सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से बेघर और मानसिक रूप से बीमार लोगों के पुनर्वास उपायों पर तत्काल विचार करने को कहा

Update: 2025-07-25 14:14 GMT

बेघर और मानसिक रूप से बीमार लोगों के पुनर्वास उपायों की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि उठाया गया मुद्दा "बेहद गंभीर और संवेदनशील" है।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से उठाए गए कदमों के बारे में पूछताछ की और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बृजेंद्र चाहर के अनुरोध पर मामले की सुनवाई 8 सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।

एएसजी ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर रही है और बैठकें चल रही हैं। उन्होंने प्रगति रिपोर्ट पेश करने के लिए 8 सप्ताह का समय मांगा।

जस्टिस नाथ ने उनसे कहा,

"आपको इसे बहुत गंभीरता से और यथासंभव कम समय में लेने की आवश्यकता है।"

जनहित याचिका दायर करने वाले एडवोकेट गौरव कुमार बंसल ने पेश होकर कहा कि बेघर और मानसिक रूप से बीमार लोग "सचमुच फुटबॉल बनते जा रहे हैं"। उन्होंने इस शब्द के इस्तेमाल के लिए माफ़ी मांगी, लेकिन समझाया - "मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, क्योंकि क़ानून कहता है कि पुलिस थानों को पुनर्वास के लिए कुछ करना होगा। कई बार इन लोगों में महिलाएं भी शामिल होती हैं। पुलिस की ओर से नकारात्मकता है, इन लोगों के लिए पर्याप्त पुनर्वास कार्यक्रम नहीं हैं।"

जवाब में जस्टिस मेहता ने कहा कि बेंच सभी मुद्दों पर केंद्र सरकार के जवाब की उम्मीद कर रही है और फिर वह मामले की निगरानी करेगी।

जज ने आश्वासन दिया,

"हम इसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे।"

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने 2017 के अधिनियम के तहत केंद्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के बारे में अपनी बात रखनी शुरू की तो जस्टिस मेहता ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा,

"अधिनियम तो हैं, मिस्टर चाहर, उनका क्रियान्वयन कहां है? अनुपालन कहां है?"

केंद्र सरकार के अलावा, जनहित याचिका में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी पक्षकार बनाया गया।

मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।

Case Title: GAURAV KUMAR BANSAL Versus UNION OF INDIA AND ORS., W.P.(C) No. 198/2025

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