु पर जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? यदि नहीं, तो राहत के लिए वापस हाईकोर्ट जाएं ..."
उन्होंने कहा,
"यहां याचिका खारिज करना उच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दे को तय करने के रास्ते में नहीं आएगा।"
दरअसल न्यायमूर्ति नजमी वज़िरी की एकल पीठ ने 22 सितंबर, 2020 को हार्पर कॉलिन्स को उनकी पुस्तक 'गनिंग फ़ॉर द गॉडमैन' के लिए आगे बढ़ने के लिए हरी झंडी दी थी।
गुप्ता के पक्ष में एक निचली अदालत द्वारा पारित निषेधाज्ञा आदेश को रद्द करते हुए, उन्होंने कहा था,
'एक सभ्य समाज में, जो कानून के शासन द्वारा शासित होता है, चर्चाओं को तथ्यों द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए। जिस समय इस तरह की चर्चाएं अटकलों और अप्रमाणित तथ्यों पर जाती हैं, निषेधाज्ञा का अधिकार उत्पन्न होता है।'
उन्होंने कहा कि जिला अदालत को उस डिस्कलेमर के बारे में अवगत नहीं कराया गया जो पुस्तक में मौजूद है। इसके अलावा, अदालत ने उल्लेख किया कि पुस्तक सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध तथ्यों पर आधारित है और मूल वादियों ने जिला अदालत में प्रकाशन की तारीख के अंत पर ही संपर्क किया था।
कथित तौर पर स्वयंभू संत आसाराम बापू की सजा के इर्द-गिर्द फैले तथ्यों की सच्ची कहानी वाली इस किताब को जयपुर के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अजय लांबा और संजीव माथुर ने लिखा था।
दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में, हार्पर कॉलिन्स की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रस्तुत किया था कि दिए गए आदेश को पारित करते समय, मुकदमा अदालत पूर्व-प्रकाशन सेंसरशिप के लिए कानून के व्यवस्थित सिद्धांतों पर विचार न करते हुए "गंभीर त्रुटि" में चली गई। ये असंवैधानिक है क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है। ओबहन एंड एसोसिएट्स ने इस मामले में हार्पर कॉलिन्स इंडिया का प्रतिनिधित्व किया।