हाईकोर्ट जाइये: सुप्रीम कोर्ट ने सांसद अमृतपाल सिंह की NSA के तहत नज़रबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर कहा
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के सांसद अमृतपाल सिंह द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (NSA) के तहत अपनी तीसरी नज़रबंदी को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने उन्हें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट जाने की छूट दी और अनुरोध किया कि इस मामले का निपटारा अधिमानतः 6 सप्ताह के भीतर किया जाए।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने सिंह की याचिका का उल्लेख किया। शुरुआत में जस्टिस कुमार ने उन्हें हाईकोर्ट जाने को कहा।
गोंजाल्विस ने दलील दी कि सिंह पिछले ढाई साल से नज़रबंदी में हैं और पूरी नज़रबंदी एक FIR पर आधारित है, जिसमें आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि खंडपीठ ने हाल ही में लद्दाख के सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की पत्नी डॉ. गीतांजलि अंगमो द्वारा दायर अन्य नज़रबंदी याचिका पर भी विचार किया था, जिसमें उनके पति की NSA के तहत नज़रबंदी को अवैध घोषित करने की मांग की गई थी।
जस्टिस कुमार ने जवाब दिया कि वांगचुक का मामला अलग है, क्योंकि उनका तबादला दूसरे राज्य में हो गया है।
शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि वह उनकी याचिका पर जनवरी या फरवरी, 2026 में ही विचार कर सकता है। हालांकि, चूंकि याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे केवल देरी होगी, जस्टिस कुमार ने कहा कि कोर्ट पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट से अनुरोध करेगा कि वह मामले का निपटारा छह सप्ताह के भीतर कर दे।
चूंकि मामले की सुनवाई के समय केंद्र सरकार का कोई वकील उपस्थित नहीं था, इसलिए कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया। कुछ समय बाद केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू पेश हुए और कोर्ट ने उन्हें सिंह की याचिका पर विचार न करने के अपने निर्णय से अवगत कराया, लेकिन हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी।
जस्टिस कुमार ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजू से कहा:
"हम इस मामले पर विचार नहीं कर रहे हैं, लेकिन हम इसे हाईकोर्ट में जाने की अनुमति दे रहे हैं। हम हाईकोर्ट से अनुरोध कर रहे हैं कि इसे छह सप्ताह के भीतर निपटा दिया जाए...वे सलाहकार बोर्ड के समक्ष आए और इसीलिए हमने इस पर विचार किया, अन्यथा सामान्यतः हम इस पर विचार नहीं करते।"
हालांकि, एएसजी राजू ने दलील दी कि छह हफ़्ते का समय कम है, क्योंकि जवाब वगैरा सब कुछ दाखिल करना है। इसके विपरीत, गोंसाल्वेस ने अनुरोध किया कि केवल एक महीने का समय दिया जाए।
जस्टिस कुमार ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि हम हाईकोर्ट के जजों पर बहुत दबाव डाल रहे हैं।
Case Details: AMRITPAL SINGH v UNION OF INDIA AND ORS.|W.P.(Crl.) No. 445/2025