'किसी की भी बिना सुनवाई के निंदा नहीं की जा सकती': सुप्रीम कोर्ट ने वकील के खिलाफ हाईकोर्ट द्वारा की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना हटाया
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा वकील के खिलाफ दर्ज की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना हटा दिया।
कोर्ट ने साथ ही वकील के खिलाफ लगाए गए आरोपों का जवाब देने के लिए उसे सुनवाई का अवसर दिए बिना उसके खिलाफ कदाचार की कार्यवाही शुरू करने के लिए राज्य बार काउंसिल को दिए गए हाईकोर्ट के निर्देश को भी खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा,
"हमारा मानना है कि अपीलकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना उसके खिलाफ टिप्पणियां करने का हाईकोर्ट का तरीका कानून की नजर में पूरी तरह से असहयोगी है।"
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच प्रैक्टिसिंग वकील दुष्यंत मैनाली की अपील पर सुनवाई कर रही थी। नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सिविल मामले में उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। अपीलकर्ता न तो मामले में पक्षकार था, न ही मामले में किसी वादी का प्रतिनिधित्व कर रहा था।
हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ पेशेवर कदाचार के आरोप में कुछ प्रतिकूल टिप्पणियां कीं, क्योंकि उसने कथित तौर पर एक वादी को गुमराह किया, जिसके परिणामस्वरूप पुनर्विचार याचिका दायर करने में देरी हुई और उत्तराखंड बार काउंसिल को अपीलकर्ता के खिलाफ उसके कथित कदाचार के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश भी दिया।
अपीलकर्ता ने इन टिप्पणियों को इस आधार पर चुनौती दी कि उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना ये टिप्पणियां की गईं, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं।
अपीलकर्ता को राहत प्रदान करते हुए न्यायालय ने कानून के स्थापित सिद्धांत को दोहराया कि किसी को भी बिना सुनवाई के दोषी नहीं ठहराया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि ठोस सबूतों के अभाव में हाईकोर्ट को अपीलकर्ता के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां दर्ज नहीं करनी चाहिए थीं।
साथ ही न्यायालय ने पिछले मामलों नीरज गर्ग बनाम सरिता रानी और अन्य (2021) और सिद्धार्थ सिंह बनाम सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणी/उप मंडल मजिस्ट्रेट और अन्य (2024) पर प्रकाश डाला, जहां हाईकोर्ट के उसी जज ने वकीलों के खिलाफ अनुचित टिप्पणियां कीं, जिसमें न्यायिक संयम और निष्पक्षता के सिद्धांतों के पालन की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
न्यायालय ने कहा,
"यह दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं है कि देश की सुप्रीम कोर्ट सहित सभी न्यायालय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत से बंधे हैं। किसी को भी बिना सुने दोषी नहीं ठहराया जा सकता।"
तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई।
केस टाइटल: दुष्यंत मैनाली बनाम दीवान सिंह बोरा एवं अन्य।