सुप्रीम कोर्ट ने "लक्जरी मुकदमेबाजी" की निंदा की; याचिकाकर्ता पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि वह "लक्जरी मुकदमेबाजी" (अपने ईगो को संतुष्ट करने के इरादे से दायर किया गया वाद) दायर करने का विरोध करता है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने हालांकि शुरुआत में 18 लाख का जुर्माना लगाने की इच्छा जताई, लेकिन याचिका को खारिज करते हुए दो लाख का जर्माना लगाने का फैसला किया।
पीठ ने कहा,
"हमारा विचार है कि मौजूदा कार्यवाही ट्रस्ट के प्रबंधन पर नियंत्रण हासिल करने के लिए युद्धरत समूहों द्वारा लक्जरी मुकदमा है। हम इस तरह के लक्जरी मुकदमे दायर करने की इस प्रथा की निंदा करते हैं।"
बाद में बेंच ने आदेश को दो लाख के जुर्माना से बदल दिया, जिसमें एक-एक लाख सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन के पास जमा किए जाने हैं।
पीठ ने आदेश में कहा,
"यह आगे ध्यान दिया जाना चाहिए कि सीआरपीसी की धारा 145 के तहत कार्यवाही प्रकृति में संक्षिप्त हो और वे यह तय नहीं करते कि अधिकारों का हकदार कौन हैं। वे केवल इस सवाल का यह होता हैं कि आवेदन दाखिल करने की तारीख से या ऐसा आवेदन करने से दो महीने पहले कब्जा किसका था।
यह कानून के सुस्थापित सिद्धांत से कहीं अधिक है कि जब किसी कानून को किसी विशेष तरीके से किसी विशेष चीज की आवश्यकता होती है तो उसे अकेले उस तरीके से किया जाना चाहिए या बिल्कुल नहीं। सत्र न्यायाधीश और हाईकोर्ट ने उक्त सिद्धांत का पालन करते हुए उनके समक्ष मामले का फैसला किया है।"
अदालत बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश के तहत उसने मजिस्ट्रेट द्वारा सीआरपीसी की धारा 145 के तहत पारित आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें याचिकाकर्ता और उसके शैक्षणिक संस्थान 'द जलगांव जिला विद्या प्रसारक मराठा समाज लिमिटेड' समूह को नियंत्रण और प्रबंधन के लिए रखा गया था।
जब मामले को बुलाया गया तो पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि उसे इस याचिका में कोई योग्यता नहीं दिखाई देती है, लेकिन वकील ने बहस करने पर जोर दिया। पीठ ने चेतावनी दी कि यदि वह आगे बढ़ना चाहता है तो पीठ उसे नहीं रोकेगी, लेकिन वह जुर्माना लगा सकती है।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा,
"हमने आपको चेतावनी दी थी कि जब आदेश अच्छी तरह से तर्कपूर्ण होते हैं तो हम यह उम्मीद नहीं करते कि वकील अदालतों में अपना समय बर्बाद करेंगे।"
केस टाइटल: नीलेश बनाम महेश