सुप्रीम कोर्ट ने 70% श्रवण दिव्यांगता वाले मेडिकल स्टूडेंट को पीजी एडमिशन काउंसलिंग में शामिल होने की अनुमति दी

Update: 2024-12-07 05:27 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल स्टूडेंट द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें 70% श्रवण दिव्यांगता वाले बेंचमार्क दिव्यांगता वाले स्टूडेंट ने पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन, 2023 के तहत दिव्यांगता खंड को चुनौती दी है, जिसके अनुसार 40% या उससे अधिक श्रवण दिव्यांगता वाले व्यक्ति को पोस्ट-ग्रेजुएट (पीजी) मेडिकल कोर्स में एडमिशन के लिए अयोग्य माना जाएगा।

याचिकाकर्ता ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(जी), और 21 तथा दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) की धारा 3, 32, 33, 34 का उल्लंघन करते हुए भेदभावपूर्ण और मनमाना होने के आधार पर विकलांगता खंड को चुनौती दी।

तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ता MBBS कोर्स में एडमिशन के लिए NEET (UG), 2018 में शामिल हुआ। उसे एक अनंतिम आवंटन पत्र (राउंड 1) जारी किया गया।

हालांकि CSBI द्वारा प्रकाशित NEET (UG)-2018 सूचना बुलेटिन में स्पष्ट रूप से RPwD Act की धारा 32 के अनुसार बेंचमार्क दिव्यांगता (40% से अधिक दिव्यांगता) वाले व्यक्तियों के लिए वार्षिक स्वीकृत एडमिशन का 5% आरक्षित करने का प्रावधान था, लेकिन याचिकाकर्ता को प्रवेश से पूरी तरह से वंचित कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे भारतीय मेडिकल परिषद द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के आधार पर 5 जून, 2018 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रवेश से वंचित कर दिया गया।

समिति ने यूजी मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन, 2018 में अपात्रता खंड को शामिल करने की सिफारिश की थी, जो ग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा में 40% के निर्धारित बेंचमार्क से अधिक श्रवण दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक लगाता है।

आशुतोष पुरसवानी बनाम यूओआई एवं अन्य (2018) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के अनुसार, याचिकाकर्ता को दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा MBBS में ए़़डमिशन के लिए पात्र माना गया।

MBBS की पढ़ाई पूरी करने के बाद याचिकाकर्ता का इरादा मेडिकल शिक्षा में पीजी डिग्री हासिल करने का है। हालांकि, राष्ट्रीय मेडिकल आयोग द्वारा जारी 2023 विनियमों के विनियमन 4.8 के अनुसार, 40% या उससे अधिक श्रवण दिव्यांगता वाले व्यक्ति पीजी मेडिकल कोर्स में एडमिशन के लिए अपात्र होंगे, जब तक कि सहायक उपकरणों की मदद से श्रवण हानि 40% से कम न हो जाए।

याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने संक्षेप में प्रस्तुत किया कि मेडिकल क्षेत्र में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए बहुत सारे पद आरक्षित हैं। फिर भी वर्तमान याचिकाकर्ता केवल तभी आरक्षण के लिए पात्र हो सकती है, जब उसे एम.डी. करने की अनुमति दी जाए। उन्होंने अंतरिम राहत के लिए भी दबाव डाला।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पी.बी. वराले की खंडपीठ ने अंतरिम राहत के रूप में उसे चल रही काउंसलिंग प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी। हालांकि, न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि उसके पक्ष में कोई इक्विटी नहीं बनाई गई।

केस टाइटल: टीना शर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 735/2024

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