सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को सैन्य प्रशिक्षण के दौरान घायल हुए कैडेटों के पुनर्वास के लिए एमिक्य क्यूरी के सुझावों पर विचार करने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को सैन्य प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग हुए और कमीशन प्राप्त करने से पहले सेवामुक्त हुए अधिकारी कैडेटों को मान्यता देने और उनके पुनर्वास के लिए एमिक्स क्यूरी सीनियर एडवोकेट रेखा पल्ली द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार करने का निर्देश दिया।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि आउट-बोर्डेड कैडेटों को कोई दर्जा या मान्यता नहीं दी गई। परिणामस्वरूप उन्हें उचित सुविधाओं का अभाव है।
अदालत ने कहा,
"इस संबंध में हम यह भी देखते हैं कि ये आउट-बोर्डेड अधिकारी प्रवेश स्तर पर कमीशन प्राप्त अधिकारियों के रूप में अपने पद पर आसीन हुए होंगे। हालांकि, अभी तक उन्हें प्रशिक्षण के दौरान लगी चोट के संबंध में कोई दर्जा या मान्यता नहीं मिली है। परिणामस्वरूप ऐसे आउट-बोर्डेड कैडेटों को प्रदान की जाने वाली उचित सुविधाओं और सुख-सुविधाओं का अभाव रहा है।"
अदालत ने ट्रेनिंग के दौरान चोट लगने के कारण सेवामुक्त हुए सैनिक रंगरूटों और अधिकारी कैडेटों के बीच भेदभाव पर गौर किया। कोर्ट ने कहा कि रंगरूटों को ऐसी आर्थिक और अन्य सुविधाएं मिलती हैं, जो कैडेटों को नहीं मिलतीं। अदालत ने कहा कि व्यवस्था को पहले ऐसे कैडेटों को मान्यता देनी चाहिए। फिर उनके लिए आर्थिक और स्वास्थ्य सुविधाओं को शामिल करते हुए एक योजना बनानी चाहिए।
आगे कहा गया,
“व्यवस्था को सबसे पहले ऐसे कैडेटों को मान्यता देनी चाहिए। उसके बाद उनके लाभ के लिए आर्थिक और स्वास्थ्य सुविधाओं सहित अन्य लाभ की योजना बनानी चाहिए... इन परिस्थितियों में हम एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से अनुरोध करते हैं कि वे लिखित प्रस्तुतियों की प्रति प्रस्तुत करें और उसे सेवा मुख्यालय में संबंधित अधिकारियों को सूचित करें ताकि वे यथाशीघ्र और सबसे उपयुक्त तरीके से उपरोक्त प्रक्रिया को अंजाम दें, जिसमें सबसे पहले उन अधिकारियों के प्रशिक्षण की पूरी योजना में बाहर किए गए कैडेटों की स्थिति और पद को मान्यता दी जाए, जो प्रशिक्षण के दौरान लगी दुर्भाग्यपूर्ण चोट के कारण संबंधित सेवाओं में कमीशन प्राप्त अधिकारी नहीं बन पाते।”
अदालत ने आगे कहा कि ऐसे आउट-बोर्डेड कैडेटों की संख्या "बिल्कुल नगण्य" है।
अदालत ने कहा,
"इसलिए यह अपेक्षित है कि सुविधाओं और सुख-सुविधाओं की एक योजना प्रदान की जाए ताकि इन आउट-बोर्डेड कैडेटों का मेडिकल और अन्य, दोनों तरह से पुनर्वास किया जा सके।"
अदालत ऐसे आउट-बोर्डेड कैडेटों के सामने आने वाली कठिनाइयों से संबंधित स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा था। पिछली तारीख पर न्यायालय ने केंद्र सरकार से उनके लिए आर्थिक और बीमा सहायता बढ़ाने और पुनर्वास एवं मेडिकल पुनर्मूल्यांकन योजना तैयार करने का अनुरोध किया।
सुनवाई की शुरुआत में पल्ली ने खकंडपीठ को बताया कि हर साल लगभग 40 कैडेटों को आउट-बोर्डेड कैडेटों के रूप में नियुक्त किया जाता है और उनकी कम संख्या के कारण उनकी चिंताओं की उपेक्षा की जाती है। उन्होंने कहा कि पहला कदम सहानुभूति होना चाहिए। साथ ही कहा कि सेवामुक्त होने के बाद दिव्यांग कैडेटों को मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती। उन्होंने सुझाव दिया कि उनके साथ पूर्व सैनिकों जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए ताकि वे मौजूदा लाभों का लाभ उठा सकें।
एमिक्स क्यूरी ने रिटायर कैडेटों के लिए मेडिकल सहायता, वित्तीय सहायता, शिक्षा, पुनर्वास और बीमा से संबंधित उपायों का प्रस्ताव करते हुए नोट प्रस्तुत किया।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि भले ही उन्हें पूर्व सैनिकों के समान दर्जा न दिया जा सके। फिर भी उनके लिए एक अलग कार्यक्रम बनाया जा सकता है।
पल्ली ने दलील दी कि ट्रेनिंग के दौरान दिव्यांग होने वाले रंगरूटों को दिव्यांगता पेंशन मिलती है, जबकि कैडेटों को केवल अनुग्रह राशि दी जाती है। उन्होंने कहा कि ऐसे 699 कैडेटों और पूर्व सैनिक श्रेणी में प्रतिवर्ष जोड़े जाने वाले 40 कैडेटों को शामिल करने से वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा।
उन्होंने बताया कि हालांकि कैडेट अब पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ECHS) के अंतर्गत आते हैं। हालांकि, उनके परिवारों को पूर्व सैनिकों के परिवारों को दिए जाने वाले लाभों से वंचित रखा जाता है।
सेवा और पेंशन मामलों पर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) मुकेश सभरवाल की अध्यक्षता वाली समिति की 2015 की रिपोर्ट पढ़ते हुए, जिसमें अनुग्रह राशि के स्थान पर विकलांगता पेंशन देने की सिफ़ारिश की गई, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सैनिक बनने के लिए प्रशिक्षण ले रहे रंगरूटों को पूर्व सैनिक माना जाता है, लेकिन अधिकारी कैडेटों को नहीं।
रिपोर्ट में इसे "लाभों से वंचित करने का एक स्व-निर्मित तरीका" बताया गया। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि कैडेटों को अक्सर ग्रेजुएट स्तर के कोर्स के बीच में ही नौकरी से निकाल दिया जाता है और उन्हें अपनी शिक्षा का क्रेडिट दिए बिना ही अपना गुज़ारा करना पड़ता है।
पल्ली ने अदालत को बताया कि यही सिफ़ारिश तीन बार की गई। इसे लागू करने में सालाना लगभग ₹2 करोड़ का ही खर्च आएगा। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि रिपोर्ट के बाद क्या कार्रवाई की गई।
उन्होंने आगे बताया कि अधिकारी कैडेटों के लिए अनुग्रह राशि में दिव्यांगता और सेवा तत्व शामिल होते हैं, दिव्यांगता तत्व की गणना अधिकारी रैंक के आधार पर की जाती है। हालांकि, सेवा तत्व ग्रुप डी रैंक के अनुसार निर्धारित होता है, जबकि कैडेट ट्रेनिंग पूरा करने के बाद ग्रुप ए अधिकारी बन जाते। उन्होंने कहा कि यह उन रंगरूटों के विपरीत है, जिनके लाभ ट्रेनिंग के बाद उनके द्वारा नियुक्त पद के वेतन पर आधारित होते हैं।
पल्ली ने एक तुलनात्मक चार्ट प्रस्तुत किया, जिसमें दिखाया गया कि 20% दिव्यांगता के लिए आउट-बोर्डेड कैडेटों के लिए अनुग्रह राशि आउट-बोर्डेड रंगरूटों की तुलना में कम है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि लाभ ट्रेनिंग की अवधि के आधार पर भिन्न हो सकते हैं, क्योंकि एक महीने के बाद सेवामुक्त होने वाले व्यक्ति की तुलना तीन साल बाद सेवा छोड़ने वाले व्यक्ति से नहीं की जा सकती।
पल्ली ने यह भी आग्रह किया कि कैडेटों के परिवारों को मेडिकल लाभ दिए जाएं।
जस्टिस नागरत्ना ने जब कहा कि कैडेटों को अभी तक सभी लाभ नहीं मिले हैं तो पल्ली ने ज़ोर देकर कहा कि वह केवल आउट-बोर्डेड रंगरूटों के साथ समानता चाहती हैं, जिन्हें अपने परिवारों के लिए मेडिकल लाभ मिलते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि अगर उन्हें सशस्त्र बलों में फिर से शामिल नहीं किया जाता तो भी कैडेटों को अन्य मंत्रालयों के तहत नागरिक नौकरियों में समायोजित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस लाभ को अनुग्रह राशि के बजाय "दिव्यांगता पेंशन" कहना भी अपने आप में सार्थक होगा।
जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की कि उनकी स्थिति को मान्यता देना पहली आवश्यकता है।
पल्ली ने आगे सुझाव दिया कि दिव्यांग कैडेटों को अपनी शैक्षणिक शिक्षा जारी रखने की अनुमति देने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं, भले ही वे शारीरिक प्रशिक्षण जारी न रख सकें। सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज का उदाहरण देते हुए उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि बोर्ड-आउट कैडेटों को भी अपना MBBS कोर्स अधूरा छोड़ना पड़ता है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जो रंगरूट प्रशिक्षण पूरा नहीं कर पाते हैं, उन्हें लाभ मिलता है। हालांकि, अधिकारी कैडेटों को नहीं। उन्होंने पूछा कि उनके लिए क्या किया जा सकता है, क्योंकि उनकी संख्या कम है और वित्तीय प्रभाव न्यूनतम है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि इस मामले की जांच सेवा मुख्यालय के विशेषज्ञों द्वारा की जा सकती है, जिनकी सिफारिशें संयुक्त विचार के लिए रक्षा और वित्त मंत्रालयों को भेजी जाएंगी, और अंतिम निर्णय अदालत के समक्ष रखा जा सकता है।
दलील स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने कहा कि उसे उनका दृष्टिकोण "उचित और सकारात्मक" लगा। उसने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से अनुरोध किया कि वे एमिक्स क्यूरी की लिखित दलीलें संबंधित अधिकारियों के साथ साझा करें और यह सुनिश्चित करें कि मामले की "शीघ्रता से और सबसे उचित तरीके से" जाँच की जाए।
इस मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को दोपहर 2 बजे होगी।
Case Title – In Re: Cadets Disabled In Military Training Struggle