सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 4 महीने के भीतर विकलांग व्यक्तियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के निर्देश जारी करने को कहा

Update: 2021-09-28 12:24 GMT
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यूनियन ऑफ इंडिया को निर्देश दिया कि वह विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 34 के प्रावधानों के अनुसार विकलांग व्यक्तियों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए "जल्द से जल्द" निर्देश जारी करे। निर्देश जारी करने में चार महीने से ज्यादा समय ना लगे।

कोर्ट ने आदेश केंद्र सरकार की ओर से दायर एक विविध आवेदन पर जारी किया, जिसमें सिद्धाराजू बनाम कर्नाटक राज्य के फैसले के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा गया था। उक्‍त आदेश में घोषित किया गया था कि विकलांग व्यक्तियों को पदोन्नति में आरक्षण का अधिकार है।

कोर्ट ने कहा कि फैसले में कोई अस्पष्टता नहीं है और केंद्र को विकलांग व्यक्तियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए 2016 अधिनियम की धारा 34 के प्रावधान के तहत निर्देश जारी करने का निर्देश दिया।

जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने मंगलवार को केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान और प्रतिवादियों की ओर से पेश अधिवक्ता राजन मणि की दलीलें सुनीं।

पिछली सुनवाई में अदालत सीनियर एडवोकेट जयना कोठारी की दलीलें सुनी थीं, जिन्होंने कहा था कि केंद्र स्पष्टीकरण की मांग की आड़ में निर्णय के प्रभाव को पूर्ववत करने की मांग कर रही है।

एडवोकेट राजन मणि ने बताया कि अधिनियम के लागू होने के 5 साल बाद भी विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 34 के प्रावधान के तहत कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि पीडब्ल्यूडी के लिए आरक्षण का कार्यान्वयन विलंबित किया जा रहा है क्योंकि अधिनियम की धारा 34 के तहत अपेक्षित कोई निर्देश जारी नहीं किया जा रहा है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि स्पष्टीकरण मांगने वाला वर्तमान विविध आवेदन निर्णय को कमजोर करने का एक और प्रयास है।

एडवोकेट राजन मणि के निवेदन को ध्यान में रखते हुए कि अधिनियम को लागू हुए 5 साल बीत चुके हैं और अभी तक कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है, जस्टिस एल नागेश्वर राव ने एएसजी से पूछा कि क्या केंद्र ने प्रोन्नति में आरक्षण लागू करने के निर्देश जारी किए हैं।

जस्टिस नागेश्वर राव के सवाल का जवाब देते हुए एएसजी माधवी दीवान ने जवाब दिया कि केंद्र द्वारा पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिए ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है। एएसजी ने प्रस्तुत किया कि जो निर्देश पीडब्ल्यूडी अधिनियम, 2016 की धारा 34 के प्रावधान के अनुसार जारी किए जाने हैं, उन्हें कुछ स्पष्टीकरणों के आलोक में जारी नहीं किया जा सकता है, जो आवश्यक हैं।

उन्होंने प्रस्तुत किया कि "हम स्पष्टीकरण मांग रहे हैं ताकि हमारे निर्देश कमजोर न हों।" एएसजी ने आगे तर्क दिया कि पदोन्नति में आरक्षण के लाभ का विस्तार करने से पहले योग्यता, दक्षता और प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता के सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। एएसजी ने पहले तर्क दिया था कि विकलांग व्यक्तियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण के व्यापक आवेदन से कई व्यावहारिक समस्याएं पैदा होंगी।

सुनवाई के बाद, पीठ ने कहा कि उसे यूनियन द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण को जारी करने का कोई कारण नहीं मिला।

बेंच ने विविध आवेदन का निपटारा करते हुए कहा कि अदालत ने सिद्धाराजू, नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड बनाम संजय कोठारी, सचिव, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, 2015 (9) स्केल 611 और राजीव कुमार गुप्ता और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2016) 6 स्केल 417 जैसे फैसलों में दिए गए फैसलों में कोई अस्पष्टता नहीं देखी। विविध आवेदन का निपटारा करते हुए, पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह विकलांग व्यक्ति अधिनियम, 2016 की धारा 34 के तहत आदेश की तारीख से 4 महीने के भीतर निर्देश जारी करे।

केस शीर्षक: सिद्धाराजू बनाम कर्नाटक राज्य, एमए नंबर 2171/2020 सीए नंबर 1567/2017 में

बेंच: जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई, ज‌स्टिस संजीव खन्ना।

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