सुप्रीम कोर्ट का सवाल- पीलीभीत कार्यालय के लिए समाजवादी पार्टी को 115 रुपये में नगर निगम भवन कैसे मिला? बताया- राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग

Update: 2025-07-21 10:39 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 जुलाई) को समाजवादी पार्टी (SP) की उस याचिका पर विचार करने से इनकार किया, जिसमें पीलीभीत ज़िला कार्यालय से उसे बेदखल किए जाने को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने पार्टी को सिविल कोर्ट जाने को कहा, जहां उसने अंतरिम निषेधाज्ञा के लिए पहले ही एक दीवानी मुकदमा दायर कर रखा है।

सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कुछ मौखिक टिप्पणियां कीं, जिसमें पार्टी को नगर निगम के प्लॉट पर औने-पौने दामों पर कार्यालय मिलने के तरीके को अस्वीकार किया गया। साथ ही कहा गया कि यह आवंटन पार्टी के सत्ता में रहते हुए राजनीतिक शक्ति के दुरुपयोग पर आधारित है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं की गई, जिससे दीवानी उपचार के विकल्प खुले हैं।

जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता-पक्ष की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे से पूछा कि समाजवादी पार्टी ने पीलीभीत कार्यालय परिसर कैसे हासिल किया। जब दवे ने जवाब दिया कि परिसर नगर पालिका परिषद द्वारा आवंटित किया गया था।

इस पर जस्टिस कांत ने पूछा,

"तरीका क्या था?"

जवाब में दवे ने कहा कि देय किराया चुका दिया गया।

जस्टिस कांत ने टिप्पणी की,

"यदि आपने अपनी राजनीतिक शक्ति का इस तरह दुरुपयोग किया, क्योंकि आप सत्ताधारी राजनीतिक दल हैं और 115 रुपये में, तो क्या आपको लगता है कि किसी राजनीतिक दल को अपना कार्यालय खोलने के लिए नगरपालिका भवन उपलब्ध होगा?"

दवे ने जब तर्क दिया कि एक बार याचिकाकर्ता के कब्जे में होने के बाद नगरपालिका द्वारा परिसर में ताले नहीं लगाए जा सकते थे।

इससे असहमत होकर जस्टिस कांत ने कहा,

"अभी आप एक अनधिकृत अधिभोगी हैं। पट्टा रद्द कर दिया गया। आपने उस आदेश को चुनौती नहीं दी है।"

दवे के इस दावे पर कि पट्टा रद्द करने के आदेश को चुनौती दी गई, जस्टिस कांत ने कहा,

"जब आप राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग करते हैं तो आपको याद नहीं रहता कि किस कानून का पालन करना है। जब कार्रवाई करने का सवाल आता है तो आपको सब कुछ याद आ जाता है।"

जज ने सवाल किया,

"क्या आपने कभी नगरपालिका क्षेत्र के भीतर नगरपालिका की कोई इमारत 115 रुपये में बनते हुए सुनी है? और आप चाहते हैं कि हम इस पर विश्वास करें? इस देश के लोगों को व्यवस्था पर थोड़ा विश्वास तो होना ही चाहिए।"

अंततः खंडपीठ ने कहा कि मुकदमा सिविल कोर्ट में लंबित है और SP की अंतरिम निषेधाज्ञा की प्रार्थना पर कोई राय व्यक्त नहीं की।

जस्टिस कांत ने कहा,

"अगर आप इन सभी प्रकार के फर्जी कब्जों को चुनौती देने वाली याचिका दायर करते हैं तो हम आपके साथ हैं। ये आवंटन नहीं हैं। ये सभी राजनीतिक, धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल करके फर्जी कब्जे हैं।"

खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत के लिए सिविल कोर्ट जाने को कहा। जब दवे ने कहा कि वकीलों की हड़ताल के कारण तत्काल राहत के लिए सिविल कोर्ट जाना संभव नहीं है, तो जस्टिस कांत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों की हड़ताल के खिलाफ सख्त निर्देश जारी किए हैं।

इससे पहले जून में सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध दायर एक और विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें पीलीभीत ज़िले के पार्टी अध्यक्ष को पीलीभीत स्थित पार्टी कार्यालय से पार्टी को बेदखल करने के विवाद के संबंध में आगे कोई रिट याचिका दायर करने से रोक दिया गया था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि SP हाईकोर्ट का रुख कर सकती है।

2 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि दीवानी मुकदमा लंबित है, पार्टी की रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

Case Title : THE SAMAJWADI PARTY Versus STATE OF U.P. AND ANR., SLP(C) No. 18269/2025

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