सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनियों और IRDAI से 'समान' मोटर वाहन पॉलिसियां बनाने को कहा

Update: 2025-10-30 13:45 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) और 22 बीमा कंपनियों से मोटर दुर्घटना के मामलों में लोगों की बेहतर सुरक्षा के लिए एक समान बीमा पॉलिसी की संभावना तलाशने को कहा।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें कंपनी को प्रतिवादी-दावेदारों को ब्याज सहित लगभग 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया।

ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय की चिंता इस तथ्य से उपजी है कि विभिन्न बीमा कंपनियों की अलग-अलग बीमा पॉलिसियां होती हैं, जिनमें अलग-अलग शब्दों का प्रयोग होता है। अलग-अलग कवरेज प्रदान किया जाता है। कोर्ट ने पहले बीमा कंपनियों की पॉलिसी प्रोफ़ाइल और कवरेज के बारे में जानकारी मांगी और विभिन्न बीमा कंपनियों में विभिन्न प्रकार की पॉलिसियों की परिभाषा में विविधता को देखते हुए न्यायालय ने महसूस किया कि एकरूपता होनी चाहिए।

बता दें, मोटर वाहन अधिनियम के तहत तीन प्रकार की पॉलिसियां बताई गईं- देयता कवर (थर्ड-पार्टी देयता), स्टैंडअलोन ओन-डैमेज कवर (वाहन के लिए) और कॉम्प्रिहेंसिव (थर्ड-पार्टी और वाहन)। हालांकि, ज़ाहिर है, अलग-अलग बीमा कंपनियां पैकेज पॉलिसियों को अलग-अलग तरीके से परिभाषित करती हैं। पॉलिसियों और उनकी शर्तों के बारे में उपभोक्ताओं की जागरूकता की कमी के साथ इसका परिणाम यह होता है कि प्रीमियम का भुगतान करने के बावजूद दुर्घटना के दावे अधूरे रह जाते हैं और पीड़ित वर्षों तक मुआवज़े से वंचित रह जाते हैं।

सुनवाई के दौरान, खंडपीठ ने उपभोक्ता जागरूकता की कमी और बीमा कंपनियों द्वारा मुकदमे-पूर्व चरण में दावों का निपटान करने में अनिच्छा को प्रमुख मुद्दे बताया। इसके अलावा, इसने भारत संघ (सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के माध्यम से) को इस मामले में पक्षकार बनाया। इस बात पर ज़ोर दिया कि नियामक होने के नाते IRDAI की एक महत्वपूर्ण भूमिका है और अगर वह सुझावों पर अमल कर पाता है तो यह "राष्ट्र की एक महान सेवा" होगी।

पिछले 8-9 महीनों में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के अनुभव पर बोलते हुए जस्टिस करोल ने कहा,

"MACT मामलों में हमारा अनुभव यह है कि बीमाकर्ता मुकदमेबाजी से पहले के चरण में दावों का निपटारा करने में आनाकानी करता है... न्यायनिर्णयन के पहले चरण में बीमाकर्ता द्वारा कड़ा विरोध किया जाता है... यहां तक कि प्रथम अपील (हाईकोर्ट) के चरण में भी विरोध होता है... इसके अलावा, MACT/प्रथम अपीलीय न्यायालय के तथ्यों को चुनौती देने में बीमाकर्ता द्वारा अत्यधिक देरी की जाती है।"

जज ने खेद व्यक्त किया कि "MACT मामले में मुकदमे की सामान्य अवधि 8-10 वर्ष होती है" और उन्होंने सरकारी खजाने पर इसके प्रभाव पर ज़ोर दिया।

जस्टिस करोल ने कहा,

"जब मामला हमारे पास आता है तो हम पाते हैं कि मुआवज़े की राशि में वृद्धि हो जाती है। साथ ही ब्याज आदि का भुगतान भी बढ़ जाता है। यह सब सरकारी खजाने पर बोझ है... उपभोक्ता को विभिन्न बीमा कंपनियों द्वारा उपलब्ध विभिन्न पॉलिसियों के बारे में भी जानकारी नहीं होती है।"

जज ने IRDAI, बीमा कंपनियों और जीआई परिषद के महाप्रबंधकों से पूछा,

"हम नीति निर्माता नहीं हैं, लेकिन क्या यह संभव नहीं है कि आप सब मिलकर एक समान नीति बनाएं? क्या आप उपभोक्ताओं को उपलब्ध पॉलिसियों के बारे में जागरूक कर सकते हैं?"

दुर्घटना के मामलों में बेहतर उपभोक्ता जागरूकता और शिकायतों के तत्काल निवारण की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए जस्टिस करोल ने यह भी कहा,

"कृपया सोचें कि आपकी बीमा पॉलिसियों में क्या-क्या समानताएं हो सकती हैं। हो सकता है कि आप उपभोक्ताओं की बेहतर सुरक्षा के लिए एकमुश्त उपाय कर सकें... आपको मालिकों को जागरूक करना होगा... आपको बताना होगा कि बीमा कवरेज में क्या अंतर है।"

मामले को दो हफ़्ते बाद सूचीबद्ध किया गया। अनुरोध पर न्यायालय ने बीमा कंपनियों के महाप्रबंधकों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट दी। उनकी जगह सीनियर कार्यकारी अधिकारी उपस्थित हो सकते हैं। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे संघ की ओर से सहायता करेंगी।

मामले के तथ्यों को संक्षेप में प्रस्तुत करने के लिए प्रतिवादी नंबर 1 के पति की 1996 में एक मोटर दुर्घटना में मृत्यु हो गई। जिस कार से वह दुर्घटनाग्रस्त हुए, उसका बीमा याचिकाकर्ता कंपनी के पास था। 2003 में प्रतिवादी नंबर 1 ने अपने दो बच्चों के साथ 10 लाख रुपये के मुआवजे की मांग करते हुए एक दावा याचिका दायर की। उन्होंने आरोप लगाया कि मृतक की मृत्यु एक ट्रक के चालक की लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण हुई, जिसने उनकी कार को टक्कर मार दी थी।

हालांकि, याचिकाकर्ता ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष यह कहते हुए दावे का विरोध किया कि उसके द्वारा जारी पॉलिसी व्यापक निजी कार पैकेज पॉलिसी थी, जो मालिक (मृतक) को कवर नहीं करती, क्योंकि वह पॉलिसी का तीसरा पक्ष नहीं था। याचिकाकर्ता के अनुसार, मृतक अपनी कार में एक यात्री के रूप में यात्रा कर रहा था और पॉलिसी केवल दावेदारों को किसी तीसरे पक्ष के प्रति किसी भी दायित्व के लिए क्षतिपूर्ति प्रदान करती थी।

2009 में MACT ने यह कहते हुए दावा याचिका खारिज की कि पॉलिसी मृतक/वाहन के मालिक को कवर नहीं करती थी, क्योंकि वाहन मालिक के व्यक्तिगत जोखिम को कवर करने के लिए कोई अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान नहीं किया गया। व्यथित होकर, दावेदारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

2024 में हाईकोर्ट ने दावेदारों को मुआवज़े का हकदार माना, यह देखते हुए कि जारी की गई पॉलिसी व्यापक पॉलिसी है, जिसमें कार में बैठे लोगों को भी कवर किया गया। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसने तर्क दिया कि व्यापक पॉलिसी केवल तीसरे पक्ष के लिए ही लाभकारी होती है। यह बीमित कार में सवार लोगों को कवर कर सकती है। हालांकि, वाहन के मालिक तक विस्तारित नहीं की जा सकती और उसे तीसरे पक्ष के रूप में नहीं माना जा सकता।

मार्च, 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी किया और हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई। बाद में इसने 22 बीमा कंपनियों और IRDAI को पक्ष-प्रतिवादी के रूप में शामिल करना आवश्यक समझा। हाल ही में इसने IRDAI और बीमा कंपनियों के महाप्रबंधकों को अदालत में उपस्थित होने के लिए कहा।

Case Title: NATIONAL INSURANCE COMPANY LIMITED Versus SMT. THUNGALA DHANA LAXMI AND ORS., SLP(C) No. 8563/2025

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