सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा कर चोरी की जानकारी देने वाले को इनाम की राशि पर नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में "सूचना देने वालों को इनाम" नीति के तहत वित्त मंत्रालय द्वारा गठित इनाम समिति को समाचार एजेंसी मेसर्स एएनआई मीडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कर चोरी के संबंध में जानकारी देने वाले व्यक्ति को दिए जाने वाली इनाम की राशि पर नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता ने दलील दी कि उसने अधिकारियों को मेसर्स एशियन न्यूज इंटरनेशनल (एएनआई) मीडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 2.59 करोड़ रुपये की सेवा कर चोरी के बारे में जानकारी प्रदान की थी। अपीलकर्ता ने दावा किया कि ऐसी जानकारी देने पर, डिफॉल्टर आगे आया और स्वेच्छा से 2.59 करोड़ रुपये के सेवा कर का भुगतान किया। कर चोरी के बारे में जानकारी के आधार पर इनाम समिति ने अपीलकर्ता को 5.50 लाख रुपये का इनाम मंजूर किया। अपीलकर्ता ने दावा किया कि वह उपरोक्त नीति के खंड 4.1 के आधार पर 51.80 लाख रुपये के इनाम का हकदार है।
दरअसल वित्त मंत्रालय (राजस्व विभाग), केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा जारी "सूचना देने वालों और सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरस्कार नीति-प्रक्रिया और दिशानिर्देशों की समीक्षा " के खंड 4.1 के अनुसार, इनाम राशि कर चोरी के साथ-साथ जुर्माने और अर्थदंड की राशि का 20% तक है।
बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही
इनाम की मात्रा से दुखी होकर, अपीलकर्ता ने 2015 में बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर की। बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष, सेवा कर के प्रधान आयुक्त ने जवाब में हलफनामे में उस जानकारी को स्वीकार किया जो अपीलकर्ता द्वारा एएनआई मीडिया के संबंध में प्रदान की गई थी। हलफनामे में इस मीडिया कंपनी द्वारा कर चोरी का जिक्र किया गया था। हलफनामे में आगे कहा गया है कि इनाम समिति ने अपीलकर्ता द्वारा प्रदान की गई जानकारी की जांच की और 5.50 लाख रुपये का अंतिम इनाम मंजूर किया, जो कर चोरी और जांच के बारे में जानकारी के अनुरूप है।
विभाग के रुख को खारिज करते हुए अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर कहा कि उसे केवल सेवा कर चोरी के संबंध में जानकारी देनी है। यदि वह जानकारी सत्य है और उसके आधार पर वसूली की जाती है, तो, इनाम के नोटिफिकेशन में राशि की गणना उसकी मात्रा के आधार पर की जाती है, न कि अधिकारी किसी भी आंकड़े पर कैसे पहुंचते हैं और जानकारी के आधार पर। इस प्रकार, उन्होंने तर्क दिया कि अधिकारियों के लिए जानकारी को विभाजित करना और याचिकाकर्ता को केवल उस हिस्से का श्रेय देना संभव नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक वसूली होती है।
2016 में, हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने माना कि रिट याचिका में तथ्य के विवादित प्रश्न शामिल थे और इसलिए, अपीलकर्ता के लिए उचित उपाय एक सिविल सूट दायर करना है। इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इनाम समिति ने इनाम देते समय अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि निर्णय लेने वाले प्राधिकारी को किसी विशेष निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए उचित कारण बताने चाहिए। इसने आगे कहा कि हलफनामे के माध्यम से कारण बताने के बाद के प्रयास पर्याप्त नहीं होंगे।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा,
'' ब्यौरा अपीलकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना पर पूरी तरह से विचार न करने को दर्शाता है। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि यदि निर्णय लेने वाला प्राधिकारी किसी विशेष निष्कर्ष पर पहुंचने के कारणों को दर्ज नहीं करता है, तो हलफनामा दायर करके कारणों की आपूर्ति नहीं की जा सकती है।
पीठ ने यह भी कहा कि इससे पहले, 2018 में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने सूचित किया था कि इनाम को 9.45 लाख रुपये तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। इसे न्यायालय द्वारा यह मानने के लिए एक कारक के रूप में भी लिया गया कि निर्णय के संबंध में विवेक का उचित प्रयोग नहीं किया गया है।
न्यायालय ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए समिति को अपीलकर्ता के मामले पर पुनर्विचार करने और यह तय करने का निर्देश दिया कि क्या वह पहले से दी गई राशि से अधिक का हकदार है।
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नीति के खंड 4.1 के तहत, इनाम चोरी की गई राशि और जुर्माने का 20% है। इसमें कहा गया कि नीति के अनुसार, तीन सदस्यों वाली एक समिति को इनाम के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है।
न्यायालय ने संघ के हलफनामे की जांच की जो एक नोट-शीट पर निर्भर था, लेकिन आधिकारिक ब्यौरे में ऐसे नोटों के आधार पर किसी भी निर्णय का उल्लेख नहीं किया गया था।
न्यायालय ने अपीलकर्ता के इनाम को नीति के तहत हकदार 20% के बजाय 5.50 लाख रुपये तक सीमित करने के फैसले में दिए गए कारणों की कमी पर चिंता जताई । इसने 2018 में पारित आदेश की ओर भी इशारा किया, जहां एएसजी ने कहा था कि इनाम को बढ़ाकर 9.45 लाख कर दिया गया है, जो कि विवेक का प्रयोग न करने को दर्शाता है।
न्यायालय ने समिति को अपीलकर्ता के मामले पर पुनर्विचार करने और यह निर्धारित करने का निर्देश दिया कि क्या उसे अधिक राशि देय है। इसने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और समिति को 6 महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया।
एएनआई ने रिपोर्ट के जवाब में एक बयान इस प्रकार ट्वीट किया:
बयान: एएनआई मीडिया प्राइवेट लिमिटेड (ए एनआई) पिछले पांच दशक से अधिक से मल्टीमीडिया न्यूज़ एजेंसी रही है।2010 में एजेंसी को उचित प्राधिकरण से सेवा कर जमा करने का डिमांड नोटिस मिला था।ये मांग एएनआई ने स्वैच्छिक और बिना चुनौती दिए तुरंत पूरी कर दी गई थी
एएनआई ( @ए एनआई) 29 जुलाई, 2023
केस : केतन कांतिलाल मोदी बनाम भारत संघ
साइटेशन: सिविल अपील संख्या- 12033/2018
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